एकादशी


एकादशी के दिन सर्व प्राणिमात्रों की सात्त्विकता बढती है, इसलिए यह व्रत करने से लाभ प्राप्त होता है । शैव तथा वैष्णव इन दोनों संप्रदायों में एकादशी का व्रत किया जाता है । इस व्रत का महत्त्व तथा उसके प्रकार इस संदर्भ का विवेचन इस लेख में किया गया है ।

 

१. देवता

श्रीविष्णु

एकादशी इस व्रत की देवता श्रीविष्णु है ।

 

२. प्रकार

एकादशी के स्मार्त एवं भागवत ऐसे दो प्रकार हैं । जिस समय एक ही पक्ष में ये दो भेद संभव होंगे, उस समय पंचांग में यह स्पष्ट किया जाता है कि, पहले दिन स्मार्त तथा दूसरे दिन भागवत एकादशी है । शैव लोग स्मार्त एकादशी, तो वैष्णव लोग भागवत एकादशी का पालन करत हैं । प्रत्येक मास में दो, इस प्रकार वर्ष में चोवीस एकादशियां आती हैं । उनके संदर्भ की जानकारी आगे दी है । मास की दोनों एकादशियां करना उत्तम; किंतु यदि वह संभव नहीं है, तो न्यूनतम शुद्ध एकादशी तो करनी चाहिए ।

मास शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष
चैत्र कामदा वरूथिनी
वैशाख मोहिनी अपरा
जेष्ठ निर्जला योगिनी
आषाढ शयनी कामिका
श्रावण पुत्रदा अजा
भाद्रपद परिवर्तिनी इंदिरा
आश्विन पाशांकुशा रमा
कार्तिक प्रबोधिनी फलदा
 मार्गशीर्ष  मोक्षदा  सफला
 पौष  प्रजावर्धिनी  षट्तिला
 माघ  जयदा  विजया
 फाल्गुन  आमलकी  पापमोचनी

 

 ३. विशेषताएं

अ. सर्व व्रतों में यह एक मूलभूत व्रत है ।

आ. अन्य व्रतों के अनुसार यह व्रत संकल्प से विधीपूर्वक आरंभ करने कीआवश्यकता नहीं है ।

इ. कालानुसार प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान सत्त्व, रज एवं तम गुणों की मात्रानुसार परिवर्तन होता है । एकादशी के दिन सभी प्राणिमात्रों की सात्त्विकता सर्वाधिक रहती है । अतः उस समय साधना करने से उसका अधिक लाभ प्राप्त होता है ।

 

४. व्रत करने की पद्धति

एकादशी को कुछ भी खाने का त्याग कर केवल पानी एवं सुंठ साखर ग्रहण करना सर्वोत्तम है । यदि वह संंभव नहीं है, तो अनशन के पदार्थ ग्रहण कर सकते हैं । एकादशी को अनशन कर दूसरे दिन पारणे करते हैं ।

अ. आषाढी एकादशी

आषाढी एकादशी का नाम लेते हैं, तो आंखों के सामने पहले आती है, पंढरपुर की यात्रा ! २४ एकादशियों में इस एकादशी का एक विशेष महत्त्व है । यह कहा जाता है कि, इस दिन के व्रत में सभी देवताओं का तेज इकट्ठा हो जाता है ।

आ. कार्तिकी एकादशी

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे।

इ. निर्जला एकादशी (भीमसेनी एकादशी)

१. तिथी

जेष्ठ शुद्ध एकादशी

२. इतिहास

‘पांडवों में भीम का आहार विक्षलण था । भीम को सभी एकादशियों का अनशन करना संभव नहीं था; इसलिए उसने व्यासों के उपदेशानुसार जेष्ठ शुद्ध एकादशी को पानी का भी त्याग कर अनशन किया तथा सभी एकादशियों के उपवास के पुण्य का लाभ प्राप्त किया ।’

३. महत्त्व

निर्जला एकादशी का व्रत विधीपूर्वक करने से पूरे वर्ष में अन्य किसी भी एकादशी न करते हुए भी सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है ।

ई. कामदा एकादशी

‘ललिता ने कामदा एकादशी का अनशन कर प्रार्थना करते ही पति ललित का पाप नष्ट हुआ । उसका राक्षसभाव नष्ट हुआ तथा उसने दिव्य देह धारण किया एवं वह पुनः गंधर्व बन गया ।’ – ऋषि प्रसाद (एप्रिल २०११)

 

५. एकादशी व्रत का महत्त्व

अ. पद्मपुराण में एकादशी के व्रत का महत्त्व इस प्रकार बताया गया है ।

अश्वमेधसहस्त्राणि राजसूयशतानि च ।

एकादश्युपवासस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।। – पद्मपुराण

अर्थ : अनेक सहस्र अश्वमेध यज्ञ तथा सेंकडो राजसूय यज्ञों को एकादशी के अनशन के सोलहवे कला इतना ही, अर्थात् ६ १/४ प्रतिशत इतना भी महत्त्व नहीं है ।

आ. ‘एकादशी के दिन ब्रह्मांड में कार्यरत विष्णुतत्त्व के कारण वायुमंडल विष्णुतत्त्वयुक्त लहरियों से भारित रहता है । अतः एकादशी के दिन तुलसीपत्र विष्णुतत्त्व की लहरी अधिक मात्रा में ग्रहण करती है तथा उससे उसकी आध्यात्मिक स्तर पर कार्य करने की क्षमता वृद्धिंगत होती है ।’ – कु. मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा ।

 

६. एकादशी का अनशन

‘यदि पंद्रह दिनों में एक दिन पूरी तरह से अनशन किया, तो वह शरीर के दोषों को जलाता है तथा १४ दिनों में आहारों का जो रस निर्माण होता है, उसका ओज में रूपांतर होता है; यही एकादशी अनशन की महिमा है । अन्यथा यह बताया गया है कि, गृहस्थाश्रमी को केवल शुक्लपक्ष के एकादशी का अनशन करना चाहिए; किंतु चातुर्मास में दोनों पक्ष के एकादशी का व्रत करना चाहिए ।’– ‘मासिक ऋषिप्रसाद’, अगस्त २००८

 

७. एकादशी के लाभ

‘पद्मपुराण’में एकादशी के लाभ इस प्रकार बताएं गए हैं ।

स्वर्गमोक्षप्रदा ह्येषा शरीरारोग्यदायिनी ।

सुकलत्रप्रदा ह्येषा जीवत्पुत्रप्रदायिनी ।

न गंगा न गया भूप न काशी न च पुष्करम् ।

न चापि वैष्णवं क्षेत्रं तुल्यं हरिदिनेन च । – पद्मपुराण आदिखंड

अर्थ : एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्य, अच्छी पत्नी तथा अच्छा पुत्र प्रदान करनेवाली है । गंगा, गया, काशी, पुष्कर, वैष्णव क्षेत्रों में से किसी भी क्षेत्र की तुलना एकादशी के साथ नहीं कर सकते । एकादशी को ‘हरिदिन’ अर्थात् विष्णु का दिवस संबोधित किया जाता है ।

 

८. एकादशी को तथा अन्य दिन तुलसीपत्र देखना

१. चैतन्य का प्रक्षेपण अल्प अधिक
२. विष्णुतत्त्व
२ अ. स्तर अकार्यरत-कार्यरत कार्यरत-अकार्यरत
२ आ. परिणाम व्यक्ति एवं वायुमंडल पर न्यून मात्रा में परिणाम व्यक्ति एवं वायुमंडल अधिक मात्रा में परिणाम
३. आनंद तथा शांति की मात्रा अल्प अधिक
४. सुगंध की मात्रा अल्प अधिक
५. उपाय करने का सामर्थ्य अल्प अधिक
६. अनिष्ट शक्तियों का भुवलोक का आक्रमण अल्प,  भुवलोक से आक्रमण सहन करने की तथा लौटाने की क्षमता अधिक अधिक, भुवलोक से दूसरे पाताळ तक  सहन करने की तथा उसे लौटाने की क्षमता

– कु. मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘सण, धार्मिक उत्सव एवं व्रतं’

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