वर्ष २००४ में देवद (पनवेल) के सनातन आश्रम पर भानुदासआडभाई
द्वारा किए गए आक्रमण के संदर्भ में रायगड जनपद तथा सत्र न्यायालय का निर्णय
पूरीतरह से झूठा आरोप कर सनातन के साधकों को वैधानिक जाल में फ्सनेवाले तथा सनातन को अपकीर्त करनेवाले क्या इस से कुछ सीखेंगे ?
रामनाथ (रायगड), १३ जनवरी – सनातन की साधिका डॉ. स्वाती आडभाई (वर्तमान की डॉ. (श्रीमती) दीक्षा पेंडभाजे) के परिवारवालों ने नवम्बर २००४ में देवद (पनवेल) के सनातन के आश्रम पर आक्रमण किया था । इस संदर्भ में प्रविष्ट की गई दोनों याचिकाओं पर प्रथमवर्ग न्यायदंडाधिकारी श्रीमती मंगला मोटे ने साक्षीप्रमाणों की आधार पर कर दोनों पक्ष के कुछ लोगों ने निरपराध मुक्त किया, तो सनातन के १२ साधकों को अपराधी सिद्ध किया तथा उन्हें उस दिन का न्यायालय का कार्य समाप्त होने तक न्यायालय में बलपूर्वक बैठने का दंड सुनाया । साथ ही प्रत्येक अपराधी को २५० रुपएं दंड सुनाया । यदि दंड के रकम की पूर्तता न की गई, तो ३० दिन का कारावास का दंड सुनाया । उस समय कुछ साधकों ने अधिनियम का पालन करते हुए उसी दिन न्यायालय का दंड भुगत लिया तथा २५० रूपएं दंडपूर्ति की पूर्तता भी की; परंतु न्यायालय का आदेश तथा सुनाया गया दंड दोनों निर्णय अन्यायकारक थे । अतः उन साधकों ने उस आदेश के विरोध में रायगड जनपद के रामनाथ (अलिबाग) के जिल्हा तथा सत्र न्यायालय में पुर्नजांच करने हेतु याचिका प्रविष्ट की । इस प्रकरण की अंतिम सुनवाई २१ दिसम्बर को हुई । उस समय साधकों की ओर से अधिवक्ता र.वि. ओक तथा अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने युक्तीवाद किया ।
न्यायालय ने उस युक्तवाद के सर्व सूत्रं प्रमाण मानें । ३० दिसम्बर २०१७ को जिल्हा तथा सत्र न्यायाधीश सेवलीकर ने आदेश पारित कर सर्व साधकों को निरपराध मुक्त किया ।
१. ७ नवम्बर २००४ को आडभाई द्वारा किए गए आक्रमण के समय उन्होंने साधकों की पिटाई की थी तथा उनकी आंखों में मिर्च पावडर पेंकी थी । आरंभ में साधकों को यह अनपेक्षित था; किंतु पश्चात् साधकों ने भी उन रिश्तेदारों का प्रतिकार किया । उस समय डॉ. स्वाती आडभाई को बलपूर्वक वहां से ले जाने की रिश्तेदारों की इच्छा थी; किंतु उसका प्रतिकार करने हेतु साधकों ने रिश्तेदारों को रोका तथा पुलिस को आमंत्रित किया । पुलिस आने के पश्चात् उन्होंने रिश्तेदारों को अधिकार में लेकर घायल साधकों को रुग्णालय में प्रविष्ट किया । आश्रम ने इस घटना का परिवाद वैधानिक रूप से पुलिस में प्रविष्ट किया तथा पुलिस ने भी रिश्तेदारों के विरोध में परिवाद प्रविष्ट करवाया।
२. डॉ. स्वाती आडभाई के पिता भानुदास आडभाई ने भी बहुत दिनों पश्चात् झूठा परिवाद प्रविष्ट किया । परिवाद में उन्होंने यह प्रस्तुत किया कि, ‘इन्होंने भी हमारी पिटाई की, मेरे चष्मे को हानी पहुंचाई तथा मुझे आश्रम में बलपूर्वक रखा ।’ पुलिस ने इस संदर्भ की जांच पहले ही करना आवश्यक था; किंतु वह करने की अपेक्षा उन्होंने उस झूठे अपराध का भी परिवाद प्रविष्ट किया ।
३. इस पिटाई के कारण जो साधक घायल हुए थे तथा रुग्णालय में औषधोपचार हेतु गए थे, उनके नाम पुलिस की प्रविष्टी में प्रविष्ट हुए थे । वे सभी नाम तथा आडभाई परिवार को पहले से ही पता होनेवाले कुछ नाम उस परिवाद में अपराधी के रूप में प्रविष्ट किए गए ।
