मुंबई में श्री महास्वामीजी का सुवर्णजन्म
जयंति महोत्सव भक्तिमय वातावरण में मनाया गया!
मुंबई, १६ दिसम्बर – चेंबुर के श्री हरिहरपुत्र भजन समाज मंदिर में ३ दिसम्बर से ११ दिसम्बर की कालावधी में श्री महास्वामीजी का सुवर्णजन्म जयंति महोत्सव भक्तिमय वातावरण में तथा बडे उत्साह से मनाया गया । उस समय श्री जगद्गुरु बद्री शंकराचार्य श्री विद्याभिनव श्री श्री कृष्णानंदतीर्थ महास्वामीजी को पृथक प्रकार के पुष्पहार अर्पण कर उनका सुवर्ण मुद्राभिषेक किया गया । इस मंगल समय पर सनातन संस्था की ओर से श्री. अभय वर्तक ने श्री महास्वामीजी के चरणों में कृतज्ञता का पुष्प अर्पण कर उन्हें ‘धर्मशिक्षण फलक’ नामक सनातन का ग्रंथ भेंट दिया । उस समय सुवर्णजन्म महोत्सव का प्रमुख सलाहगार श्री. एम् चंद्रमौळीस्वरन, सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता श्रीमती सौ. विजयलक्ष्मी वेंकटरमणी, सनातन संस्था के श्री. अभय वर्तक तथा हिन्दु जनजागृति समिति के मुंबई जनपद समन्वयक श्री. सागर चोपदार उपस्थित थे ।
श्री महास्वामीजी ने सनातन संस्था के कार्य के संदर्भ में प्रशंसनीय उद्गार व्यक्त किए । उन्होंने बताया कि, ‘सनातन धर्म की रक्षा हेतु तुम धीरोदात्तता से कार्य कर रहे हैं । तुम सभी का समर्पण भाव तथा श्रद्धा प्रशंसनीय है । तुम्हारे कार्य को मेरे आशीर्वाद हैं । मैं सनातन प्रभात कन्नड पत्रिका नियमित रूप से पढता हूं । तुम्हें कितने संकटों का सामना करना पडा है; अपितु आप का धमकार्य आरंभ ही है । मैं रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में एक बार आऊंगा ।
श्री जगद्गुरु बद्री शंकराचार्य संस्थान शकटपुरम् विद्यापीठ का इतिहास तथा कार्य !
१४ से १५ वे शतक में विजयनगर राज्य की ऐतिहासिक प्रविष्टी के कारण श्री जगद्गुरु बद्री शंकराचार्य संस्थान शकटपुरम् विद्यापीठ की पूरी जानकारी प्राप्त होती है । इसवी सन १३३८ में हुए परकीय आक्रमण के कारण जगद्गुरु श्री सत्यतीर्थ महामुनी बद्रीनाथ का त्याग कर अध्यात्मशास्त्र तथा धार्मिक प्रसार के कार्य में बाधाएं न आएं, ऐसा स्थान ढूंढते हुए दक्षिण की ओर गए । उन्होंने कर्नाटक में तुंगा नदी के किनारे पर शकटपुर यह क्षेत्र पीठ परंपरा की स्थापना के लिए उचित स्थान है, ऐसा विचार कर उसे ही अपना कार्यस्थल के रूप में चुना । उस समय से शकटपुरम साधना एवं तपश्चर्या के लिए विख्यात हुआ ।
संस्थान द्वारा वेद, वेदांत, शास्त्रों पर सभा आयोजित होती हैं । पृथक धार्मिक होम-हवन किए जाते हैं । वेदपाठशाला, गोशाला, अन्नछत्रं इत्यादि धर्मकार्य भी संपन्न होते हैं ।
स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात