श्री. दुर्गेश परूळकर ने अपने सहकारियों के साथ
देवद (पनवेल) के सनातन आश्रम को दी सदिच्छा भेट !
देवद (पनवेल), २४ दिसम्बर – डोंबिवली के गीता अभ्यास मंडल के संस्थापक, लेखक तथा व्याख्याता श्री. परूळकर ने पत्नी श्रीमती मेधा परूळकर, साथ ही मंडल के १८ सभासदों के साथ सनातन आश्रम को २४ दिसम्बर को सदिच्छा भ्रमण किया । आश्रम का दर्शन करते समय उन्होंने यह उद्गार व्यक्त किए कि, ‘जब जब मैं सनातन संस्था के आश्रमों को भ्रमण
करता हूं, उस समय मुझे रामायण का स्मरण होता है । वसिष्ठ ऋषि ने स्वयंशासित समाज के संदर्भ में जो लिखा है, वह मुझे सनातन आश्रम में प्रतीत होता है ।’ आश्रम के साधक श्री. शशांक जोशी ने उन्हें आश्रम में की जानेवाली सेवाओं के संदर्भ में जानकारी दी । हिन्दु जनजागृति समिति के श्री. सतीश कोचरेकर ने उन्हें सनातन संस्था, हिन्दु जनजागृति समिति के संकेतस्थलों के संदर्भ में जानकारी दी । साथ ही उनके साथ साधना के संदर्भ में चर्चा की तथा उनके शंकाओं का निरसन भी किया ।
परात्पर गुरु परशराम पांडेजी ने श्री. दुर्गेश परूळकर का आदर किया । साथ ही सनातन के ‘अध्यात्म विश्वविद्यालय’ यह ग्रंथ भी भेंट स्वरूप दिया । उस समय परात्पर गुरु परशराम पांडेजी ने उपस्थितों को मार्गदर्शन भी किया ।
सनातन के कार्य में भी श्री. परूळकर का सहकार्य !
क्षणिकाएं
१. परात्पर गुरु पांडे महाराज के मार्गदर्शन के समय उपस्थित सभासदों मेंसे कुछ सभासद भावविभोर हुए ।
२. जब सभासद नतमस्तक होकर नमस्कार कर रहे थे, उस समय परात्पर गुरु पांडे महाराज भी उन्हें नमस्कार कर रहे थे ।
गीता अभ्यास मंडल के सभासद श्री. विशाल प्रभु ने भी परात्पर गुरु पांडे महाराज द्वारा किए गए अमूल्य मार्गदर्शन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की ।
श्री. दुर्गेश परुळकर की विनम्रता तथा संतों के प्रति होनेवाला आदरभाव !
उस समय श्री. दुर्गेश परुळकर ने यह वक्तव्य किया कि, ‘‘परात्पर गुरु पांडेजी महाराज ने आज के युवकों का इंटरनेट का आध्यााqत्मक उदाहरण अत्यंत मार्मिक शब्दों में दिया है । साथ ही उन्होंने ‘मैं ९० वर्ष का होने के कारण मुझे इंटरनेट के संदर्भ में कुछ भी जानकारी नहीं है’, यह बताकर वास्तव में उनका वृद्धत्व अर्थात् परिपक्वता प्रदर्शित की । उनके इस माधुर्य से ही मेरा समाधान हुआ तथा उनके सामने कुछ वक्तव्य करने की मेरी इच्छा नही है । उनका मार्गदर्शन हम सभी हमारे मन में संचय करेंगे । ’’
भगवद्गीता से सीख प्राप्त कर स्वयं में विद्यमान
स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन करें ! – (परात्पर गुरु) पांडे महाराज
विष्णुसहस्रनाम में भगवंत को ‘वृद्ध’ संबोधा गया है । वर्तमान में ‘वृद्ध’ इस शब्द का अर्थ निरूपयोगी माना जाता है । प्रत्यक्ष में वृद्ध अर्थात वास्तव में परिपक्व हुआ ! आज इंटरनेट का युग है; किंतु वास्तव में आत्मा ही इंटरनेट है । प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान ‘मैं’ एक ही है । अंदर के द्रष्टा ने आवरण के अंदर के द्रष्टा के साथ संबंध जोडने से एकत्व दिखाई देगा । कलियुग में रज-तम की मात्रा अधिक है । अतः चैतन्य दृगोच्चर नहीं होता । मनुष्य उचित- अनुचित देखने की अपेक्षा दूसरे का आचरण देखकर उसी के अनुसार आचरण करता है तथा उसी से सुख प्राप्त करने का प्रयास करता है । बाह्य विश्व से प्राप्त होनेवाला आनंद तथा आत्मा एक ही है , इस भान से उत्सर्जित होनेवाले आनंद में भेद हैं या नहीं ?
भगवंत ने अर्जुन को शत्रु के साथ लडते हुए रणांगण पर भगवद्गीता कथन की । हमें भी उससे सीख प्राप्त कर स्वयं में विद्यमान स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन करना चाहिए । उसके लिए जो हमारा योगक्षेम करता है, उस भगवंत का स्मरण निरंतर करना चाहिए । परमेश्वर ने मुझे यहां क्यों भेजा है, मुझे क्या करना है, साथ ही मैं कहां से आया हूं, यह पहचानना जीवन का लक्ष्य है । स्वयं का कल्याण करने हेतु बाह्यांग के आवरण का विस्मरण कर अंतर्भूत चैतन्य की ओर देखना चाहिए ।