व्यक्तित्व विकास हमारे व्यवहार में सुधार करके हमारा आदर्श व्यक्तित्व विकसित करता है। अपने व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए अगर आप इंटरनेट पर सर्च करोगे तो आपको व्यक्तिगत आदतें, पारस्परिक संवाद कौशल आदि पर कई गाइड मिलेंगे। हम यहा व्यक्तित्व दोष निवारण पद्धती प्रस्तुत करते हैं, जो व्यक्तित्व विकास का सबसे अनदेखा हिस्सा है। अपने व्यक्तित्व की खामियों (जिन्हें व्यक्तित्व दोष कहा जाता है) को संबोधित करके, आप दीर्घकालिक सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होंगे जिससे आपके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की गुणवत्ता में समग्र वृद्धि होगी।
आइए हम अपनी छिपी हुई क्षमता को खोजने और उजागर करने की इस यात्रा पर एक साथ चलें। यदि आपको किसी सहायता की आवश्यकता है, तो आप हमारे निःशुल्क ऑनलाइन सत्संग में शामिल हों। आप लिंक पर क्लिक कर सकते हैं (लिंक आर्टिकल के अंत में है) और सत्संग के लिए साइन अप कर सकते हैं।
मन, संस्कार एवं स्वभाव क्या होता है ?
आधुनिक मानसशास्त्र के अनुसार मन के दो भाग होते हैं । पहला भाग, जिसे हम ‘मन’ कहते हैं, वह ‘बाह्यमन’ है । दूसरा अप्रकट भाग ‘चित्त (अंतर्मन)’ है । मन की रचना एवं कार्य में बाह्यमन का भाग केवल १० प्रतिशत जबकि अंतर्मन का ९० प्रतिशत है ।
हमसे होनेवाली क्रिया अथवा कृति तथा व्यक्त अथवा अव्यक्त (मन में उभरी) प्रतिक्रिया हमारे संस्कारों पर निर्भर करती है । इस संदर्भ में और जानने हेतू अवश्य पढें – मन, संस्कार एवं स्वभाव क्या होता है ?
व्यक्तित्व विकास का रहस्य
अपनी यात्रा शुरू करने से पहले, हम आपको सलाह देते हैं कि आप व्यक्तित्व दोष निवारण प्रक्रिया पर निम्नलिखित सू्त्र अवश्य पढ़ें। व्यक्तित्व दोष निवारण प्रक्रिया सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा तैयार की गई है, जो अब सेवानिवृत्त अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सम्मोहन-उपचार विशेषज्ञ हैं। यह आपकी कमियों को पहचानने और उन्हें गुणों से बदलने की एक सरल लेकिन शक्तिशाली तकनीक है जो आपके व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी। यही वास्तविक व्यक्तित्व विकास का रहस्य है।
जीवन के किसी भी कठिन प्रसंग में मानसिक संतुलन खोए बिना, धैर्य से उसका सामना करने एवं सदैव आदर्श कृति होने के लिए उत्तम मनोबल व आदर्श व्यक्तित्व आवश्यक है । स्वभावदोेष व्यक्ति के मन को दुर्बल बनाते हैं जबकि गुण आदर्श व्यक्तित्व के विकास में सहायक होते हैं । इसीलिए स्वभावदोष-निर्मूलन कर, गुण-संवर्धन करना आवश्यक है ।
सुखी जीवन में एक बडी बाधा हैं ‘स्वभावदोष’
दुःख का मूल कारण है अपने स्वभावदोष । स्वभावदोषों के कारण ही जीवन में प्रत्येक क्षण संघर्ष व तनावपूर्ण स्थिति निर्माण होती है । अनेक बार हम अपने जीवन के तनावों के लिए आसपास के वातावरण, स्थिति व अन्य व्यक्तियों के स्वभावदोषों को उत्तरदायी मानते हैं; परंतु अपने स्वभावदोष ढूंढनेका प्रयास ही नहीं करते । परिणामत: स्वभावदोष वैसे ही रहते हैं और मनःशांति नहीं मिलती । इसलिए जीवन सुखमय होने के लिए स्वभावदोषों की बाधा दूर करना अनिवार्य है ।
व्यक्तित्व विकास प्रक्रिया प्रारंभ करने से पूर्व ध्यान देनेयोग्य सूचनाएं
व्यक्तिगत जीवन को सुखी बनाने में ‘स्वभावदोष’ एक बडी बाधा है’ । इसलिए अपनी बुद्धि को स्वभावदोष-निर्मूलन का महत्त्व समझाना आवश्यक है । तत्पश्चात बुद्धि द्वारा ही इस महत्त्व को दृढ निश्चय कर पुनः-पुनः मन पर अंकित करना चाहिए । फलस्वरूप प्रक्रिया को गंभीरता, प्रामाणिकता एवं नियमितरूप से आचरण में ला सकते हैं ।प्रक्रिया के सर्व चरण भली-भांति समझकर प्रक्रिया आचरण में लाएं । इस प्रक्रिया में अपने मनानुसार परिवर्तन न करें ।
सफल प्रक्रिया के लिए आवश्यक गुण, प्रक्रिया में आनेवाली प्रमुख बाधा एवं सूचनाएं अवश्य पढें ।
अब हम व्यक्तित्व विकास की प्रक्रीया जान लेंगे
इस के लिए हमें चाहिए
स्वभावदोषोंपर विजय प्राप्त करनेके लिए निम्नलिखित रूपरेखा समझ लें !
