अनुक्रमणिका
- १. चैत्र प्रतिपदा को वर्षारंभ दिन मनाए
- २. चैत्र प्रतिपदा को नववर्षारंभ दिन मनाने का आध्यात्मिक कारण
- ३. सप्तलोकोंकी सात्त्विकता में वृद्धि होना एवं पाताल से अनिष्ट शक्तियोंद्वारा होनेवाले आक्रमणोंकी मात्रा भी कम रहना
- ४. ब्रह्मतत्त्व सर्वाधिक प्रक्षेपित होना
- ५. प्रजापति तरंगें सर्वाधिक मात्रा में पृथ्वी पर आना
- ६. धर्मलोक से धर्मशक्ति की तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आना
- ७. वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहना
- ८. साढेतीन मुहूर्तोंमें से एक
१. चैत्र प्रतिपदा को वर्षारंभ दिन मनाए
वर्षारंभ का दिन अर्थात नववर्ष दिन । इसे कुछ अन्य नामोंसे भी जाना जाता है । जैसे कि, संवत्सरारंभ, विक्रम संवत् वर्षारंभ, वर्षप्रतिपदा, युगादि, गुडीपडवा इत्यादि । इसे मनाने के अनेक कारण हैं ।
अ. वर्षारंभ मनाने का नैसर्गिक कारण
भगवान श्रीकृष्णजी अपनी विभूतियोंके संदर्भ में बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं,
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।।
(श्रीमद्भगवद्गीता – १०.३५)
इसका अर्थ है, ‘सामोंमें बृहत्साम मैं हूं । छंदोंमें गायत्रीछंद मैं हूं । मासोंमें अर्थात् महीनोंमें मार्गशीर्ष मास मैं हूं; तथा ऋतुओंमें वसंतऋतु मैं हूं ।’
सर्व ऋतुओंमें बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु । इस काल में उत्साहवर्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है । शिशिर ऋतु में पेडोंके पत्ते झड चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतु के आगमन से पेडोंमें कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं । कोयल की कूक सुनाई देती है । इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजी की विभूतिस्वरूप वसंत ऋतु के आरंभ का यह दिन है ।
आ. वर्षारंभ मनाने के ऐतिहासिक कारण
१. इस दिन रामने वालीका वध किया ।
२. शकोंने प्राचीनकालमें शकद्वीपपर रहनेवाली एक जाति हुणोंको पराजित कर विजय प्राप्त की ।
३. इसी दिनसे ‘शालिवाहन शक’ प्रारंभ हुआ; क्योंकि इस दिन शालिवाहनने शत्रुपर विजय प्राप्त की ।
२. चैत्र प्रतिपदा को नववर्षारंभ दिन मनाने का आध्यात्मिक कारण
भिन्न-भिन्न संस्कृति अथवा उद्देश्य के अनुसार नववर्ष का आरंभ भी विभिन्न तिथियोंपर मनाया जाता हैं । उदाहरणार्थ, ईसाई संस्कृति के अनुसार इसवी सन् १ जनवरी से आरंभ होता है, जबकि हिंदु नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है । आर्थिक वर्ष १ अप्रैल से आरंभ होता है, शैक्षिक वर्ष जून से आरंभ होता है, जबकि व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है ।
अ. ब्रह्मांड की निर्मिति का दिन
ब्रह्मदेव ने इसी दिन ब्रह्मांड की निर्मिति की । उनके नाम से ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ । सत्ययुग में इसी दिन ब्रह्मांड में विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुण से निर्गुण-सगुण स्तर पर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वी पर आया ।
आ. सृष्टि के निर्माण का दिन
ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की, तदूपरांत उसमें कुछ उत्पत्ति एवं परिवर्तन कर उसे अधिक सुंदर अर्थात परिपूर्ण बनाया । इसलिए ब्रह्मदेवद्वारा निर्माण की गई सृष्टि परिपूर्ण हुई, उस दिन गुडी अर्थात धर्मध्वजा खडी कर यह दिन मनाया जाने लगा ।
– ब्रम्हपुराण
अर्थात, ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सत्ययुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिंदु संस्कृति के अनुसार कालगणना भी आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है । यह दिन महाराष्ट्र में ‘गुडीपडवा’ के नाम से भी मनाया जाता है । गुडी अर्थात् ध्वजा । पाडवा शब्द में ‘पाड’ का अर्थ होता है पूर्ण; एवं ‘वा’ का अर्थ है वृद्धिंगत करना, परिपूर्ण करना । इस प्रकार पाडवा शब्द का अर्थ है, परिपूर्णता ।
३. सप्तलोकोंकी सात्त्विकता में वृद्धि होना एवं पाताल से
अनिष्ट शक्तियोंद्वारा होनेवाले आक्रमणोंकी मात्रा भी कम रहना
वर्षारंभ के दिन प्रक्षेपित तरंगोंका सप्तलोकोंपर परिणाम होता है । इससे उन लोकोंकी सात्त्विकता में वृद्धि होती है । रज-तम की मात्रा कम होने के कारण पाताल से अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमण की मात्रा भी कम रहती है । वर्षारंभ के दिन सगुण ब्रह्मलोक से प्रजापति, ब्रह्मा एवं सरस्वतीदेवी की सूक्ष्मतम तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । उनमें से ९० प्रतिशत तरंगें इस ब्रह्मलोक की अधोदिशा में विद्यमान लोकोंकी ओर तथा १० प्रतिशत तरंगें ऊर्ध्व दिशा में जाती हैं । अधोदिशा में स्वर्गलोक, शिवलोक, नागलोक, भुवलोक, भूलोक एवं सप्त पाताल, इन लोकोंसे प्रवाहित होते समय इन तरंगोंका इन लोकोंपर परिणाम होता है । इन सभी लोकोंकी शुद्धता ३ प्रतिशत होती है । उनकी सात्त्विकता में भी ३ प्रतिशत वृद्धि होती है । इस कारण सप्तपातालोंमें रज-तम की मात्रा इस दिन ३ प्रतिशत से कम होती है, जिससे पाताल से होनेवाले अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणोंकी मात्रा भी कम होती है ।
४. ब्रह्मतत्त्व सर्वाधिक प्रक्षेपित होना
अन्य दिनोंकी तुलना में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ब्रह्मदेव की ओर से सगुण-निर्गुण ब्रह्मतत्त्व, ज्ञानतरंगें, चैतन्य एवं सत्त्वगुण ५० प्रतिशत से भी अधिक मात्रा में प्रक्षेपित होता है ।
५. प्रजापति तरंगें सर्वाधिक मात्रा में पृथ्वी पर आना
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रजापति तरंगें सबसे अधिक मात्रा में पृथ्वीपर आती हैं । इस दिन सत्त्व गुण अत्यधिक मात्रा में पृथ्वी पर आता है । अतः यह दिन वर्ष के अन्य दिनोंकी तुलना में सर्वाधिक सात्त्विक होता है ।
अ. प्रजापति तरंगे पृथ्वी पर आने से होनेवाले लाभ
वनस्पति अंकुरने की भूमि की क्षमता में वृद्धि होती है । तो बुद्धि प्रगल्भ बनती है । कुओं-तालाबोंमें नए झरने निकलते हैं ।
६. धर्मलोक से धर्मशक्ति की तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आना
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन धर्मलोक से धर्मशक्ति की तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आती हैं । पृथ्वी के पृष्ठभाग पर स्थित धर्मबिंदु के माध्यम से यह ग्रहण की जाती हैं, तत्पश्चात् आवश्यकता के अनुसार भूलोक के जीवोंकी दिशा में वह प्रक्षेपित की जाती हैं ।
७. वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहना
इस दिन भूलोक के वातावरण में रजकणोंका प्रभाव अधिक मात्रा में होता है, इस कारण पृथ्वी के जीवोंका क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंका प्रभाव भी कम रहता है । इस कारण वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहता है ।
८. साढेतीन मुहूर्तोंमें से एक
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढेतीन मुहूर्त होते हैं । इन साढेतीन मुहूर्तोंकी विशेषता यह है, कि अन्य दिन शुभकार्य करने के लिए मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनोंका प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त ही होता है ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’