पाठशाला के उपप्राचार्य श्री. बासरगांव सर ने २ माह पूर्व सनातन के ग्रंथ देखने के पश्चात् पाठशाला के छात्रों पर संस्कार हो, साथ ही भविष्य की पिढी सुसंस्कारित होकर समाजव्यवस्था उत्तम रहें; इसलिए मार्गदर्शन की इच्छा व्यक्त की थी । पाठशाला के प्राचार्य श्री. होर्तीकर सर से भेंट करने के पश्चात् उन्होंने भी छात्रों को मार्गदर्शन करने के लिए बताया । दोनों के भी मन में सनातन संस्था के प्रति आदर प्रतीत हुआ । ‘इससे यह प्रतीत हुआ कि, यह केवल सनातन संस्था के ग्रंथों का चैतन्य तथा गुरु की कृपा का परिणाम है ।’ – श्री. आप्पासाहेब सांगोलकर, पंढरपुर
उमदी (जनपद सांगली) – २५ नवम्बर को यहां के एम्.वी. हायस्कूल तथा ज्युनियर महाविद्यालय के छात्रों को ‘व्यक्तिमत्व विकास के लिए स्वभावदोष-निर्मूलन तथा गुणसंवर्धन आवश्यक’ इस विषय पर मार्गदर्शन आयोजित किया गया था । सनातन संस्था के साधक श्री. आप्पासाहेब सांगोलकर ने वक्तव्य किया । अपने वक्तव्य में उन्होंने यह आवाहन किया कि, ‘व्यक्तिमत्व विकास, सुसंस्कार तथा आदर्श जीवन के लिए स्वभावदोष तथा अहं निर्मूलन प्रक्रिया करने से स्वयं में अंतर्भूत विकार नष्ट होकर गुणसंवर्धन होने सहायता होती है । स्वभावदोष-निमूर्लन के लिए आवश्यकता नुसार स्वयंसूचना लेने से स्वयं में अंतर्बाह्य परिवर्तन होता है । व्यक्ति के स्वभावदोष ही उसके जीवन में आनेवाले तनावों का प्रमुख कारण है । आनंदी जीवन जीने के लिए स्वभावदोष-निर्मूलन तथा गुणसंवर्धन करें ।’
उस समय व्यासपीठ पर प्राचार्य होर्तीकर, पर्यवेक्षक खरोशी तथा उपप्राचार्य बासरगांव उपस्थित थे । इस मार्गदर्शन का लाभ ८ वी से १२ वी कक्षा तक के १ सहस्त्र ४५१ छात्रों ने ऊठाया । कार्यक्रम का सूत्रसंचालन श्री. घनश्याम चौगुले ने किया ।
क्षणिकाएं
१. मार्गदर्शन के संदर्भ में अभिभावक, अध्यापक तथा छात्रों ने उपप्राचार्य श्री. बासरगांव को बताया कि, ‘आज का विषय हमें अत्यंत अच्छा प्रतीत हुआ ।’
२. कुछ अध्यापकों ने मार्गदर्शन के पश्चात् उत्स्फूर्त रूप से लगभग ४५ मिनट खडे रहकर शंका निरसन का लाभ ऊठाया ।
३. अध्यापकों ने सनातन संस्था के ग्रंथों की मांग की ।
४. मार्गदर्शन के पश्चात् आभारपत्रक प्रस्तुत किए गए ।
५. श्री. आप्पा सांगोलकर के हाथों पाठशाला के छात्रों का आदर किया गया ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात