दुर्गाष्टमी

 

दुर्गाष्टमीके दिन देवीके अनेक अनुष्ठान करनेका महत्त्व है । इसलिए इसे `महाष्टमी’ भी कहते हैं । अष्टमी एवं नवमीकी तिथियोंके संधिकालमें अर्थात अष्टमी तिथि पूर्ण होकर नवमी तिथिके आरंभ होनेके बीचके कालमें देवी शक्तिधारणा / शक्ति धारण करती हैं । इसीलिए इस समय श्री दुर्गाजीके ‘चामुंडा’ रूपका विशेष पूजन करते हैं, जिसे `संधिपूजन’ कहते हैं ।

इस दिन बीजरूपी धारणासे ब्रह्मांडमें सरस्वतीतत्त्वका तेजस्वी आगमन होता है । इसीको ‘सरस्वती तत्त्वका आवाहनकाल’ कहते हैं । इस कालमें शक्तिका रूप प्रज्ञारूपी प्रगल्भतासे संचारित रहता है । ये शक्तिकी तारक रूपकी तरंगें होती हैं । इस कालमें सरस्वतीकी तारक तरंगोंके स्पर्शसे जीवकी आत्मशक्ति जागृत होती है एवं वह प्रज्ञा अर्थात Intellect में रूपांतरित होती है ।

 

१. बंगाल एवं महाराष्ट्र प्रांतोंमें अष्टमी मनानेकी पद्धतियां

बंगालमें अष्टमीके दिन देवीमांका षोडशोपचार पूजन करते हैं । इस पूजनमें माताको कमलके १०८ फूल अर्पित किए जाते हैं । कहीं-कहीं इस पूजनमें सोलह प्रकारके व्यंजन बनाकर देवीमांको ‘शोडष भोग’ भी चढाया जाता है । अष्टमीके दिन प्रातः शूचिर्भूत होकर वस्त्र, शस्त्र, छत्र, चामर इत्यादि राजचिह्न सहित पूजा करते हैं । यदि उस समय भद्रावतियोग हो तो यह पूजन सायंकालमें करते हैं तथा अर्धरात्रिको बलि समर्पित करते हैं । इसमें इक्षु अर्थात गन्ना, कुम्हडा अर्थात काशीफल; ऐश गर्ड एवं केला इत्यादिकी बलि अर्पित करते हैं । महाराष्ट्रमें अनेक स्थानोंपर अष्टमीके दिन देवीका विशेष पूजन होता है । इसमें चावलके आटेकी सहायतासे देवीका मुखौटा बनाते हैं । इस प्रकार चावलके आटेके मुखौटेवाली देवीको खडी मुद्रामें स्थापन कर उनका पूजन किया जाता है।

 

२. नवरात्रिकी अष्टमी तिथिपर चावलके आटेके मुखौटेवाली,
देवीकी मूर्ति बनाकर उनका पूजन करनेका शास्त्रीय आधार

नवरात्रोत्सव मनाना, अर्थात आदिशक्तिके मारक रूपकी आराधना करना । नवरात्रिमें प्रतिदिन श्री दुर्गादेवीका मारक तत्त्व उत्तरोत्तर बढता है । अष्टमीपर ब्रह्मांडमें आनेवाली श्री दुर्गादेवीकी मारक तरंगोंमें तांबिया अर्थात ‘रैडिश’ (Reddish) रंगकी तेज-तरंगोंकी अधिकता होती है । ये तेज-तरंगें अधिकांशतः वायु एवं आकाश तत्त्वोंसे संबंधित होती हैं, इसलिए इस दिन देवीको चावलके आटेसे बने मुखौटेसहित लाल साडीमें खडी मुद्रामें स्थापित करते हैं । चावल सर्वसमावेशक हैं अर्थात चावलमें देवताके सगुण एवं निर्गुण दोनों प्रकारकी तरंगोंको समान मात्रामें आकृष्ट करनेकी क्षमता होती है । इसी कारण अष्टमीके दिन ब्रह्मांडमें विद्यमान शक्तितत्त्वकी तेजप्रधान तरंगें चावलके आटेसे बने देवीके मुखौटेद्वारा अधिक मात्रामें आकृष्ट होती हैं । जिसका लाभ दर्शनार्थियोंको उनके भावानुसार प्राप्त होता है।

 

३. नवरात्रिकी अष्टमी तिथिपर श्री महालक्ष्मीदेवीकी स्थापना एवं पूजनका परिणाम

देवतापूजन एवं मंत्रपठनके कारण वास्तुशुद्धि होती है । वातावरण सत्त्वकण ग्रहण करनेके लिए पोषक बनता है ।

 

४. देवीके सामने गागर फूंकनेकी विधि

गागर फूंकना

नवरात्रिकी अष्टमीपर रात्रिमें श्री महालक्ष्मी देवीके सामने गागर फूंकी जाती है । गागर फूंकनेसे पूर्व उसका भी पूजन करते हैं । पूजनके उपरांत गागरको धूपपर पकडते हैं । यह धूप दिखाई गागर फूंकते हैं । वस्तुतः यह धार्मिक नृत्यका एक प्रकार है ।

अ. नवरात्रिकी अष्टमी तिथिपर देवीके समक्ष गागर फूंकनेका शास्त्रीय कारण

गागरको धूप दिखानेके उपरांत उसमें फूंकनेसे वायुतत्त्वकी सहायतासे गागरमें नाद उत्पन्न होता है । इस नादके कारण धूपमें विद्यमान अग्नि प्रदीप्त होकर क्रियाशील होती है । परिणामस्वरूप गागरमें तप्त ऊर्जाकी उत्पत्ति होती है, इस तप्त ऊर्जाको गति प्राप्त होती है एवं उससे वायुमंडलमें सूक्ष्म-नादका प्रक्षेपण भी होता है । इस नादसे देवीकी मूर्तिमें निहित देवत्व प्रकट होता है । तेजतत्त्वकी सहायतासे वह वायुमंडलमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंका नाश करता है । गागरसे प्रक्षेपित तेजतरंगों तथा धूपसे प्रक्षेपित सूक्ष्म-वायुके कारण व्यक्तिकी प्राणदेह एवं प्राणमयकोषकी शुद्धि होती है । साथही उसके पंचप्राणोंको गति प्राप्त होती है। परिणामस्वरूप पूजकके लिए वायुमंडलमें विद्यमान तेजतत्त्वरूपी देवीतत्त्व अधिक मात्रामें ग्रहण करना संभव होता है । संक्षेपमें कहें, तो गागर फूंकना अर्थात धूपकी सहायतासे एवं नादके माध्यमसे तेजतत्त्वकी ऊर्जाद्वारा देवीके मारक तत्त्वका आवाहन कर उसे जागृत करना ।

 

५. पूजनके उपरांत धूप दिखाई गागरमें फूंकनेपर होनेवाले परिणाम

अ. देवतापूजन एवं मंत्रपठणके कारण वास्तुशुद्धि होती है ।

आ. वातावरण सत्त्वकण ग्रहण करनेके लिए पोषक बनता है ।

इ. श्री महालक्ष्मीदेवीका पूजन करनेके उपरांत गागरका पूजन करनेसे गागरमें श्री दुर्गादेवीका तत्त्व आकृष्ट होता है ।

ई. गागरमें धूप दिखानेके कारण वायुतत्त्वसे संबंधित सात्त्विकता गागरमें संचयित होती है ।

उ. तथा गागरमें आकृष्ट देवीतत्त्वको भी धूपकी सहायतासे गति प्राप्त होती है ।

ऊ. फूंक लगानेपर गागरमें संचयित सात्त्विकता कार्यरत होती है और नाद तरंगोंके साथ गागरद्वारा प्रक्षेपित होती है ।

ए. उसी प्रकार गागरमें आकृष्ट देवीतत्त्व गागर फूंकनेवाली स्त्रीकी आवश्यकतानुसार तारक अथवा मारक रूपमें कार्यरत होता है ।

ऐ. गागरद्वारा तारक चैतन्य एवं मारक शक्ति किरणोंके रूपमें प्रक्षेपित होती है ।

ओ. नाद वायुसे भी सूक्ष्म होनेके कारण यह सात्त्विकता अल्प समयमें ही वातावरणमें संचारित होती है । इससे वातावरणकी भी शुद्धि होती है ।

इन सर्व बातोंसे यही समझमें आता है कि, अध्यात्म सूक्ष्मका शास्त्र है । इस शास्त्रको प्रत्येक व्यक्ति साधना कर अपनी क्षमतानुसार अनुभूत कर पाता है। साथही यह भी ध्यानमें आता है कि, जगतका कल्याण करनेवाली हमारी इस श्रेष्ठ धरोहरको संजोए रखना हमारा प्रथम कर्त्तव्य बनता है ।

 

६. आनंदकी अनुभूति देनेवाली देवीमांके प्रति कृतज्ञता
व्यक्त करनेके लिए बंगाल और महाराष्ट्र प्रांतोंमें अष्टमी मनानेकी पद्धतियां

बंगालमें अष्टमीके दिन देवीमांका षोडष उपचार पूजन करते हैं । इस पूजनमें माताको कमलके १०८ फूल अर्पित किए जाते हैं । कहीं-कहीं इस पूजनमें सोलह प्रकारके व्यंजन बनाकर देवीमांको `शोडष भोग’ भी चढाया जाता है । अष्टमीके दिन प्रात: शूचिर्भूत होकर वस्त्र, शस्त्र, छत्र, चामर इत्यादि राजचिन्हों सहित देवी भगवतीका पूजन करनेका विधान है । उस समय भद्रावतियोग होनेसे यह पूजन सायंकालमें करते हैं । अर्धरात्रिको बलि समर्पित करते हैं ।

महाराष्ट्रमें अनेक स्थानोंपर अष्टमीके दिन देवीका विशेष पूजन होता है । इसमें चावलके आटेकी सहायतासे देवीका मुखौटा बनाते हैं । खडी मुद्रामें देवीके इस रूपको विशेषकर लाल रंगकी साडी पहनाते हैं । इस देवीका पूजन करते हैं और देवीके सामने धूप दिखाई गई गागर फूंकते हैं । गागर फूंकनेसे पूर्व उसे हलदी-कुमकुम अर्पण कर उसका भी पूजन करते हैं । पूजनके उपरांत गागरको धूपपर पकडते हैं । यह धूप दिखाई गागर फूंकते हैं । नवरात्रिकी अष्टमीपर रात्रिमें श्री महालक्ष्मी देवीके सामने गागर फूंकी जाती है । वस्तुत: यह धार्मिक नृत्यका एक प्रकार है ।

1 thought on “दुर्गाष्टमी”

  1. नमस्ते । बहुत ही अच्छा लगा । बहुत ही अच्छी जानकारी है ।

    Reply

Leave a Comment