१. प्रसंग तथा प्रासंगिक समाधान-योजना
अग्निशमन के लिए तत्परता जितनी महत्त्वपूर्ण है उतना ही अथवा उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण होता है यह निर्णय लेना कि क्या मैं अकेले ही आग का सामना करूं ? यह निर्णय लेना सरल हो, इसलिए कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत हैं । आगे दिए किसी भी एक अथवा अधिक प्रश्नों का उत्तर यदि हां में है, तो अग्निशमन का प्रयत्न न करें । अन्यथा आप के प्राण संकट में पड सकते हैं ।
अ. क्या आग अपने स्थान से अन्यत्र भी वेग से फैल रही है ?
आ. क्या आपके बचने के मार्ग की ओर पीठ कर आग बुझाना संभव नहीं ?
इ. क्या आपके बचने के एकमेव मार्गपर आग लगी है ?
ई. क्या आपके पास अग्निशमन के योग्य उपकरण नहीं हैं ?
उ. क्या आपके पास अग्निशमन का माध्यम समाप्त हो गया है ?
ऊ. क्या आग प्रतिबंधक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण आपके पास उपलब्ध नहीं हैं ?
ऐसे प्रसंगों में अग्निशमन का प्रयत्न न कर, आग के स्थान से तुरंत सुरक्षित स्थान पर जाएं तथा सहायता मांगें ।
१ अ. जलनेवाली वास्तु से स्वयं को बचाएं
आग लगे हुए कक्ष से अथवा भवन से बाहर निकलते समय सबसे अंत में आनेवाला व्यक्ति दरवाजा केवल बंद कर ले, उसे ताला न लगाए । ताला लगाने से अग्निशमन दल को सहायता करने में बाधा उत्पन्न होती है ।
१. आपातकालीन कार्य-योजना में बताए गए मार्ग से ही बाहर निकलें ।
२. आपातकालीन प्रसंगों में लिफ्ट का उपयोग कभी न करें ।
३. धुआं एवं विषैली वायुओं से बचने के लिए नीचे झुकें । स्वच्छ वायु भूमि के समीप होती है । आवश्यकता प्रतीत हो, तो भूमि पर औंधे लेट जाएं तथा हाथ-पैरों पर रेंगते हुए आगे बढें । पेट के बल रेंगते हुए आगे न जाएं । उष्णता के कारण धुएं का ऊर्ध्वगमन होता है तथा कुछ भारी विषैली वायु की सतह भूमि पर जम जाती है; इसलिए रेंगते समय सिर भूमि से लगभग ०.५ मीटर ऊंचाई पर रखना चाहिए ।
४. संभव हो, तो नाक एवं मुंह गीले कपडे से ढक लें ।
५. जलती हुई सीढियों से / कक्ष से जाते समय भीत से (दीवार से) सटकर ही चलें । भीत (दीवार) भवन के मुख्य ढांचे पर खडी होने के कारण दीवार के समीप का भाग सब से सुरक्षित होता है, जब कि अन्य भागों के ढहने की संभावना होती है ।
६. अनेक मालों की वास्तु होने पर सीढियां ही बचने का प्रमुख मार्ग होती हैं । अतः बिना घबराए, सावधानी तथा अनुशासन से बाहर निकलें ।
७. सीढियों पर आने के उपरांत एक ओर से ही नीचे उतरेंे । सीढियों की दूसरी ओर अग्निशमन तथा सहायकदल के लिए आने-जाने का रास्ता छोडें । भूल से भी पुन: ऊपर न जाएं ।
८. वास्तु से बाहर आने पर अग्निशमन दल तथा पुलिस दल को तुरंत घटना के विषय में सूचित करें ।
१ आ. स्वयं को आग लगने पर क्या करें ?
स्वयं को ही आग लगी हो, तो जहां हैं वहीं रुकें, भूमि पर लेट जाएं तथा भूमि पर लोटपोट न करें । इससे आग की लपटें दबकर बुझ जाएगी और आपके प्राण बच जाएंगे । कपडों को आग लगी हो, तो घबरा कर भागें नहीं (भागने से आग अधिक भडकने में सहायता मिलती है।)
१ इ. साथीदार को आग लगने पर क्या करें ?