अपने स्वभावदोषोंकी सूची बनाना
व्यक्तित्व विकास हेतू अपनी कमियों को स्वीकार करना यह हमारा पहला चरण हैं । प्रत्येक व्यक्तिमें कुछ न कुछ दोष होते ही हैं। क्या आपकी कार्यक्षेत्र में, पासपडोसमें, मित्र-परिवारमें कोई ऐसा व्यक्ति है, जिसमें एक भी दोष नहीं है ?
नीचे दी हुवी Spreadsheet पर क्लिक करें. इसमें व्यक्तित्व दोषों की एक सूची है जो हमारे विकास में बाधक हैं। सूची का निष्पक्षता से अध्ययन करें और व्यक्तित्व दोषों की अपनी सूची तैयार करें।
स्वभावदोष सारणी लिखना
स्वसूचना बनाना
‘स्वसूचना’ अर्थात स्वयं से हुई अयोग्य कृति, मन में आए अयोग्य विचार एवं (व्यक्त अथवा अव्यक्त) प्रतिक्रिया के संदर्भ में स्वयं ही अपने अंतर्मन को (चित्त को) सूचना देना ।
स्वसूचनाओं के प्रकार
१. अपने स्वभावदोषों के उपचार हेतु स्वसूचनाओं के प्रकार
२. परिस्थिति के कारण, उदा. अन्यों के स्वभावदोष, अन्यों की बुरी स्थिति इत्यादिके कारण निर्माण होनेवाला तनाव दूर करने की पद्धति
अपने स्वभावदोषों के उपचार हेतु स्वसूचनाओं के प्रकार
स्वभावदोषों का चयन
प्रत्येक में अनेक स्वभावदोष होते हैं। जो स्वभावदोष तीव्र हैं, उन्हें पहले दूर करना महत्त्वपूर्ण है। तीव्र स्वभावदोष ‘स्वभावदोष सारणी’से कैसे पहचानें ? नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके आप अवश्य जान लें ।
स्वसूचना बनाते समय यह ध्यान में रखें !
स्वसूचनाकी वाक्यरचना सरल, संक्षिप्त एवं उचित शब्दों में होनी चाहिए । ‘स्वसूचना पद्धति ३ (प्रसंगका अभ्यास)’ इस पद्धति में सूचना सामान्यतः ८-१० पंक्तियों में होनी चाहिए । सूचनामें ‘न, नहीं’ आदि नकारात्मक शब्दोंका उपयोग न करें।
अभ्याससत्रों की संख्या निश्चित करना
स्वभावदोषों की तीव्रता के अनुसार स्वयंसूचना के अभ्याससत्रों की संख्या निश्चित करना एवं उन स्वयंसूचनाओं के अभ्याससत्र संपूर्ण सप्ताह नियमितरूप से करना
आत्मपरीक्षण करना
स्वयं आत्मपरीक्षण कर, अन्यों से भी स्वभावदोषों में हुई प्रगतिविषयक पूछताछ करना एवं प्रगति की सूचना बनाना
दण्ड अथवा प्रायश्चित लेना
स्वभावदोषमें सुधार न हो रहा हो, तो प्रायश्चित लें : कुछ लोगोमें स्वभावदोष दूर करनेकी गम्भीरता अल्प होती है, अपनी चूकके विषयमें खेद न होना, तीव्र स्वभावदोष इत्यादि कारणोंसे वे एक ही चूक बार-बार करते हैं । ऐसे समय प्रायश्चित लेना उपयुक्त सिद्ध होता है ।
नामजप करना एवं स्वभावदोष-निर्मूलन के लिए प्रार्थना करना
नामजप करना एक अच्छा संस्कार है । हम अपने मन पर जितने अधिकाधिक अच्छे संस्कार अंकित करेंगे, उतने ही मनके अयोग्य संस्कार क्षीण होकर धीरे-धीरे नष्ट होनेमें सहायता मिलती है । महर्षि वाल्मीकिकी कथा आपको ज्ञात ही है । वे डाकू थे; परन्तु रामजीके नामका जप कर वे ‘वाल्मीकि ऋषि’ बन गए !
स्वभावदोष-निर्मूलन के लिए प्रार्थना करना
प्रार्थना करनेका अर्थ है ईश्वरके चरणोंमें याचना करना । स्वयंके स्वभावदोष दूर करनेके लिए ईश्वरके चरणोंमें शरण जाकर प्रार्थना करनेसे ईश्वरका आशीर्वाद प्राप्त होता है और दोष शीघ्र दूर होनेमें सहायता होती है ।
प्रार्थना : दिनभरमें समय-समयपर ईश्वरसे निम्नलिखित प्रार्थना करें – ‘हे ईश्वर, आपकी कृपासे मुझे मेरे दोषोंका भान होने दीजिए तथा उन्हें दूर करनेके लिए मेरेद्वारा लगनसे प्रयास होने दीजिए ।’
प्रगति की समीक्षा के आधार पर अन्य तीन स्वभावदोषों का चयन करना
प्रगति की समीक्षा के आधार पर अगले सप्ताह प्रक्रिया हेतु स्वभावदोषों की सूची से प्राथमिकता क्रमानुसार अन्य तीन स्वभावदोषों का चयन करना
राष्ट्र की दुर्दशा पर उपायस्वरूप सुसंस्कारित समाजमन की आवश्यकता
व्यक्ति व समाज का स्वास्थ्य एक-दूसरे पर निर्भर करता है । वर्तमान समाजव्यवस्था में अनेक दुर्गुणों का अनुभव हमें दैनिक जीवन में पग-पग पर होता है । राज्यकर्ता, जनता, कर्मचारी व धार्मिक नेता, इन चार महत्त्वपूर्ण मूलभूत समाजघटकों में स्वभावदोेष बढने के कारण केवल राजकीय क्षेत्र ही नहीं; अपितु सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक आदि सभी क्षेत्र कम-अधिक मात्रा में मलिन हुए हैं । समस्त राष्ट्रवासियों को हुआ धर्म व नीतिका विस्मरण तथा उनके घोर अनादर के कारण ही राष्ट्र की दुर्दशा हुई है । संपूर्ण समाजव्यवस्था सुस्थित करने के लिए अपने दुर्गुणों का निर्मूलन व गुणों का संवर्धन करना, यह समाज के प्रत्येक घटक का प्रथम कर्तव्य है ।
व्यक्तित्व विकास की आवश्यकता क्यों है ? अवश्य जान लें ।
दूसरों के गुण कैसे सीखें ?
ईश्वर की अनुभूति आने से हमें जो आनंद मिलता है, उसे हम अपने कुछ दोषों के कारण अधिक समय तक टिका कर नहीं रख पाते । हमेशा आनंद में रहने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दोषों पर जल्दी से जल्दी मात करें । तो आज हम जानकर लेंगे कि यदि हम अपने आसपास के लोगों में गुण देखना और उनके गुणों से सीखकर स्वयं में परिवर्तन करने का प्रयास करते हैं, तो हम अपने दोष कम कर सकते हैं ।
साधना से स्वभावदोष-निर्मूलनका योग अनिवार्य
साधनाका ध्येय, ईश्वरप्राप्ति की उत्कंठा, अंतःकरण में निर्मित ईश्वरसंबंधी केंद्र , प्रत्यक्ष साधना इत्यादि विविध घटकों पर स्वभावदोष निर्मूलन निर्भर करता है । साधना का उद्देश्य ही है ‘षड्रिपु-निर्मूलन’, अर्थात् ‘सर्व प्रकार की क्रिया-प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण प्राप्त करना’ । स्वभावदोष अर्थात् चित्त पर अनेक जन्मों के संस्कार । वे चित्त में इतने दृढ और गहरे हो चुके होते हैं कि साधना से उनका शीघ्र निर्मूलन होना सहज संभव नहीं होता । साधनाद्वारा आध्यात्मिक उन्नति होने से मनोलय व बुद्धिलय साध्य होते हैं; अर्थात् चित्त के संस्कार नष्ट होने तक मन व बुद्धि कार्यरत रहते हैं ।
ईश्वरप्राप्ती के ध्येय में बाधा लानेवाले दोष एवं अहं का निर्मूलन करने में आपको प्रश्न है ? तो अवश्य हमारे Online Satsang में जुडें ।