श्रीक्षेत्र काशी के दशाश्वमेध किनारे पर श्री बंदीदेवी का मंदिर है । यह देवी ५१ शक्तिपिठों मेंसे एक है । देवी के दायी ओर वेणीमाधव, बायी ओर दो मारुति, अक्षत वड, वासुकी(नाग) तथा बीच में प्रयागेश्वर की प्रतिमा हैं । जिन्हें प्रयाग को जाना असंभव रहता है, वे श्रद्धालु यहां आकर दर्शन करते हैं ।
इस देवी को पाताल की देवी माना जाता है; किन्तु श्रीविष्णु की आज्ञा से देवी दशाश्वमेध किनारे पर निवास करती है । हिन्दु श्री बंदीदेवी को ताला तथा चाबी अर्पण करते हैं । देवीभक्तों की यह श्रद्धा है कि, ताला-चाबी अर्पण करने से देवी प्रसन्न होती है ।
बंदीदेवी का इतिहास
श्रीराम तथा लक्ष्मण को अहिरावण तथा महिरावण के बंदीवास से मुक्त करने के लिए देवी ने उनके साथ युद्ध किया । अहिरावण तथा महिरावण को पराजित कर श्रीराम तथा लक्ष्मण को बचानेवाली देवी अर्थात् उन्हें बंदीवास से मुक्त करनेवाली देवी अर्थात् बंदीदेवी ! अतः देवी को ताला-चाबी अर्पण की जाती है । देवी का मूल नाम ‘श्री निगड भंजनी’ है । श्रद्धालुओं की यह श्रद्धा है कि, देवी के आशीर्वाद से न्यायालयीन प्रक्रिया में सफलता प्राप्त होती है ।
(संदर्भ : ‘बनारस टाइम्स’ संकेतस्थल)