श्रावण मास का व्रत – श्रावण साेमवार

आषाढके उपरांत आनेवाला मास है श्रावण

श्रावण मास कहते ही व्रतोंका स्मरण होता है । उपासनामें व्रतोंका महत्त्व अनन्यसाधारण है । सामान्य जनोंके लिए वेदानुसार आचरण करना कठिन है । इस कठिनाईको दूर करनेके लिए पुराणोमें व्रतोंका विधान बताया गया है । आषाढ एकादशी से लेकर कार्तिक एकादशीतककी कालावधिमें चातुर्मास होता है । अधिकांश व्रत चातुर्मासमें ही किए जाते हैं । इनमें विशेष व्रत श्रावण मासमें ही आते हैं । जैसे……

१.१ श्रावण सोमवार व्रत

१.२ सोलह सोमवार व्रत

१.३ मंगलागौरी व्रत

१.४ वरदलक्ष्मी व्रत

१ श्रावण सोमवार व्रत

श्रावण मासमें बच्चोंसे लेकर बडे-बूढोंतक सभीके द्वारा किया जानेवाला एक महत्त्वपूर्ण व्रत है, श्रावण सोमवारका व्रत । श्रावण सोमवारके व्रतसंबंधी उपास्य देवता हैं भगवान शिवजी ।

१ अ. श्रावण सोमवारकी व्रतविधि

इसमें श्रावण मासके प्रत्येक सोमवारको भगवान शिवजीके देवालयमें जाकर उनकी पूजा की जाती है । कुछ शिवभक्त श्रावणके प्रत्येक सोमवारको १०८ अथवा विशेष संख्यामें बिल्वपत्र शिवपिंडीपर चढाते हैं । कुछ लोग श्रावण सोमवारको केदारनाथ, वैद्यनाथ धाम, गोकर्ण जैसे शिवजीके पवित्र स्थानोंपर जाकर विविध उपचारोंसे उनका पूजन करते हैं । इसके साथही श्रावण सोमवारको भगवान शिवजीसे संबंधित कथा-पुराणोंका श्रवण करना, कीर्तन करना, भगवान शिवजीसंबंधी स्तोत्रपाठ करना, भगवान शिवजीका ‘ॐ नमः शिवाय ’ यह नामजप करना इत्यादि प्रकारसे भी दिनभर यथाशक्ति भगवान शिवजीकी उपासना की जाती है । व्रतके दिन व्रतदेवताकी इस प्रकार उपासना करना व्रतका ही एक अंग है । श्रावण सोमवारके दिन भगवान शिवजीका नामजप करना लाभदायी होता है ।

 

२. श्रावण सोमवार व्रतसे संबंधित उपवास

इस दिन संभव हो, तो निराहार उपवास रखते हैं । निराहार उपवास अर्थात दिनभर आवश्यकतानुसार केवल जल प्राशन कर किया जानेवाला उपवास । दूसरे दिन भोजन कर यह उपवास तोडा जाता है । कुछ लोग नक्त व्रत रखते हैं । नवतकाल अर्थात सूर्यास्तके उपरांत तीन घटिका अर्थात ७२ मिनट, अथवा नक्षत्र दिखनेतकका काल । व्रतधारी दिनभर कुछ न सेवन कर इस नक्तकालमें भोजन कर व्रत रखते हैं ।

 

३. श्रावण सोमवारको किए जानेवाले कुछ धार्मिक कृत्य

कुछ स्थानोंपर शिवभक्त यथाशक्ति किसी एक सोमवार अथवा महीनेके प्रत्येक सोमवारको कांवरयात्रा करते हैं । कांवर अर्थात होली वॉटर बीअरर । इस यात्रामें शिवभक्त कांवरमें नदीका जल लेकर भगवान शिवजीसे संबंधित निकटके किसी तीर्थक्षेत्रमें जाते हैं तथा कांवरका जल शिवपिंडीको चढाते हैं । इसप्रकार किए गए शिवाभिषेकका थोडा जल वापस लाकर शिवभक्त उसका प्रयोग तीर्थके रूपमें करते हैं । यह यात्रा नंगे पैर अर्थात बिना जूते-चप्पल पहने, पैदल चलते हुए की जाती है । कुछ स्थानोंपर श्रावणके तीसरे सोमवारको मेलेका आयोजन भी किया जाता है । श्रावणके अंतिम सोमवारको इस व्रतका पारण किया जाता है, कुछ स्थानोंपर भंडारे किए जाते हैं तथा कुछ स्थानोंपर पूरे श्रावण मासमें अन्नछत्र चलाया जाता है । यह व्रत रखनेसे भगवान शिवजी प्रसन्न होते हैं एवं भक्तको सायुज्य मुक्ति मिलती है तथा ऐसी मान्यता है कि इस विधिद्वारा भगवान शिवजीसे एकरूपता प्राप्त होती है । इसी व्रतको जोडकर महिलाएं श्रावणके प्रत्येक सोमवारको एक अन्य उपव्रत रखती हैं ।

