पितृपक्ष का महत्व

पितृपक्ष में क्या करना चाहिए ? श्राद्ध पक्ष क्या हाेता हैं ? पितृपक्ष में श्राद्ध करने में अडचन हो, तो क्या करें ?  इन सभी के बारें में अवश्य जान लें ।

व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसकी आत्मा को सद्गति मिले, इसलिए श्राद्ध करना – यह हिन्दू धर्म का वैशिष्टय है । प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष को (पितृपक्ष में) महालय श्राद्ध किया जाता है । श्राद्ध करने का महत्त्व, पद्धति, पितृपक्ष के नियम, पितृपक्ष में शुभकार्य करना निषिद्ध क्यों है, इसका कारण अवश्य जानेंं ।

हिंदु धर्ममें उल्लेखित ईश्वरप्राप्तिके मूलभूत सिद्धांतोंमेंसे एक सिद्धांत ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण, इन चार ऋणोंको चुकाना है । इनमेंसे पितृऋण चुकानेके लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है । माता-पिता तथा अन्य निकटवर्ती संबंधियोंकी मृत्योपरांत, उनकी आगेकी यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति प्राप्त हो, इस उद्देश्यसे किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’ ।

क्या पितृपक्ष में श्राद्ध करना आवश्यक है ?

हिंदु धर्म में उल्लेखित ईश्वरप्राप्ति के मूलभूत सिद्धांतोंमेंसे एक सिद्धांत ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण, इन चार ऋणों को चुकाना है । इनमें से पितृऋण चुकाने के लिए पितृपक्ष में ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है । माता-पिता तथा अन्य निकटवर्ती संबंधियोंकी मृत्योपरांत, उनकी आगेकी यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति प्राप्त हो, इस उद्देश्यसे किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’ । पितृपक्ष में श्राद्धविधि करने से अतृप्त पितरों के कष्टसे मुक्ति होनेसे हमारा जीवन भी सुखमय होता है ।

श्राद्ध के प्रकार

कहा जाता है की ‘जो श्रद्धा से किया जाए, वह श्राद्ध’ है । जिनका श्राद्ध में विश्वास नहीं है, ऐसे लोगों को यदि श्राद्ध के विषय में हिन्दू धर्म का आध्यात्मिक विज्ञान समझा दिया जाए, तब वे भी श्राद्ध पर विश्वास करने लगेंगे । परंतु,उस विश्वास का रुपांतर श्रद्धा में होने के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर,उसकी अनुभूति लेनी पडेगी । हिन्दू धर्म का एक पवित्र कर्म है । मानव जीवन में इसका असाधारण महत्त्व है । उद्देश्य के अनुसार श्राद्ध के अनेक प्रकार हैं ।

पितृदोष के कारण एवं उनका उपाय

वर्तमान काल में पूर्व की भांति कोई पितृपक्ष में श्राद्ध-पक्ष इत्यादि नहीं करता और न ही साधना करता है । इसलिए अधिकतर सभी को पितृदोष (पूर्वजों की अतृप्ति के कारण कष्ट) होता है ।
पितृदोष के कुछ लक्षण दिए हैं – विवाह न होना, पति-पत्नी में अनबन, गर्भधारण न होना, गर्भधारण होने पर गर्भपात हो जाना, संतान का समय से पूर्व जन्म होना, मंदबुद्धि अथवा विकलांग संतान होना, संतान की बचपन में ही मृत्यु हो जाना आदि । व्यसन, दरिद्रता, शारीरिक रोग, ऐसे लक्षण भी हो सकते हैं ।

पितृदोष क्या हैं ? उसपर उपाय क्या ? इसलिए अवश्य पढें ।

 

श्राद्धविधि के लिए उपयोग में लाई जानेवाली सामग्री तथा उसका शास्त्र

क्या आप जानते हैं कि क्यों …

१. दर्भ के बिना श्राद्धकर्म नहीं किया जाता ?
२. श्राद्धकर्म में काले तिल का उपयोग किया जाता है ?
३. श्राद्ध में चावल की ही खीर बनाई जाती है ?
४. भृंगराज एवं तुलसी के उपयोग से वायुमंडल शुद्ध होकर पितरों के लिए श्राद्धस्थल पर आना सुगम होता है ?

श्राद्ध के भोजन का अध्यात्मशास्त्र एवं श्राद्ध में भोजन परोसने की पद्धति

ब्राह्मण द्वारा ग्रहण किया गया अन्न पितरों को कैसे पहुंचता है ? श्राद्ध में अर्पित अन्न पितरों के लिए कितने काल तक पर्याप्त होता है ? यह जानने हेतू अवश्य पढें ।

पितृपक्ष में श्राद्ध करने में अडचन हो, तो उसे दूर करने का मार्ग

हिन्दू धर्म में इतने मार्ग बताए गए हैं कि पितृपक्ष में ‘श्राद्धविधि अमुक कारण से नहीं कर पाए’, ऐसा कहने का अवसर किसी को नहीं मिलेगा । इससे स्पष्ट होता है कि प्रत्येक के लिए श्राद्ध करना कितना अनिवार्य है ।

अपने पूर्वजोंके लिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर उनके आशिर्वाद अवश्य प्राप्त करें ।

 

श्राद्ध एवं पितृपक्ष से संबंधी शंकानिरसन

‘वर्तमान वैज्ञानिक युग की युवा पीढी के मन में ऐसी अनुचित धारणा उभरती है, ‘श्राद्ध’ अर्थात ‘अशास्त्रीय एवं अवास्तविक कर्मकांड का आडंबर’। धर्मशिक्षा का अभाव, अध्यात्म के विषय में अनास्था, पाश्‍चात्य संस्कृति का प्रभाव, धर्मद्रोही संगठनोंद्वारा हिंदू धर्म की प्रथा-परंपराओं पर सतत द्वेषपूर्ण प्रहार इत्यादि का यह परिणाम है । श्राद्ध के विषय में निम्नानुसार विचार भी समाज में दृष्टिगोचर होते हैं । पूजा-पाठ एवं श्राद्ध पक्ष पर विश्‍वास न करनेवाले अथवा समाजकार्य को ही सर्वश्रेष्ठ बतानेवाले कहते हैं, ‘पितरों के लिए श्राद्ध न कर, गरीबों को अन्नदान करेंगे अथवा किसी पाठशाला की सहायता करेंगे’ ! ऐसा अनेक लोग करते भी हैं ! ऐसा करना यह कहने समान है कि, ‘किसी रोगी पर शस्त्रक्रिया न करते हुए हम गरीबों को अन्नदान करेंगे अथवा पाठशालाओं की सहायता करेंगे।’

भारतीय संस्कृति का कथन है कि, जिस प्रकार माता-पिता एवं निकटवर्तीय परिजनों की जीवितावस्था में हम उनकी सेवा धर्मपालन समझकर करते हैं, उसी प्रकार उनकी मृत्यु के पश्‍चात् भी उनके प्रति कुछ कर्तव्य होते हैं । इन कर्तव्यों की पूर्ति एवं उनके द्वारा पितृऋण चुकाने का अवसर पितृपक्ष में श्राद्धकर्म से मिलता है।

पितृपक्ष से संबंधी अनुचित विचार एवं आलोचना का खंडन

विश्वके आरंभसे ही भूतलपर विद्यमान सनातन वैदिक धर्म (हिंदु धर्म), हिंदू धर्मग्रंथ, देवता, धार्मिक विधी, अध्यात्म आदि विषयोंपर अनेक व्यक्तियोंद्वारा आलोचना की जाती हैं । कुछ व्यक्तियोंको वह आलोचना सत्य प्रतीत होती है, तो अधिकांश व्यक्तियोंके ध्यानमें यह भी आता है कि, ‘यह आलोचना विषैली हैं’; किंतु उसका, खंडन करना असंभव होता हैं । कुछ विद्वान अथवा अभ्यासकों द्वारा भी अज्ञानके कारण अनुचित विचार प्रस्तुत किए जाते हैं ।
इस प्रकार सभी अनुचित विचार तथा आलोचना का उचित प्रतिवाद न होनेके कारण हिंदुओंकी श्रद्धा विचलित होती हैं तथा उसके कारण धर्महानि होती है । इस धर्महानिको रोकने हेतु हिंदुओंको बौद्धिक सामर्थ्य प्राप्त हो, इसी उद्देश्यसे यहा; अनुचित विचार एवं आलोचना के खंडन संबंधी विषयका विस्तृत विवेचन किया हैं ।

पितृपक्ष में श्री गुरुदेव दत्त नामजप करें !

भगवान दत्तात्रेय का नामजप पितृपक्ष में नियमित रुपसे करने से पितरों को शीघ्र गति प्राप्त होती है; इसलिए इस कालावधि में प्रतिदिन दत्त भगवान का नामजप न्यूनतम ६ घंटा (७२ माला) करें ।

१. श्री गुरुदेव दत्त तारक नामजप

२. श्री गुरुदेव दत्त मारक नामजप

३. ॐ ॐ श्री गुरुदेव दत्त ॐ ॐ तारक नामजप

४. ॐ ॐ श्री गुरुदेव दत्त ॐ ॐ मारक नामजप

यह विविध प्रकारके ‘श्री गुरुदेव दत्त’ के नामजप सुनने हेतु भेंट दे !

भगवान दत्तात्रेय के विविध प्रकार के नामजप

व्हिडीओ (Video)

श्राद्ध से संबंधित विविध व्हिडिओ देखने हेतु Video playlist पर क्लिक करें !

  • पितृपक्ष में महालय श्राद्ध कब करें ?
  • ब्राह्मणस्वागत और अन्नप्रोक्षण
  • श्राद्धीय भोजन का पूर्वायोजन
  • महालय श्राद्धविधी का ब्राह्मणभोजन
  • तर्पण

हिन्दुओं के लिए धार्मिक शिक्षा की आवश्यकता !

हाल ही में एक हिन्दी मासिक में समाचार छपा था कि शासन की ओर से ऑनलाइन श्राद्ध की सुविधा दी गई है । उसे पढकर मेरी स्थिति इस पर हंसे अथवा रोएं जैसी हो गई । श्राद्ध प्रत्यक्ष किया जाता है, यह शासन की समझ में क्यों नहीं आता, इस बात का मुझे आश्‍चर्य हुआ । जब, ऑनलाइन भोजन अथवा विवाह नहीं हो सकता, तब श्राद्ध कैसे हो सकता है ? इस पर भी आश्‍चर्य की बात यह है कि यह सुविधा देनेवाला शासन हिन्दुत्वनिष्ठों का है ! मुझे आशंका है कि श्राद्ध के नाम पर हिन्दुओं से करोडों रुपए कमाने के लिए ही शासन का हिन्दूप्रेम जागृत हुआ है ।

– (परम पूज्य) डॉ. आठवले (१३.२.२०११)

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  • श्राद्ध का महत्त्व एवं अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन
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  • मृत्युपरान्तके शास्त्रोक्त क्रियाकर्म
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