‘भावी भीषण संकटकाल में औषधियां पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेंगी । इसलिए अभी से ही औषधीय वनस्पतियों का रोपण करें । वनस्पतियों का रोपण करने पर वे बढकर उपयोग करनेयोग्य बनने तक कुछ अवधि लगता है । घरेलू औषधियां बनाकर उनका उपयोग करना सीखना पडता है । इस हेतु इन वनस्पतियों का रोपण अभी तुरन्त ही करना आवश्यक है ।
टिप्पणी : यह सूचना घर के आसपास औषधीय वनस्पतियों का रोपण करने के संदर्भ में है । खेतों में बडी मात्रा में औषधीय वनस्पतियों की रोपण करने के संदर्भ में जानकारी शीघ्र ही प्रकाशित की जाएगी ।
१. इन दिनों में बोनेेयोग्य औषधीय वनस्पतियों का अभी रोपण करें !
सामान्यतः वनस्पतियों का रोपण वर्षा ऋतु के आरंभ में करना उत्तम माना जाता है; परन्तु संकटकाल समीप आने के कारण उतने समय तक रुकना लाभदायी नहीं होगा । साधारणतया वनस्पति के रोपण हेतु वनस्पति के बीज, शाखा का टुकडा, जड से निकलनेवाला नया अंकुर अथवा पौधा, कंद, रोपवाटिकामें बनाए गए पौधे इत्यादि का उपयोग किया जाता है । सर्दी के दिनोंमें बीजों से अंकुर निकलने तथा तने के टुकडों में जड निकलने की मात्रा अल्प होती है । कंद भी सुप्तावस्था में होते हैं । इस कारण अधिक ठंड हो, तो बीज, तने के टुकडे, कंद इनका रोपण करने की अपेक्षा बनेबनाए पौधे लगाएं । अधिक ठंड न हो अथवा ठंड घटनेपर अन्य पद्धतियों से भी रोपण कर सकते हैं । उसका नियोजन भी अभी करके रखें ।
२. स्थानीय स्तर पर पौधे प्राप्त कर तुरन्त रोपण करें !
‘घरेलू औषधियों के लिए प्रधानता से रोपण करनेयोग्य औषधीय वनस्पतियों की सूची’ आगे दी है । हो सकता है कि, कुछ साधकों के घर के आसपास इस सूची में अंतर्भूत पौधे अथवा उस वनस्पति के मातृवृक्ष (जिस पेड से नवीन पौधे निर्माण करना संभव है, ऐसे परिपक्व वृक्ष) पहले से ही लगें हो, जैसे घृतकुमारी, अडूसा, निर्गुंडी, देशी सहजन, पारिजात । कुछ पौधे कृषि विभाग अथवा कृषिविद्यापीठ की रोपवाटिकाआें से अथवा निजी रोपवाटिकाआें से मिल सकते हैं, उदा. अच्छी गुणवत्ता का बडा आंवला, कागजी नींबू । कुछ औषधीय वनस्पतियों के पौधे स्थानीय आयुर्वेदीय महाविद्यालयों, वन विभाग की रोपवाटिकाआें से मिल सकते हैं । इन वनस्पतियों के पौधे स्थानीय स्तर पर उचित मूल्य देकर मिल सकते हों, तो साधक तुरन्त उनका रोपण करें । पौधे कहां मिलेंगे, इसकी जानकारी प्राप्त करने में सबका समय न जाए, इसलिए केंद्र के साधक एकत्रित नियोजन करें अथवा एक साधक पौधों के विषय में जानकारी प्राप्त करने का दायित्व लेकर यह जानकारी समय सीमा में वहां के सभी साधकों को उपलब्ध कराए ।
पौधे लगाने की विधि ज्ञात न हो, तो स्थानीय जानकार व्यक्ति से पता कर लें और पौधे लगाएं । पौधे लगाने की उचित पद्धति शीघ्र ही प्रकाशित होनेवाले सनातनके ग्रंथ ‘औषधीय वनस्पतियों का रोपणकरें !’ इस में दी है ।
३. बडी मात्रा में औषधीय वनस्पतियों के पौधे अथवा मातृवृक्ष उपलब्ध हों, तो सूचित करें !