४. शिवमुष्टि व्रत

विवाहके उपरांत पहले पांच वर्ष सुहागिनें क्रमसे यह व्रत करती हैं । इसमें श्रावणके प्रत्येक सोमवारको एकभुक्त रहकर अर्थात एकही समय भोजन कर शिवलिंगकी पूजा की जाती है । शिवमुष्टि व्रतविधि शिवजीके देवालयमें जाकर की जाती है । जिन्हें देवालयमें जाकर यह विधि करना संभव न हो, वे घरपर भी संकल्प कर यह पूजाविधि कर सकती हैं । आइए इस व्रतकी विधि समझ लेते हैं, एक दृश्यपटद्वारा ।

५. शिवमुष्टि व्रत-विधि

१. भगवान शिवजीको प्रार्थना कर पूजाविधि आरंभ कीजिए ।

२. प्रथम आचमन कीजिए ।

३. उसके उपरांत संकल्प कीजिए ।

मम श्रीशिवप्रीतिद्वारा सर्वोपद्रवनिरासपूर्वं भर्तृस्नेह-अभिवृद्धि-स्थिरसौभाग्य-पुत्रपौत्र-धनधान्य-समृद्धि-क्षेम-आयुः-सुखसंपदादि-मनोरथ-सिद्ध्यर्थं शिवमुष्टिव्रतं करिष्ये ।

इसका अर्थ है, मैं, मेरी शिवप्रीतिद्वारा सर्व उपद्रवकारी द्रव्योंका विनाश कर, पतिपर स्नेहकी अभिवृद्धि, सौभाग्यस्थिरता, पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र; धन, धान्य इनकी समृद्धि; क्षेम, आयु, सुख, संपत्ति इत्यादि मनोरथोंकी सिद्धिके लिए यह शिवमुष्टि व्रत करती हूं ।

इस संकल्पमें नवविवाहिताकी व्यापक कुटुंबभावना दिखाई देती है । इससे यह स्पष्ट होता है कि सनातन हिंदु धर्म व्यक्तिपर किस प्रकारके जीवनमूल्य अंकित करता है – यही सनातन हिंदु धर्मकी महानता है । अब देखते हैं शिवमुष्टि व्रतके आगेकी पूजा विधि

१. अब ताम्रपात्रमें रखी शिवपिंडीपर चंदन चढाइए ।

२. अब शिवपिंडीपर श्वेत अक्षत चढाइए ।

३. अब शिवपिंडीपर श्वेत पुष्प चढाइए ।

४. इसके उपरांत शिवपिंडीपर बिल्वपत्र चढाइए । बिल्वपत्रको औंधे रख उसके डंठलको पिंडीकी ओर कर पिंडीपर चढाइए ।

५. अब धुले हुए चावल मुष्टिमें लेकर शिवपिंडीपर इसप्रकार चढाइए ।

६. शिवमुष्टि चढानेके इसी कृत्यको पांच बार दोहराइए ।

७. तदुपरांत धूप दिखाइए एवं उसके उपरांत दीप दिखाइए ।

८. अब नैवेद्य निवेदित कीजिए ।

९. अब शिवजीको कर्पूर आरती दिखाइए ।

१०. अंतमें पुनः एकबार शिवजीको भावपूर्ण प्रार्थना कीजिए ।

अभी हमने शिवमुष्टि व्रतकी विधि देखी । इसी पद्धतिसे पूजन कर श्रावणके प्रत्येक सोमवारको शिवपिंडीपर विशिष्ट अनाज चढाना चाहिए ।

 

६. शिवपिंडीपर अनाज चढाना

१. पहले सोमवारको शिवमुष्टिके लिए चावलका उपयोग करते हैं ।

२. दूसरे सोमवारको शिवमुष्टिके लिए श्वेत तिलका उपयोग करते हैं ।

३. तीसरे सोमवारकी शिवमुष्टि है, मूंग

४. चौथे सोमवारको शिवमुष्टिके लिए गेहूंका उपयोग करते हैं ।

५. जिस वर्ष श्रावणमासमें पांचवां सोमवार आए तो, शिवमुष्टिके लिए यवकी (जौकी) बाली अर्थात वीट विथ हस्क का उपयोग करते हैं ।

 

७. सोलह सोमवार व्रत

यह भगवान शिवजीसे संबंधित एक फलदायी व्रत है । इस व्रतका आरंभ श्रावणके पहले सोमवारको किया जाता है । इसमें क्रमशः सोलह सोमवारको उपवास रख, सत्रहवें सोमवारको व्रतकी समाप्ति करते हैं । इस व्रतमें `सोलह सोमवार व्रतकथा’का पाठ किया जाता है । इस व्रतमें निर्जल उपवास रखा जाता है । जिनके लिए ऐसा करना संभव नहीं, उन्हें गेहूं, गुड एवं घीमें हलवा अथवा खीर बनाकर एक बार ग्रहण करनेकी विधि बताई गई है । व्रतकी समाप्तिके समय सोलह दंपतियोंको बुलाकर भोजन कराया जाता है, तथा वस्त्र एवं दक्षिणा दी जाती है । जो यह व्रत करता है, अथवा व्रतकथाका श्रवण करता है, उसके सर्व पापों एवं दुःखोंका नाश होता है तथा उसकी सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।

 

८. श्रावण मासका एक अन्य प्रचलित व्रत है मंगलागौरी

इस व्रतसे संबंधित देवी मंगलागौरी हैं । मंगलागौरी सौभाग्यदात्री देवी हैं । यह नवविवाहित स्त्रियोंका व्रत है । विवाहके उपरांत सुहागिनें प्रथम पांच वर्षतक यह व्रत करती हैं। श्रावण महीनेके प्रत्येक मंगलवारको यह व्रत किया जाता है । यह व्रत कुछ स्थानोंपर विवाहके उपरांत प्रथम वर्षमें आनेवाले श्रावण माहमें माता-पिताके घर; तथा उपरांतके चार वर्ष पतिके घर किया जाता, तो कुछ स्थानोंपर यह व्रत प्रथम वर्षके श्रावण माहके प्रथम मंगलवारको माता-पिता के घर, दूसरे मंगलवारको पतिके घर किया जाता है । प्रथम वर्षका तीसरा एवं चौथा मंगलवार तथा उपरांतके चार वर्षमें आनेवाले श्रावण माहके मंगलवार किसी सगेसंबंधीके घर जाकर मंगलागौरी का पूजन करते हैं । यह संभव न हो, तो अपनेही घरमें यह व्रतपूजा की जाती है।

इस व्रतमें शिव एवं गणपतिके साथ गौरीकी प्रतिमाका षोडशोपचार पूजन किया जाता है । इस व्रतमें रातको जागरण करनेका भी महत्त्व बताया गया है । सुहागिनें अपनी सखियोंके साथ मंगलागौरीके लिए विविध खेल खेलती हैं, साथही पारंपरिक गीत भी गाती हैं । प्रातःकाल गौरीकी प्रतिमाका विसर्जन किया जाता है । पांचवें वर्ष इस व्रतकी समाप्ति करनेका विधान है । समाप्ति करते समय ब्राह्मणको भोजन कराया जाता है । इसके उपरांत उन्हें सोनेके नागकी प्रतिमा एवं दक्षिणा दी जाती है । यथाशक्ति सुहागिनोंको उपायन अर्थात सौभाग्यके प्रतीकस्वरूप भेंटवस्तुएं दी जाती हैं । इस व्रतमें सौभाग्यद्रव्योंके साथ साडी-चोली, लड्डू एवं फल भरा ताम्रपात्र माताको उपायनमें दिया जाता है ।

८ अ. पूर्ण श्रद्धा-भावके साथ मंगलागौरीका व्रतआचरण करनेसे लाभ

१. सौभाग्य अखंड बना रहता है ।

२. सौख्यसंपदाकी प्राप्ति होती है ।

३. मृत्यु टलती है अर्थात आयुवृद्धि होती है ।

श्रावण महीनेमें आनेवाले व्रतोंके कारण व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तरपर लाभ होते हैं । यह देखकर व्रतोंकी परिकल्पना करनेवाले हमारे ऋषिमुनियोंके चरणोंमें हमारे सिर श्रद्धासे झुक जाते हैं ।

 

९. जरा-जीवंतिका पूजन

यह व्रत श्रावण माहके प्रत्येक शुक्रवारको रखते हैं । जीवंतिका उपनाम जिवती इस व्रतकी देवी हैं । यह छोटे बच्चोंका संरक्षण करती है । पहले शुक्रवारको दीवारपर चंदनसे जिवतीका चित्र बनाकर उसकी पूजा करते हैं । आजकल छपे हुए चित्रकी पूजा करते हैं ।

संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – त्यौहार धार्मिक उत्सव एवं व्रत 

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