जम्मू-कश्मीर के मध्यभाग में हरिपर्वत नामक एक विशेष टिली है । यह महाशक्ति का सिंहासन है । दिव्य माता शारिका भगवती को महात्रिपुरसुंदरी एवं राजराजेश्वरी भी कहा जाता है । १८ भुजाओंवाली श्री शारिकादेवी कश्मीर की ग्रामदेवता है । इस देवी के नामपर ही इस स्थान का नाम श्रीनगर पडा है ।
श्री शारिकादेवी का स्वरूप
यहां श्री शारिकादेवी महाश्रीयंत्र का रूप में हैं । यह स्वयंभु श्रीयंत्र एक ऊंची चट्टानपर है । इसमें वृत्ताकार रहस्यमयी छाप और त्रिकोणीय आकार हैं, साथ ही मध्यभाग में बिंदु है ।
श्री शारिकादेवी से संबंधित कथा
‘विशेष तद्वैत के अनुसार श्री भगवान की पत्नी है तथा वे ईश्वर एवं मनुष्य में माध्यम का काम करती हैं । इतिहासकारों के विचार में हरिपर्वत टिली एक समय में जलोभव नामक राक्षस के कारण एक बहुत बडा तालाब बन गई । तब भक्तों ने सहायता हेतु देवी पार्वती को पुकारा । तब देवी ने भक्तों की रक्षा हेतु आषाढ शुक्ल नवमी को मैना पक्षी का रूप धारण किया । इस पक्षी ने अपनी चोंच में दिव्य पत्थर ले आकर उसे जलोभव राक्षसपर फेंककर उसका वध किया और श्रीनगर को डुबने से बचाया । तत्पश्चात श्री शारिकादेवी ने हरि पर्वतपर ही स्थाईरूप से निवास किया ।
नवरात्रि में अर्थात कश्मीरी पंडितों के नववर्ष की कालावधि में भक्त नियमितरूप से प्रार्थना एवं पूजा-अर्चना हेतु हरि पर्वतपर आते हैं । श्री शारिकादेवी, मकदूमसाहिब एवं गुरुद्वारा छती पादशाही इन धार्मिक स्थलों के कारण कश्मीर के सभी लोग इस पर्वत को अत्यंत पवित्र मानते हैं ।