कुछ स्थानों पर कुछ औषधीय वनस्पतियां बडी मात्रा में उपलब्ध होती हैं, जैसे कोंकण प्रदेश में चिरचिरा (अपामार्ग) बडी मात्रा में खरपतवार के रूप में दिखाई देता है । कुछ खेतों की बाड में निर्गुंडी, अडूसा जैसे पेड बडी मात्रा में लगाए जाते हैं । इन पेडों के तनों के टुकडे रोपण हेतु उपलब्ध करवाए जा सकते हैं । हरड, बहेडा, अर्जुन इन वृक्षों के नीचे उनके बहुत सारे फल गिरते हैं । उनका भी रोपण हेतु उपयोग किया जा सकता है । पान के पत्तों के बगीचे होते हैं । इन लताआें के तनों के टुकडों से पौधे बना सकते हैं । कोंकण में वर्षा के उपरांत कुछ दिन शतावरी की लताएं दिखती हैं । किसी की भूमि में शतावरी की लताएं बडी संख्या में हो सकती हैं ।
हमें पूरे भारत में औषधीय वनस्पतियों का रोपण करना है । जिनके पास ये वनस्पतियां न हो, उन्हें वे उपलब्ध करानी हैं । इस हेतु बडी संख्या में पौधे बनाने होंगे। जिन साधकों को आगे बताए औषधीय वनस्पतियों के पौधे अथवा मातृवक्ष बडी संख्या में निशुल्क मिल सकते हैं, वे यह जानकारी केंद्र के उत्तरदायी साधक के पास दें तथा केंद्र के उत्तरदायी साधक यह जानकारी जनपद सेवक (जिलासेवक) को दें । सभी जनपदों की जानकारी प्राप्त होने हेतु १३.११.२०१७ तक ‘गूगलशीट’ शेयर की जाएगी । उसमें दिए स्तंभों के अनुसार जिलासेवक मातृवृक्षों की जानकारी लें ।
४. पौधे न मिलें, तो मांग करें !
स्थानीयक स्तर पर पौधे उपलब्ध न हों अथवा उनका मूल्य कुछ अधिक हो, तो साधक आवश्यक पौधों की मांग जिलासेवक को दें । सभी जिलों को औषधीय वनस्पतियों की मांग लेने हेतु ‘गूगलशीट’ शेयर की जाएगी । उसमें दिए स्तंभों के अनुसार जिलासेवक पौधों की मांग लें ।
४ अ. अध्ययन कर मांग करें !
मांग करने से पूर्व साधक यहां बताए सूत्रों का अध्ययन करें ।
४ अ १. घर में अथवा घर के आसपास सूर्यप्रकाश की उपलब्धता
वनस्पति भलीभांति बढें इस हेतु उसे दिनभर में न्यूनतम ३ घंटे अच्छा सूर्यप्रकाश मिलना आवश्यक होता है । किसी को गैलरी में रोपण करना हो, तो वहां उतना सूर्यप्रकाश उपलब्ध होता है ना, इसका अभ्यास करें ।
४ अ २. वनस्पति की प्राकृतिक उपलब्धता
अडूसा, नीम, चिरचिरा (अपामार्ग) जैसी कुछ औषधीय वनस्पतियां घर के पास स्वाभाविक रूप से उपलब्ध रहती हैं अथवा पहले से ही लगी हो सकती हैं । ऐसी वनस्पतियों की मांग ना करें । जिनके घर के आसपास ऐसी वनस्पतियां उपलब्ध हैं, वे पुनः उनका रोपण न करें । स्थानीय स्तर पर जो वनस्पतियां निशुल्क उपलब्ध हो सकती हैं, उनकी भी मांग न करें ।
४ अ ३. वनस्पति का आकार तथा स्थान की उपलब्धता
आगे दी गई औषधीय वनस्पतियों की सूची में वनस्पतियों के आकार के अनुसार उनका वर्गीकरण किया है । अपनी भूमि में कौनसे आकार की कितनी वनस्पतियां लगा सकते हैं, इसका अध्ययन कर मांग करें । सदनिका (फ्लैट) अथवा घर की गैलरी में वनस्पति लगानी हो, तो प्रधानता से सूची में अंतर्भूत सूत्र ‘अ’ एवं ‘आ’ में बताई वनस्पतियां चुनें । किसी के पास पर्याप्त स्थान उपलब्ध न हो, तो समीप रहनेवाले २-३ साधक मिलकर विभिन्न औषधीय वनस्पतियां चुन सकते हैं ।
४ अ ४. विकारोंके अनुसार आवश्यकता
घरके व्यक्तियों को वर्तमान में हुए अथवा भविष्य में संभावित विकारों को ध्यान में रखकर वनस्पतियां चुनें ।
५. समय सीमा निर्धारित कर वनस्पति लगाएं तथा उनका ब्यौरा दें !
साधक जो वनस्पतियां अभी लगा सकते हैं, ऐसी वनस्पतियां १ मास की समय सीमा निर्धारित कर लगाएं । वर्षा के दिनों में जो वनस्पतियां लगानी हैं, उनका नियोजन अभी करें । वनस्पति लगाने पर इस सेवा का ब्यौरा जिलासेवक को दें । सभी जिलों के लिए इस ब्यौरे के लिए ‘गूगलशीट’ शेयर की जाएगी । उसमें दिए स्तंभों के अनुसार जिलासेवक सबसे ब्यौरा लें । जिलासेवक यह सेवा साधकों से करावा लें ।
६. घरेलू औषधियों के लिए प्रधानता से लगानेयोग्य औषधीय वनस्पतियोंकी सूची
आगे दी अधिकतर औषधीय वनस्पतियां भारत में सर्वत्र पाई जाती हैं । ये वनस्पतियां नित्य जीवन के कई रोगों में उपयुक्त हैं । ये वनस्पतियां औषधि के साथही अन्य कई कारणों से उपयुक्त हैं । वनस्पति के नामके आगे संक्षेप में उनका उपयोग दिया है । आपके पास उपलब्ध स्थान के अनुसार इनमें से अधिकाधिक वनस्पतियां लगाएं । शीघ्र ही प्रकाशित सनातन के ग्रंथ ‘वनस्पतियों के औषधीय गुणधर्म (भाग १ एवं भाग २)’ में यह जानकारी विस्तार से दी है ।
अ. गमले में लगाई जा सकनेयोग्य छोटी वनस्पतियां (इन्हें गैलरी में रख सकते हैं ।)
अनु क्र | वनस्पति का हिन्दी नाम | किस विकार में उपयुक्त है? | अन्य उपयोग | रोपण हेतु उपयुक्त अंग |
१. | तुलसी (श्वेत अथवा श्याम) | सर्दी, खांसी, ज्वर, दमा, व्रण (जखम) और पेट में कृमि | नित्य पूजा | बीज |
२. | दूब (दूर्वा) * | उष्णता के विकार, रक्तस्राव और गर्भपात | ’’ | जड के टुकडे |
३. | घृतकुमारी (ग्वारपाठा) (श्वेत धब्बे रहित अथवा धब्बे युक्त) | कफ युक्त खांसी और जलना-झुलसना | चेहरे का सौंदर्य बढाना | नवीन पौधा (बिरवा) |
४. | कालमेघ * | ज्वर, कोष्ठबद्धता और कृमि | – | बीज |
५. | पुनर्नवा * | पथरी, मूत्र के विकार और सूजन | पत्तेदार भाजी | शाखा का टुकडा |
६. | मंडूकपर्णी (ब्राह्मी) * | निद्रा न आना, उच्च रक्तचाप और मस्तिष्क के विकार | शरबत | ’’ |
७. | खस | उष्णता के विकार | पीने के पानी में सुगंध लाने हेतु | नवीन पौधा (बिरवा) |
८. | देशी गेंदा | व्रण (जखम) | मच्छर दूर भगाने हेतु उपयुक्त और फूल हेतु वृक्ष | बीज |
९. | हलदी | व्रण (जखम) और मोटापा | रसोई में | कंद |
१०. | आमाहल्दी | भीतरी चोट और सूजन | – | ’’ |
११. | सुगन्धितृण (हरी चाय) | सर्दी, खांसी, ज्वर और लघुशंका के विकार | चाय का पर्याय | नवीन पौधा (बिरवा) |
१२. | भृंगराज | पेट के विकार, बाल झडना और उनका श्वेत होना | श्राद्धविधि | बीज |