साथीदार को आग लगने पर कंबल, लोई (ऊनी कंबल), सतरंजी (दरी) अथवा कोई भी मोटा कपडा जल रहे व्यक्ति पर लपेट दें ।
१. आग बुझने पर जले हुए कपडे शरीर से उतार दें ।
२. योग्य प्रथमोपचार दें । स्टोव का भभका उडने पर अथवा कडाही के तेल में आग लगने पर तथा घरेलू गैस की नली (रबड का पाईप) से वायु का रिसाव होनेकी आशंका हो, तो क्या करना चाहिए, इसका विवेचन भी अग्निशमन प्रशिक्षण ग्रंथ में दिया है ।
२. अग्नि प्रतिबंधक समाधान-योजना
अपने दैनिक व्यवहार के कुछ प्रातिनिधिक प्रसंगों में करने योग्य सर्वसाधारण उपायों के विषय में आगे जानकारी दी है ।
२ अ. बिजली व विद्युत-उपकरणों के कारण लगनेवाली आग
१. कार्य हो जाने पर विद्युत-उपकरणों का खटका (स्विच) बंद कर प्लग निकालकर रखें ।
२. विद्युत-उपकरण सुधारने के लिए खोलने पर तार ठीक ढंग से जोडे गए हैं, इसकी जांच कर लें । उपकरण का सुधार किसी कुशल विशेषज्ञ से ही करवाएं ।
३. विद्युत-उपकरण, विशेषकर इन उपकरणों के चलन यंत्र (मोटर) स्वच्छ रखें । उसपर धूल, तेल अथवा ग्रीस जमा न होने दें ।
४. कारखानों में उपयोग किए जानेवाले विद्युत हस्त-दीप से (इलेक्ट्रि हैंड लैंप से) लंबी तार (वायर) जुडी होने के कारण उसे जहां चाहें वहां ले जा सकते हैं । हस्त-दीप पर कांच का आवरण होना आवश्यक है; क्योंकि दीप की उष्णता के कारण तैलीय पदार्थ आग पकड सकते हैं ।
५. विद्युत-उपकरण / बटन के निकट ज्वलनशील पदार्थ न रखें ।
६. फ्यूज की तार जलने पर योग्य क्षमता की तार का ही उपयोग करें ।
७. किसी भी विद्युत उपकरण से जलने की अथवा अनैसर्गिक गंध आने पर उसे तुरंत बंद कर जांच कर लें । जलने की गंध आना, यह आग
लगने का प्राथमिक लक्षण है ।
८. किसी भी उपकरण पर अथवा बिजली के बटन पर उसकी क्षमता से अधिक विद्युतभार न डालें ।
९. बिजली के तार, पानी अथवा उष्ण भागों में न लगाएं । भूमि पर, गालीचे के नीचे, दरवाजे / खिडकी से उनकी रचना न करें ।
१०. गीले हाथों से विद्युत-उपकरणों को स्पर्श न करें ।
११. बिजली के तारों के जोड खुले न रखें । योग्य प्रकार के विद्युतरोधक पट्टी द्वारा (इन्स्युलेटिंग टेप से) उन्हें ढकें ।
२ आ. रसोईघर में लगी आग
१. रसोईघर की रचना सुरक्षा की दृष्टि से योग्य ढंग से करें ।
२. भोजन बनाते समय ढीले तथा घेरेवाले कपडे न पहनें, साडी का पल्लू ठीक से खोंस लें ।
३. स्टोव से गरम बरतन उतारत े समय सडं सी अथवा चिमट े का उपयोग करें । इस हेतु तौलिया, कपडा अथवा साडी के पल्लू का उपयोग करना धोखादायक होता है ।
४. घरेलू उपयोग का गैस का चूल्हा, स्टोव अथवा ओवन के चलते घर छोडकर बाहर न जाएं ।
५. जब घर में कोई भी न हो तब अथवा सोने से पूर्व मोमबत्तियां एवं तेल के दीप बुझा दें ।
६. घर में उपयोग किया जानेवाला गैस का चूल्हा अथवा स्टोव सदैव ऊंचाई पर रखें । भूमि पर कभी न रखें ।
७. लकडी की अलमारी, लकडी की पटिया (फली), पर्दे, कपडे इत्यादि ज्वलनशील वस्तुएं स्टोव से दूर रखें ।
८. छोटे बच्चों को रसोईघर में खेलने न दें ।
९. माइक्रोवेव ओवन का उपयोग करते समय ध्यान रखें । वह बाह्यतः ठंडा लग भी रहा हो, तब भी भीतर के खाद्यपदार्थ का तापमान अधिक हो सकता है । ओवन में रखा पदार्थ यदि आग पकड ले, तो विद्युतप्रवाह तुरंत बंद कर दें एवं आग बुझने तक भट्टी का (ओवन का) द्वार न खोलें ।
१०. माचिस की तील्ली जलाते समय शरीर से दूर रखें । जलती हुई तील्ली फेंकने से पूर्व वह बुझ गई है न, इसकी पुष्टि कर लें ।
११. स्वच्छता, आग टालने की समाधान-योजना का मूलमंत्र है ।
(विस्तृत विवेचन हेतु पढें : सनातन का ग्रंथ अग्निशमन प्रशिक्षण)
– ग्रंथ के संकलनकर्ता : श्री. नितिन विनायक सहकारी [बी.ई. (एम.), मुख्य अभियंता, मर्चंट नेवी] (समाप्त) ॐ
आगामी काल में भीषण आपदा से बचने हेतु साधना करना तथा भगवान का भक्त बनना अपरिहार्य !
भावी आपातकाल का धैर्यपूर्वक सामना किया जा सके इस हेतु सनातन संस्था ने, आगामी युद्धकाल में संजीवनी सिद्ध होनेवाली ग्रंथमाला प्रकाशित की है । सभी यह ग्रंथमाला अवश्य पढें तथा उस में वर्णित विविध प्रकार की उपचार पद्धतियां सीख लें । तथापि हम सूचीदाब, प्रथमोपचार, मुद्रा आदि कितनी भी उपचार पद्धतियां सीख लें, तब भी इन सबका उपयोग हम तभी कर पाएंगे, जब त्सुनामी, भूकंप जैसी कुछ क्षणों में सहस्रों नागरिकों का संहार करनेवाली महाभयंकर आपदाओं में जीवित बचेंगे ! ऐसी आपदाओं में हमें कौन बचा सकता है ? तो केवल भगवन !
भगवान हमारी रक्षा करें, ऐसा लगता हो, तो हमें साधना तथा भक्ति करनी चाहिए । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में भक्तों को वचन भी दिया है, न मे भक्तः प्रणश्यति । (अर्थ : मेरे भक्तों का विनाश कभी नहीं होगा) । इसका दूसरा अर्थ यह है कि किसी भी संकट से तरने हेतु साधना करना अनिवार्य है ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ `अग्निशमन प्रशिक्षण`