वर्तमान संकटकाल में अनुभूति नहीं होती इस विचार से
निराश न हों, हिन्दू राष्ट्र हेतु प्रभु ने जीवित रखा, इस अनुभूति के लिए कृतज्ञ रहें !
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कुछ साधकों के साधना के प्रयास पहले की तुलना में अच्छे होने पर भी उन्हें अनुभूति नहीं आई; इस विचार से वे निराश हो जाते हैं । साधकों की अध्यात्म पर श्रद्धा दृढ करने के लिए भगवान अनुभूति देते हैं । किसी की अध्यात्म पर दृढ श्रद्धा हो तो भगवान उसे अनुभूति क्यों देंगे ?
वर्तमान संकटकाल में छठ तथा सातवें पाताल की अनिष्ट शक्तियों द्वारा साधकों पर प्राणघाती आक्रमण किए जा रहे हैं, तब भी गुरुकृपा के कारण साधक जीवित हैं । अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के कारण साधकों को विविध प्रकार के कष्ट होते हुए भी, गुरुकृपा से साधकों द्वारा राष्ट्र तथा धर्म के संदर्भ में कार्य हो रहा है । यह ध्यान रखकर अनुभूति नहीं आती इस विचार से साधक निराश न होकर, हिन्दू राष्ट्र हेतु भगवान ने जीवित रखा है और वे साधना भी करवा रहे हैं, इस अनुभूति हेतु निरंतर कृतज्ञ रहें तथा लगन से साधना करें ।
– (पू.) श्री. संदीप आळशी (१९.११.२०१७)
साधको, यदि मन में स्वयं की मृत्यु के विषय में विचार
आता हो अथवा ऐसे दृश्य दिखाई देेते हों, तो उसके लिए स्वसूचना लें !
कई साधकों को नामजप करते समय अथवा अन्य समय भी मेरी मृत्यु होगी, ऐसा दृश्य दिखाई देता है अथवा मन में इस प्रकार का विचार आता है । कुछ साधकों को ऐसा लगता है कि मेरी मृत्यु होने से पहले साधना में मेरी अपेक्षित प्रगति नहीं हुई इसलिए मेरा यह जन्म व्यर्थ हो जाएगा और इस विचार से वे अस्वस्थ हो जाते हैं ।
इस प्रकार के दृश्य दिखाई देना अथवा मन में विचार आना, आध्यात्मिक कष्ट का लक्षण है । यदि इन विचारों की तीव्रता अधिक हो, तो दिनभर में अधिकाधिक समय आगे दी स्वसूचना दें, जब मुझे स्वयं की मृत्यु के संबंध में दृश्य दिखाई देंगे अथवा मेरे मन में उससे संबंधित विचार आएंगे अथवा मुझे मुझसे अपेक्षित साधना न होने से मेरा यह जन्म व्यर्थ हो गया, ऐसा लगेगा, तब मुझे इसका भान होगा कि ये सब आध्यात्मिक कष्ट का लक्षण है; अतः मैं आध्यात्मिक उपचार करने पर बल दूंगा अथवा इस विषय में तुरंत उत्तरदायी साधकों से बात करूंगा । इस स्वसूचना के साथ साधक आध्यात्मिक उपचारों को भी बढाएं । इतना करने पर भी यदि ये विचार न रुकते हों, तो उत्तरदायी साधकों से पूछ लें । मृत्यु के विचार अथवा दृश्य में न फंसकर साधक अपनी साधना के प्रयास जारी रखें ।
इन विचारों की मात्रा घट जाने पर प्रक्रिया हेतु चुने हुए स्वभावदोष या अहं के पहलुआें पर स्वसूचना देना प्रारंभ करें ।
साधको, हमें केवल इसी जन्म में नहीं; अपितु जन्म-जन्मांतर एवं मृत्यु के उपरांत भी साधकों की आध्यात्मिक उन्नति करवा लेनेवाले महान गुरु प्राप्त हुए हैं, यह ध्यान रखें और गुुरुदेवजी के प्रति दृढ आस्था रखकर साधना के प्रयास कीजिए !
– (सद्गुरु) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१७.११.२०१७)
साधको, नामजप करते समय मन में यदि अर्थहीन विचार आते हों, तो वैखरी वाणी में नामजप करें !
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साधक अपने आध्यात्मिक कष्ट की तीव्रता के अनुसार प्रतिदिन कुछ समय बैठकर नामजप करते हैं । अनिष्ट शक्तियां नामजप के समय साधकों के मन के विचारों को बढाकर नामजप में बाधा उत्पन्न करने के प्रयास करती हैं । अतः एकाग्रता साध्य न होने से साधकों को नामजप से अपेक्षित लाभ नहीं होता । इसे टालने के लिए नामजप करते समय यदि मन में अर्थहीन विचार आते हों, तो एक बार कागद पर नामजप लिखकर उसकी ओर देखते हुए वैखरी वाणी में (उच्च स्वर में) नामजप करें । इससे विचारों की ओर ध्यान न जाकर वे अपनेआप ही अल्प हो जाएंगे और उससे नामजप प्रभावशाली ढंग से होगा; परंतु बडे स्वर में नामजप करते समय उससे अन्यों की सेवा में बाधा उत्पन्न न हो; इसकी ओर ध्यान रखें । आध्यात्मिक कष्ट से साधकों की रक्षा करनेवाला और चित्त पर नए संस्कार न हों; इसके लिए सहायता करनेवाले नामजप को भावपूर्ण एवं एकाग्रता के साथ करें !
– (सद्गुरु) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (११.११.२०१७)