१. वर्ष २०१८ मे ३ सूर्यग्रहण तथा २ चंद्रग्रहणं हैं ।
सूर्यग्रहण अमावास्या को तथा चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन आता है । वर्ष २०१८ में कुल मिलाकर पांच ग्रहणं हैं । उनमेंसे फरवरी, जुलाई तथा अगस्त माह में ३ खंडग्रास सूर्यग्रहणं हैं । तीनों सूर्यग्रहणं खंडग्रास है । वह भारत में दिखाई नहीं देंगी । जनवरी तथा जुलाई माह में २ खग्रास चंद्रग्रहणं हैं । वह दोंनों भारत में दिखाई देंगी ।
२. खग्रास तथा खंडग्रास सूर्यग्रहण
सूर्य इस तारे के चारों ओर भ्रमण करनेवाले पृथ्वी इस ग्रह के बाजू में उसका उपग्रह चंद्र भी भ्रमण करता है । इस तारा के बाजू में भ्रमण करनेवाले पृथ्वी इस ग्रह के बाजू में उसका चंद्र यह उपग्रह भी भ्रमण करता है । इन सभी के भ्रमण प्रतलं (कक्षा अथवा वलय) पृथक-पृथक हैं । प्रदक्षिणा करते समय सूर्य तथा पृथ्वी में चंद्र आकर उनकी छाया पृथ्वी पर गिरती है । वह जिस स्थान पर गिरती है, वहां उतने कालावधी के लिए चंद्रबिंब के कारण सूर्यबिंब ढकने के समान दिखाई देता है । सूर्यबिंब पूरीतरह से दिखाई देना बंद होता है । यदि खग्रास सूर्यग्रहण तथा सूर्यबिंब अधूरा ढंक गया, तो खंडग्रास सूर्यग्रहण होता है ।
३. भारत में दिखाई न देनेवाले सूर्यग्रहणं
वर्ष २०१८ में फरवरी, जुलाई तथा अगस्त इन मासों में आनेवाले आगे के तीन सूर्यग्रहणं भारत में दिखाई नहीं देंगे ।
३ अ. गुरुवार, १५.२.२०१८, माघ अमावास्या
इस दिन खंडग्रास सूर्यग्रहण है ।
यह ग्रहण दक्षिण अमरिका का दक्षिण हिस्सा, प्रशांत महासागर तथा अंटार्क्टिका में दिखाई देगा । भारतीय समयानुसार इस ग्रहण का समय आगे के अनुसार हैं ।
३ अ १. आरंभ : ०.२६ मि. (१५.२.२०१८, रात्रि १२.२६ मि.)
३ अ २. मध्य : २.२१ मि. (१५.२.२०१८, रात्रि २.२१ मि.)
३ अ ३. समाप्ती : ४.१७ मि. (१६.२.२०१८, प्रातः ४.१७ मि.)
३ आ. शुक्रवार, १३.७.२०१८, निज जेष्ठ अमावास्या
इस दिन खंडग्रास सूर्यग्रहण है । यह ग्रहण ऑस्ट्रेलिया का दक्षिण टोक, न्यूझीलंड का पश्चिम टोक तथा हिन्दी महासागर में दिखाई देगा । भारतीय समयानुसार इस ग्रहण का कालावधी इस प्रकार हैं …
३ आ १. आरंभ : प्रातः ७.१८
३ आ २. मध्य : प्रातः ८.३१
३ आ ३. समाप्ती : प्रातः ९.४४
३ इ. शनिवार, ११.८.२०१८, आषाढ अमावास्या
इस दिन खंडग्रास सूर्यग्रहण है । यह ग्रहण ग्रीनलॅण्ड, उत्तर-पूर्व युरोप, चीन तथा उत्तर-पूर्व आशिया में दिखाई देगा । भारतीय कालावधी नुसार इस ग्रहण का कालावधी आगे के अनुसार हैं …
३ इ १. आरंभ : १३.३२ (दोपहर १.३२)
३ इ २. मध्य : १५.१६ (दोपहर ३.१६)
३ इ ३. समाप्ती : १७.०१ (सायंकाल ५.०१)
४. भारत में दिखाई देनेवाले चंद्रग्रहणं
वर्ष २०१८ में ३१ जनवरी तथा २७ जुलाई को दो चंद्रग्रहणं भारत में खग्रास दिखाई देंगे ।
४ अ. खग्रास चंद्रग्रहण
सूर्य तथा चंद्र के बीच में यदि पृथ्वी आई, तो पृथ्वी की छाया चंद्र पर गिरती है तथा चंद्र का तेज न्यून होता है । उस समय चंद्र
लाल-भुरे रंग का दिखाई देता है । यदि पृथ्वी की छाया में संपूर्ण चंद्र आया, तो खग्रास चंद्रग्रहण होता है ।
५. ३१.१.२०१८ को भारत में सर्वत्र दिखाई देनेवाले खग्रास चंद्रग्रहण
का कालावधी, उस कालावधी में पालन करने के नियम, तथा राशिपरत्वे फलप्राप्ती
बुधवार, ३१.१.२०१८, माघ पूर्णिमा को चंद्रग्रहण है । यह ग्रहण भारत में सर्वत्र खग्रास दिखाई देगा । ग्रहण कालावधी में की गई साधना का फल सहस्त्रों गुना अधिक मात्रा में प्राप्त होता है । उसके लिए ग्रहणकालावधी में साधना को प्राधान्य देना महत्त्वपूर्ण रहता है ।
५ अ. चंद्रग्रहण दिखाई देनेवाले प्रदेश
भारत के साथ संपूर्ण आशिया खंड, अमरिका, युरोप का ईशान्य प्रदेश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूझीलंड, पॅसिफिक महासागर तथा हिन्दी महासागर
५ आ. संपूर्ण भारत में चंद्रग्रहण का कालावधी
५ आ १. स्पर्श (आरंभ) : १७.१८ (सायंकाल ५.१८)
५ आ २. संमीलन (ग्रहणस्पर्श के पश्चात् धीरे-धीरे बिंब का ग्रास होकर वह पूरीतरह से ग्रस्त होता है, अर्थात् उसे संमीलन कहते हैं ।) : १८.२१ (सायंकाल ६.२१)
५ आ ३. मध्य : १९.०० (सायं. ७.००)
५ आ ४. उन्मीलन (खग्रास ग्रहण के पश्चात् बिंबदर्शन आरंभ होता है, उसे उन्मीलन कहते हैं । ) : १९.३८ (सायं. ७.३८)
५ आ ५. मोक्ष (अंत) : २०.४२ (रात्रि ८.४२)
५ आ ६. पर्व (टिपण्णी १) (ग्रहण आरंभ से अंत तक का कुल मिलाकर कालावधी ) : ३.२४ घंटे
भारत के पूर्वाचल का कुछ प्रदेश छोडकर सर्वत्र ग्रस्त हुआ चंद्रबिंब उदय होगा । खग्रास अवस्था भारत में सर्वत्र दिखाई देगा ।
टिपण्णी १ – पर्व अर्थात् पर्वणी अथवा पुण्यकाल । चंद्रोदय से (अपने गांव के सूर्यास्त तक) ग्रहणमोक्ष तक का काल पुण्यकाल है ।
५ इ. शुभ एवं अशुभ काल
५ इ १. शुभ काल : पृथक त्योहार
५ इ २. अशुभ काल : अमावास्या, पूर्णिमा, ग्रहण, श्राद्ध, व्यतिपात योग (व्यत्यय लाना, यह २७ योगों मेंसे १७ वा अशुभ योग है ।), वैधृती योग (तोडना । २७ योगोंमेंसे अंतिम अशुभ योग है ।) तथा संक्रांत (१२ राशीमेंसे रवि ग्रह के प्रत्येक राश्यांतर को संक्रात कहते हैं । उदा. यदि रवि ग्रह मकर राशी में गया, तो मकरसंक्रांत कहते हैं ।)
शास्त्रों में बताया गया है कि, उपर्युक्त शुभ तथा अशुभ काल में ईश्वरी अनुसंधान में रहने से आध्यात्मिक लाभ होगा । अतः इन दिनों को पर्व तथा पर्वणी कहते हैं ।
५ ई. ग्रहण के वेध लगना
५ ई १. अर्थ : ग्रहण से पूर्व चंद्र पृथ्वी की छाया में आने लगता है; इसलिए उसका प्रकाश धीरे-धीरे न्यून होने आरंभ होता है, इसे ही ग्रहण के वेध लगना कहते हैं ।
५ ई २. कालावधी : यह चंद्रग्रहण चौथे प्रहर में (टिपण्णी २) होने के कारण ३ प्रहर पूर्व, अर्थात् बुधवार के सूर्योदय से ग्रहणमोक्ष तक (रात्रि ८.४२ तक ) वेध पालन करना । (प्रत्येक क्षेत्र में सूर्योदय का समय पृथक होने के कारण पंचांग के अनुसार वह समय देख सकते हैं ।)
टिपण्णी २ – ३ घंटों का एक प्रहर रहता है । दिन के ४ प्रहर तो रात्रि के ४ प्रहर कुल मिलाकर एक दिन में ८ प्रहर होते हैं ।
५ ई ३. नियम :
वेध कालावधी में भोजन न करें; किंतु पानी पी सकते हैं ।
स्नान, देवपूजा, नित्यकर्म, जपजाप्य, श्राद्ध कार्य कर सकते हैं ।
बालक, आजारी, कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाओं ने प्रातः ११.३० से ग्रहण के वेध पालन करने चाहिए ।
५ उ. वेध के नियम पालन करने के आरोग्य दृष्टि से महत्त्व
५ उ १. शारीरिक / भौतिक : वेध कालावधी में जिवाणु बढते हैं; इसलिए अन्न शीघ्र खराब होता है । इस कालावधी में रोग प्रतिकार शक्ति न्यून होती है । अतः जिस प्रकार रात्रि का अन्न दूसरे दिन बासी होता है, उसी प्रकार ग्रहण से पूर्व का अन्न ग्रहण के पश्चात् बासी हो जाता है । वह अन्न फेंक देना चाहिए । केवल दूध तथा पानी को यह नियम लागू नहीं होता । ग्रहण से पूर्व के दूध तथा पानी का उपयोग ग्रहण के पश्चात् भी कर सकते हैं ।
५ उ २. मानसिक : वेध कालावधी में मानसिक आरोग्य पर भी परिणाम होता है । मानसोपचार तज्ञ कहते हैं कि, कुछ व्यक्तियों को निराशा आना, तनाव बढना इत्यादि मानसिक व्याधियां होती है ।
५ उ ३. उपाय : वेधारंभ से ग्रहण समाप्त होने तक नामजप, स्तोत्रपठण, ध्यानधारणा इत्यादि धार्मिक कार्य करने से लाभ होता है ।
५ ऊ. ग्रहण कालावधी के कार्य
ग्रहणस्पर्श होते ही स्नान करना । पर्वकाल में देवपूजा, तर्पण, श्राद्ध, जप, होम तथा दान करना । पूर्व कुछ कारणवश खंडित हुए मंत्र के पुरश्चरण का आरंभ यदि इस कालावधी में किया, तो उसका फल अनंत गुना प्राप्त होता है । ग्रहणकालावधी में निंद, मल-मूत्रविसर्जन, अभ्यंग (संपूर्ण शरिर को गरम तेल से मालिश कर मर्दन करना ) भोजन तथा कामविषयक सेवन का कार्य न करें । अशौच होते हुए ग्रहणकालावधी में ग्रहण के संबंध में स्नान तथा दान करने इतनी ही शुद्धि रहती है । ग्रहणमोक्ष के पश्चात् स्नान करें ।
५ ए. राशिपरत्वे ग्रहण का फल
५ ए १. शुभ फल : वृषभ, कन्या, तूळ तथा कुंभ
५ ए २. अशुभ फल : मेष, कर्क , सिंह तथा धनु
५ ए ३. मिश्र फल : मिथुन, वृश्चिक, मकर तथा मीन
जिन राशियों को अशुभ फल है, वे व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएं चंद्रग्रहण न देखें ।
(संदर्भ : दाते पंचांग)
– श्रीमती प्राजक्ता जोशी (ज्योतिष फलित विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, ज्योतिष विभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा । (२१.१२.२०१७)