सारणी
१. देवालयमें प्रवेश करनेसे पूर्व पुरुष अपने सिर टोपी से ढकें
व्यावहारिक रूपसे भलेही यह उचित न लगे; परंतु देवालयकी सात्त्विकता बनाए रखनेके लिए कुछ स्थानोंपर ऐसी पद्धति है । देवालयमें देवतादर्शनके लिए जाना कर्मकांडका एक भाग है । नियमानुसार कोई भी धार्मिक कृत्य करते समय शरीर खुला रखकर केवल शालीनताके लिए धुले हुए वस्त्र अथवा रेशमी वस्त्र परिधान करनेकी परंपरा है । इससे उस विधिकी पवित्रता दीर्घकालतक बनी रहती है एवं जीवको उससे प्रक्षेपित चैतन्यका लाभ अधिक प्रमाणमें मिल पाता है । अंगरखा अथवा शर्ट रज-तम धूलकणोंसे घनीभूत होता है । इसे परिधान करनेसे देवालयकी सात्त्विकता भी अल्प होती है।
२. स्त्री अपने सिर पल्लूसे ढकें
कुछ देवस्थानोंमें, जैसे कि वैष्णोदेवीके दर्शनके लिए जाते समय सिर ढकनेकी परंपरा है । वैष्णोदेवीके दर्शनार्थी सिरपर लाल रंगका पवित्र वस्त्र बांधते हैं । इसी वस्त्रको ‘देवीकी चुनरी’ कहते हैं । जागृत देवस्थानके परिसरमें, अर्थात देवस्थानसे एकसे डेढ किलोमीटरके अंतरपर आकृष्ट होनेवाले दैवी-तत्त्वके कारण वातावरणमें सात्त्विकताका प्रक्षेपण प्रचुर मात्रामें होता है । सात्त्विक वातावरणमें जानेसे जागृत आत्मशक्तिको दीर्घकालतक बनाए रखनेके लिए ब्रह्मरंध्रपर पवित्र आवरण रखना आवश्यक है। यहां ध्यान रहे कि, जिनमें भाव है अथवा जिनका आध्यात्मिक स्तर उच्च है, वे उपरोक्त नियमोंका पालन किए बिना नमस्कार करें, तो भी भाव अथवा आध्यात्मिक स्तरके कारण उन्हें उतना ही लाभ मिलता है ।
(संदर्भ-सनातनका ग्रंथ-‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ?’)