१३. | चिरचिरा (अपामार्ग)* | दंतविकार | श्री गणपति, श्री अनंत आदि देवताआें की पत्रपूजा हेतु और दीपावली में अभ्यंग स्नान से पूर्व पाप निवारण हेतु | बीज |
१४. | अजवायन के पत्ते | भूख न लगना और कृमि होना | भजिए | शाखा का टुकडा |
१५. | बच | बेहोश होना और कफ के विकार | अनाज, पुस्तके आदि की कीडों से रक्षा | कंद |
१६. | अदरक (टिप्पणी १) | खांसी, अपच और संधिवात | रसोई | कंद |
१७. | ऐरावती (जख्मे हयात) * | पथरी | – | पान |
१८. | पुदीना (टिप्पणी २) | अपचन और पेट फूलना | रसोई | जडें |
१९. | अकरकारा * | दौरे आना, जीभ भारी होना और दंत विकार | – | शाखा का टुकडा |
२०. | ‘इन्सुलिन’का पेड(‘केमुक’ वनस्पति का प्रकार) * | मधुमेह | – | शाखा का टुकडा |
टिप्पणी १ – बाजार में मिलनेवाले पुराने (पक्व) अदरक के अंकुरों का रोपण हेतु उपयोग करें ।
टिप्पणी २ – बाजार में मिलनेवाले पुदीने के पत्तों का रसोई में उपयोग करें और जडयुक्त तने से रोपण करें ।
आ. गमले में लगाए जा सकते है; पर आधार देना आवश्यक है, ऐसी बेलवर्गीय (लता जैसी ) वनस्पतियां
अनु क्र | वनस्पति का हिन्दी नाम | किस विकार में उपयुक्त है ? | अन्य उपयोग | रोपण हेतु उपयुक्त अंग |
१. | गिलोय (अमृतबेेल) * | ज्वर, पीलिया और रोग प्रतिरोधक शक्ति अल्प होना | सदैव काढा बनाकर पीने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है । | शाखा का टुकडा |
२. | जाही * | व्रण (जखम) और मुंह में छाले होना | फूल | ’’ |
३. | पान के पत्तों की बेल | खांसी और दमा | देवतापूजन | ’’ |
४. | शतावरी * | दुर्बलता, गर्भाशय के विकार और शुक्राणुआें की संख्या अल्प होना | कंद की तरकारी | बीज अथवा कंद |
५. | हडजोड * | अस्थिभंग और संधिवात | शाखा का टुकडा | |
६. | पिप्पली | खांसी और अपचन | मसालों में हेतु उपयुक्त | ’’ |
७. | काली मिर्च की बेल | खांसी, दमा और अपचन | ’’ | ’’ |
८. | गुडमार | मधुमेह | – | ’’ |
इ. घर के आसपास की जमीन में लगानेयोग्य क्षुपवर्गीय वनस्पतियां
अनु क्र | वनस्पति का हिन्दी नाम | किस विकार में उपयुक्त है ? | अन्य उपयोग | पौधारोपण हेतु उपयुक्त अंग |
१. | अडूसा * | कफयुक्त खांसी, ज्वर, उष्णता के विकार और पीलिया | घर में सब्जी, फल आदि ताजी रखने हेतु | शाखा का तुकडा |
२. | निर्गुंडी * | शरीर में वेदनाऔर कृमि होना | अनाज में कीडे न हो इस हेतु | ’’ |
३. | श्वेत अथवा लाल देशी गुडहल | केश झडना, केेश श्वेत होना और स्त्रियोें के विकार | ’’ | ’’ |
४. | कागजी नींबू | अपचन और अम्लपित्त | रसोई | बीज |
५. | अर्क (श्वेत अथवा लाल) | संधिवात और जलोदर | देवतापूजन | बीज अथवा शाखा का टुकडा |
६. | अरंडी (सुरती अरंडी) (टीप) * | वात के सभी विकार | बीजों की दूध में पौष्टिक खीर बना सकते है । | ’’ |
टिप्पणी – सुरती अरंडी : हाथ की उंगलियों की भांति पत्ते के पांच भागोंवाली अरंडी । जैविक ईंधन के लिए उपयोग किया जानेवाला पीले गोल फल (मोगली) अरंडी नहीं ।
ई. घर के आसपास की भूमि में लगानेयोग्य १० से १५ फुट ऊंंचे छोटे वृक्ष
अनु क्र | वनस्पति का हिन्दी नाम | किस विकार में उपयुक्त है? | अन्य उपयोग | पौधारोपण हेतु उपयुक्त अंग |
१. | कढीपत्ता | कोलेस्टाल बढना और हृदय के विकार | रसोई | बीज |
२. | देशी सहजन | अस्थिभंग और अशक्तपणा | सब्जी | बीज अथवा शाखा का टुकडा |
३. | पारिजात | ज्वर | फूल | ’’ |
४. | आंवला | नेत्र विकार और पचनसंस्था के विकार | फल | श्रेष्ठ गुणवत्ता के कलम |
५. | कोकम | त्वचापर पित्त उभरना | रसोई | बीज |
६. | नागकेसर | लघुशंका, शौच आदि से रक्त आना | फूल | ’’ |
उ. घर के चारों ओर लगानेयोग्य बडे वृक्ष
अनु क्र | वनस्पतियोंके हिन्दी नाम | किस विकार में उपयुक्त है? | अन्य उपयोग | पौधारोपण हेतु उपयुक्त अंग |
१. | नीम | व्रण (जखम), मधुमेह और त्वचा के विकार | दांत धोने हेतु दातून | बीज |
२. | बेल | मधुमेह और रक्ताल्पता | देवतापूजन | ’’ |
३. | सीता अशोक (टीप) * | स्त्रियों के विकार | फूल | ’’ |
४. | हरड * | नेत्र विकार, कोष्ठबद्धता और पचनतंत्र के विकार | छाया | ’’ |
५. | बहेडा | खांसी और दमा | ’’ | ’’ |
६. | अर्जुन * | हृदय विकार | ’’ | ’’ |
टीप – अनेक शाखाआेंवाला, लाल रंग की कोमल पत्तियोंवाला और जिसके फूल गुच्छे मेें लगते हैं, वह अशोक । सजावटी पेड के रूप में लगाया जानेवाला, शंकू के आकार में सीधा बढनेवाला नकली अशोक नहीं ।
ऊ. अनाज की कमी होने पर, तथा सामान्यतः भी पेट भरने के लिए खानेयोग्य कंद
अनु क्र | वनस्पतियों के हिन्दी नाम | पौधारोपण हेतु उपयुक्त अंग |
१. | साबुकंद (टैपियोका) (टीप) * | शाखा काटुकडा |
२. | कणगर (कणगी) | कंद |
३. | शकर कंद | ’’ |
उक्त तालिका में जिन वनस्पतियों के नाम के सामने ‘*’ चिन्ह बना है, उन वनस्पतियों के रंगीन छायाचित्र सनातन के ग्रंथ ‘औषधीय वनस्पतियों का रोपण करें !’ में दिए हैं ।