गंगानदी से आशीर्वाद पाने के लिए भगीरथ-जैसी भक्ति करो !

प्रस्तुत लेख में गंगा का महत्त्व, आध्यात्मिक रहस्य, धार्मिक आधार और गंगादशहरा व्रत का फल आदि के संबंध में विवेचन किया गया है ।

१. गंगा तीर्थदेवता !

गंगा केवल नदी नहीं, श्रेष्ठतम तीर्थदेवी भी है । इसलिए, यह भारतवासियों के लिए प्राणों से अधिक प्रिय है । भक्तों के पाप धोने का कार्य ईश्‍वर ने इसे सौंपा है । गंगा व्यक्ति को स्नान से, तो नर्मदा केवल दर्शन से शुद्ध करती है ।

 

२. गंगादशहरा के पर्वकाल में क्या करना चाहिए ?

गंगादशहरा संपूर्ण भारत में बडे भक्तिभाव तथा श्रद्धायुक्त अंतःकरण से मनाया जाता  है । इसके दस दिनों के व्रत में – तीन प्रकार के शारीरिक, तीन प्रकार के शाब्दिक और चार प्रकार के मानसिक कुल १० प्रकार के पाप नष्ट होते हैं । इसलिए, इस त्योहार को दशहरा कहते हैं ।

अ. इस काल में प्रतिदिन सवेरे गंगास्नान कर, गंगा से प्रार्थना करनी चाहिए ।

आ. गंगा के किनारे बैठकर गंगास्तोत्र पढना चाहिए ।

इ. गंगा नदी दूर हो, तब किसी भी नदी में स्नान करें और उस समय ‘हर गंगे भागीरथी, हर गंगे भागीरथी’ ऐसा जप करें । यह जप, घर में स्नान करते समय भी कर सकते हैं । १० दिन गंगा-स्नान न कर सकें, तब अंतिम दिन स्नान करना चाहिए ।

ई. गंगा की स्वर्ण-प्रतिमा कलश पर रखकर उसकी १० प्रकार के फूलों से, मिट्टी के १० दिये जलाकर तथा दशांग-धूप दिखाकर, पूजा करनी चाहिए ।

उ. प्रसाद के लिए १० प्रकार के फल लेने चाहिए ।

ऊ. ‘श्री गंगादेव्यै नमः’, यह नामजप करना चाहिए । प्रतिदिन गंगा-आरती करनी चाहिए ।

ए. गाय के घी का दीप जलाकर, गंगा में प्रवाहित करना चाहिए ।

 

३. गंगादशहरा काल में होनेवाले लाभ

अ. गंगा शुद्ध प्रेम का मूर्तरूप है । इसलिए, साधक इन १० दिनों में उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रयत्न कर सकते हैं । वंश बढाने के लिए भी नदियों की पूजा की जाती है । इसलिए, गंगापूजन का विशेष महत्त्व है । गंगा नदी में घी के दिये प्रवाहित करने से वंश बढता है ।

आ. गंगादशहरा पूजन में ब्राह्मण को १० आम अर्पण करने से बांझपन नष्ट होता है ।

इ. गंगाजल से पितरों के लिए तर्पण करने पर, उनसे अक्षय आशीर्वाद मिलता है । तर्पण करनेवाले पुत्र को भी लाभ होता है, ऐसा महर्षि व्यास ने कहा है ।

 

४. गंगा का आध्यात्मिक महत्त्व

४ अ. गंगा-स्नान से देहशुद्धि : गंगा में स्थित दैवी पदार्थों से शरीर शुद्ध होता है, इससे स्नानकर्त्ता मनुष्य का ब्रह्मांड से संबंध स्थापित होता है । मनुष्य को देवत्व प्राप्त कराने की क्षमता गंगा नदी के जल में होने के कारण, प्रत्येक को जीवन में न्यूनतम एक बार गंगास्नान करना चाहिए ।

४ आ. पूर्वजोंको गति देनेवाला : गंगाजल पीने से ७ पीढियों का उद्धार होता है । गंगा नदी की सात्त्विकता ८ प्रतिशत है ।

४ इ. मोक्षमार्ग का मार्ग ! : गंगा का किनारा सिद्धक्षेत्र है । गंगादर्शन, पूजन, स्नान, जलप्राशन और गंगाजल से पितृतर्पण ये मोक्ष के पांचसूत्री मार्ग हैं । गंगाजल से शरीर के रोग नष्ट होते हैं । इसके आचमन से वाणी शुद्ध होती है, जिससे मंत्र सिद्ध होते हैं ।

४ ई. इच्छापूर्ति : गंगाजल से अभिषेक करने पर, देवता की मूर्ति जागृत होती है । गंगामाता भक्त की सभी इच्छाएं पूर्ण करती है ।

४ उ. मनःशुद्धी : मन को शुद्ध करने की क्षमता केवल गंगाजल में है ।

४ ऊ. शारीरिक क्षमता बढना : गंगाजल पीने से शरीर की रोगों से लडने की क्षमता बढती है । अपचन, जीर्णज्वर, अतिसार, आंव, दमा आदि रोग नष्ट होते हैं । घाव ठीक करने की क्षमता केवल गंगाजल में है ।

 

५. गंगाजल ७० प्रतिशत प्रदूषित

गंगाजल आधा से एक घंटे में अपना प्रदूषण दूर करती है । इसलिए, गंगाजल कभी अशुद्ध नहीं होता । ब्रह्मदेव ने कहा है, ‘गंगा जैसा तीर्थ नहीं’ ।

६. गंगा नदी का प्रदूषण रोकिए !

भारत को पवित्र करनेवाली, इसे आध्यात्मिक बल और तेजस्विता देनेवाली तथा सबका पाप हरनेवाली गंगा को प्रदूषण से बचाना हमारा कर्तव्य है । गंगा में कारखाने का दूषित पानी मत छोडिए । इसमें आधेजले शव मत बहाइए, कूडा मत फेंकिए । गंगानदी में कपडे मत धोइए । इससे हम पर गंगा माता की कृपा होगी । गंगादशहरा के उपलक्ष्य में यही संदेश है । सरकार को गंगा की शुद्धि पर अधिक ध्यान देना चाहिए । गंगा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगीरथ बनो !

– श्री. श्रीकांत भट, अकोला

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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