४. उपर्युक्त दोनों परिवाद पनवेल के प्रथमवर्ग न्यायदंडाधिकारी श्रीमती मंगला मोटे के पास सुनवाई हेतु आए । प्रारंभ में साधकों की ओर से अधिवक्ता रामदास केसरकर ने, तो पश्चात् अधिवक्ता विश्वास भिडे तथा अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने यह परिवाद आगे चलाया ।
५. अंत में दोनों परिवाद के साक्षीप्रमाणों की जांच कर प्रथमवर्ग न्यायदंडाधिकारी श्रीमती मंगला मोटे ने दोनों पक्ष के कुछ लोगों को निरपराध मुक्त किया, तो कुछ लोगों को अपराधी सिद्ध किया । अपराधी सिद्ध किए लोगों का अपराध यह बताया गया कि, ‘अवैधरूप से ५ से अधिक लोगों का गुंट इकट्ठा हुआ तथा दंगई की ।’
अधिवक्ता द्वारा किए गए युक्तिवाद के प्रमाण ग्राह्य माने गए आदेश के विशेष सूत्रं
१. पिटाई की घटना प्रातः ६.३० से ७.३० इस कालावधी में घटी थी । प्रथम अपराध का परिवाद सनातन के साधकों ने प्रविष्ट किया था । तत्पश्चात् आडभाई ने किया था; विंâतु आडभाई तथा उनके रिश्तेदारों को पुलिस ने उनके घावों पर उपचार करने हेतु रुग्णालय में प्रविष्ट किया था । आडभाई तथा उनके रिश्तेदारों की ‘सनातन के साधकों ने पिटाई की; इसलिए वे घायल हुए,’ इस प्रकार के आरोप आडभाई द्वारा किए जाने के कारण उस रुग्णालय का व्यवहार भी प्रमाण के आधार पर किया गया था । सायंकाल ७.४० बजे शासकीय वैद्यों ने आडभाई के साथ कुलमिलाकर ७ लोंगों के घावों पर मलमपट्टी की । वह घाव किस प्रकार के थे तथा वे घाव कब हुए थे, यह भी प्रविष्ट किया । शासकीय वैद्यों के मतानुसार, वे घाव उनकी जांच से पूर्व न्यूनतम १ घंटा पूर्व के थे, अर्थात् उस दिन सायंकाल ६.३० बजे के पश्चात् के थे । अर्थात् यह आरोप पूरीतरह से झूठा था । प्रथमवर्ग न्यायदंडाधिकारियों ने इस बात की ओर हेतुपुरस्सर संदेहास्पद रूप में देखा नहीं ।
२. आडभाई ने बताया था कि, उनकी आंखों में साधकों ने मिर्च की पावडर डाली थी; किंतु वैद्यकीय अधिकारी ने आंखों में कुछ पाया जाने का निरीक्षण प्रविष्ट नहीं किया है ।
३. डॉ. स्वाती आडभाई को बताया था कि, साधकों ने बलपूर्वक रखा था; किंतु उस प्रकार का कोई भी प्रमाण स्षप्ट नहीं हुआ ।
४. सर्वोच्च न्यायालय ने एकदूसरे के विरोध में हुई परिवादों की सुनवाई किस प्रकार करें, इसके मापदंड दिए हैं । उन मापदंडों के अनुसार प्रथमवर्ग न्यायदंडाधिकारी श्रीमती मंगला मोटे ने यह दोनों परिवाद आगे चलाना आवश्यक था; किंतु उन्होंने वैसा नहीं किया । उन्होंने दूसरे आरोप के पंचनामा को साधकों के विरोध में परिवाद में प्रमाण के रूप में ग्राह्य माना,किंतु यह अनुचित है ।
५. साधक उस स्थान पर थे, यह भी गृहित माना गया था ।
६. अवैध गुंट करने हेतु जो सामूहिक उद्दिष्ट लगता है, वह क्या है, इस का कोई भी प्रमाण न होते हुए भी वह गृहित माना गया है ।
७. यदि अन्य कोई भी अपराध सिद्ध नहीं हो रहे हैं, तो ‘अवैध गुंट करने का अपराध हुआ’ यह नहीं कह सकते ।
८. इन सभी बातों की ओर गौर से देखते हुए संबंधित सभी साधकों को निरपराध मुक्त किया जा रहा है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात