१. पंडित जसराज के ४-५ वर्ष पूर्व सुने आलाप अचानक नींद में सुनाई देना
लगभग ४-५ वर्ष पूर्व मैंने ‘देवों के देव महादेव’ नामक धारावाहिक की कुछ कडियां देखी थीं । उसमें बीच-बीच में पंडित जसराज के विशेषता से परिपूर्ण आलाप सुने । तत्पश्चात् मुझे उसका विस्मरण हुआ था;किंतु ४ माह पूर्व मुझे नींद में पंडित जसराज के आलाप लगातार सुनाई देने लगे । यह ध्यान में नहीं आ रहा था कि, ऐसा क्यों हो रहा है ? तत्पश्चात् मैंने इस धारावाहिकके पाश्र्वसंगीत की ध्वनिचक्रिका तथा पंडित जसराज के आवाज की ध्वनिचक्रिका सुनी । उस समय जो ज्ञान मुझे प्राप्त हुआ, वह इस प्रकार है …
२. एक वाहिनी पर ‘देवों के देव महादेव’ धारावाहिक के पार्श्वसंगीत के संदर्भ में प्राप्त ज्ञान
अन्य धार्मिक धारावाहिकों के पाश्र्वसंगीत में लगभग १-२ प्रतिशत सात्त्विकता होती है; किंतु इस मालिका के कुछ संगीत में लगभग ७ से १० प्रतिशत सात्त्विकता है । इसका कारण है संगीतकार की साधना तथा संगीत में अधिकांश भारतीय वाद्यों का उपयोग ।
३. संगीतकार का आध्यात्मिक स्तर तथा संगीत में सात्त्विकता की मात्रा
संगीतकार का आध्यात्मिक स्तर | संगीत में सात्त्विकता की मात्रा |
४० | १० |
५० | २० |
६० | ३० |
४. स्वरों से कमलशुद्धि करना
नाभी द्वारा आनेवाले अक्षर, सूक्ष्म कंपन तथा आलाप के संयोग से स्वरमिलाप होता है । इस प्रक्रिया से उत्पन्न सात्त्विकता से स्वाधिष्ठान तथा उससे आगे के चक्र के कमल की एक-एक पंखुडी की अर्थात कुंडलीचक्र की शुद्धि होती है, इसे ही स्वरों से कमलशुद्धि करना, ऐसा कहा जाता है ।
५. नाभी से आनेवाले स्वरों से शिव का शीघ्र प्रसन्न होना
जिस समय अधिकांश शुद्ध स्वर नाभी से आने लगते हैं, उस समय उस गीत को अंतर्गान का स्तर प्राप्त होता है । इस गायन से शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं ।
६. गायन के आलापों के प्रकार गायन के तीन प्रकार हैं ।
६ अ. बाह्यगान (मुखगान)
स्वर केवल गले से गाए जाते हैं ।
६ आ. मध्यमगान
कुछ स्वर मुख से, तो कुछ स्वर नाभी से आते हैं । उदा. पंडित जसराज ।
६ इ. अंतर्गान
अधिकांश स्वर नाभी से आते हैं ।
७. पंडित जसराज की विशेषताएं
७ अ. आध्यात्मिक स्तर
पंडित जसराज एक ऋषितुल्य व्यक्तित्व हैं तथा उनका आध्यात्मिक स्तर ५९ प्रतिशत है ।
७ आ. पंडित जसराज के स्वर शुद्ध हैं । स्वर्गलोक में गाए जानेवाले आलापों की तुलना में पंडित जसराज ३० प्रतिशत दैवी आलाप गाते हैं । इससे मनुष्य स्वर्गलोक के गायन का ३० प्रतिशत अनुभव करता है ।
८. पंडित जसराज के आलाप सुनकर साधक को हुई अनुभूति मन अंतर्मुख हुआ । ईश्वर का तीव्रता से स्मरण हुआ । स्वरों की गहनता अनुभव हुई ।
९. संगीत की ध्वनिचक्रिका के संदर्भ में साधक के मन में आए विचार
समाज में संगीत के अनेक प्रकार हैं । जिन्हें सात्त्विक संगीत में रस है अथवा जिन्हें संगीत के माध्यम से साधना करना है, उनकी सहायताके लिए समझने में सुलभ सात्त्विक संगीत की हमें ध्वनिचक्रिका बनानी चाहिए । सनातन का संगीत संबंधी सैद्धांतिक जानकारी का ग्रंथ प्रकाशित होनेवाला है, उसके साथ-साथ हम सात्त्विक संगीत की ध्वनिचक्रिका भी प्रदान करें । उससे सात्त्विक संगीत कैसा होता है ?, यह सभी के ध्यान में आएगा । उसके लिए कुछ गिनेचुने हुए संगीत का संग्रह करना चाहिए ।
– श्री. राम होनप (सूक्ष्म द्वारा प्राप्त हुआ ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा । (१३.८.२०१६)