मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025)

मकर संक्रांति का त्‍यौहार तिथिवाचक न होकर अयन-वाचक है । इस दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है । सूर्यभ्रमण के कारण होनेवाले अंतर की पूर्ति करने हेतु प्रत्‍येक अस्‍सी (८०) वर्ष में संक्रांति का दिन एक दिन आगे बढ जाता है । साधारणतः मकर संक्रांति १४ जनवरी को होती है । २०२५ में मकर संक्रांति १४ जनवरी को है । सक्रांति को देवता माना गया है । ऐसी कथा प्रचलित है कि संक्रांति ने संकरासुर दानव का वध किया । किंक्रांति यह संक्रांति का अगला दिन है । इस दिन देवी ने किंकरासुर का वध किया था । 

तमिळनाडु में इसे ‘पोंगल’ कहा जाता है । सिंधी लोग इस पर्व को ‘तिरमौरी’ कहते हैं । यही त्‍यौहार गुजरात और उत्तराखंड में ‘उत्तरायण’ नाम से भी जाना जाता है । हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में ‘माघी’, असम में ‘भोगाली बिहु’ के नाम से मनाया जाता है । कश्‍मीर घाटी में इसे ‘शिशुर सेंक्रात’ कहां जाता है । उत्तर प्रदेश और पश्‍चिमी बिहार में यह उत्‍सव ‘खिचडी’ पर्व के नाम से भी जाना जाता है । पश्‍चिम बंगाल में इसे ‘पौष संक्रान्‍ति’, तो कर्नाटक में ‘मकर संक्रमण’ कहते है । पंजाब में यह उत्‍सव ‘लोहडी’ नाम से भी मनाया जाता है ।

मकर संक्रांति २०२४, Makar Sankranti 2024
मकर संक्रांति २०२४, Makar Sankranti 2024

मकर संक्रांति का महत्त्व

ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्‍वयं उनके घर जाते हैं । क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्‍वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्‍ति के नाम से जाना जाता है ।

इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक वातावरण अधिक चैतन्यमय होने से साधना करनेवाले को इस चैतन्य का लाभ हाेता है । कर्क संक्रांति से मकर संक्रांति तक के काल को दक्षिणायन कहते है । उत्तरायण में मृत्‍यु हुए व्यक्ति की अपेक्षा दक्षिणायन में मृत्‍यु हुए व्‍यक्‍ति की दक्षिण (यम) लोक में जाने की संभावना अधिक होती है ।

यहां पर हमें ध्‍यान में यह लेना है की, भारत में सभी स्‍थानों पर यह उत्‍सव मनाया जाता है । जिससे हिन्‍दु धर्म का महत्‍व भी ध्‍यान में आता है । संस्‍कृति के कारण एकता साध्‍य होती है । देश तो केवल भौगोलिक सीमाएं है, पर संस्‍कृति के कारण वह राष्‍ट्र का रूप धारण कर भिन्‍न भाषा और भौगोलिक प्रदेश के लोगोंको भी एक धागे में कैसे पिरोता है, यह हमें इससे ध्‍यान में आता है । इसलिए त्‍योहारोंका एक अनन्‍यसाधारण महत्त्व है । इससे भी यह स्‍पष्ट होता है की, भारत में भाषा, राज्‍य भिन्न हो, तो भी एक संस्‍कृती-एक राष्ट्र है। इसकारण भारत कभी एक राष्‍ट्र नही था, इस आरोप का मिथ्‍या रूप भी ध्‍यानमें आता है ।


मकर संक्रांति के पर्वकाल में दान का महत्त्व !

मकर संक्रांति से रथसप्तमी तक का काल पर्वकाल होता है । इस पर्वकाल में किया गया दान एवं पुण्यकर्म विशेष फलप्रद होता है । धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन दान, जप और धार्मिक अनुष्ठानों का बहुत महत्व होता है । इस दिन दिया गया दान पुनर्जन्म के बाद सौ गुना प्राप्त होता है । सनातन संस्था के आध्यात्म प्रसार के कार्य के लिए दान देकर सहायता करें । वर्तमान में हम निम्नलिखित आवश्यक ‍वस्तुओं के लिए धन इकट्ठा कर रहे हैं –

INR 51,00,000

अन्नदान

INR 9,10,000

चिकित्सकीय संसाधन

INR 32,00,000

रसोई उपकरण

INR 10,00,000

‍विद्युत उपकरण

INR 65,00,000

कंप्यूटर हार्डवेयर

INR 33,00,000

परिवहन हेतु

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दान योग्य वस्तुएं (किन वस्तुओं का दान करना चाहिए ?)

‘नए बर्तन, वस्त्र, अन्न, तिल, तिलपात्र, गुड, गाय, घोडा, स्वर्ण अथवा भूमिका यथाशक्ति दान करें । इस दिन सुहागिनें दान करती हैं । कुछ पदार्थ वे कुमारिकाओंसे दान करवाती हैं और उन्हें तिलगुड देती हैं ।’ सुहागिनें जो हलदी-कुमकुमका दान देती हैं, उसे ‘उपायन देना’ कहते हैं ।


उपायन देने का महत्त्व

‘उपायन देना’ अर्थात तन, मन एवं धन से दूसरे जीव में विद्यमान देवत्व की शरण में जाना । संक्रांति-काल साधना के लिए पोषक होता है । अतएव इस काल में दिए जानेवाले उपायन से देवता की कृपा होती है और जीव को इच्छित फलप्राप्ति होती है ।

उपयान में क्या न दें ?

आजकल स्टील के बर्तन, प्लास्टिक की वस्तुओं जैसी अधार्मिक सामग्री उपायन के रूप में देने की अनुचित प्रथा है । ये असात्त्विक उपयान देने के कारण, उपयान लेनेवाला और देनेवाला, दोनों व्यक्तियों के बीच लेन-देन बढता है।

मकर संक्रांति के पर्व में सुहागन को सात्त्विक भेंट देने के सूक्ष्म-स्तरीय लाभ दर्शानेवाला चित्र

इस अवसर पर दी जानेवाली भेंट सात्त्विक (उदा. आध्यात्मिक ग्रंथ, सात्त्विक अगरबत्ती, कर्पूर, उबटन इत्यादि) होनी चाहिए । किन्तु वर्तमान में असात्त्विक वस्तुएं (उदा. प्लास्टिक का डिब्बा, सौंदर्य प्रसाधन इत्यादि ) दी जाती हैं । सात्त्विक वस्तुओं से व्यक्ति में ज्ञानशक्ति (प्रज्ञाशक्ति) और भक्ति जागृत होती हैं, जबकि असात्त्विक वस्तुओं में मायावी स्पंदनों की मात्रा अधिक होने से व्यक्ति की आसक्ति बढती हैं । सात्त्विक वस्तुएं भेंट करते समय उद्देश्य शुद्ध और प्रेमभाव अधिक होने के कारण निरपेक्षता आती हैं । इससे लेन-देन निर्मित नहीं होता । इसके विपरीत, असात्त्विक वस्तुएं भेंट करते समय अपेक्षा, आसक्ति की मात्रा अधिक होने के कारण दोनों के बीच लेन-देन निर्मित होता हैं ।

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मकर संक्रांति के काल में तीर्थस्नान करने पर महापुण्य मिलना

मकर संक्रांति पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पुण्यकाल रहता है । इस काल में तीर्थस्नान का विशेष महत्त्व हैं । गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के किनारे स्थित क्षेत्र में स्नान करनेवाले को महापुण्य का लाभ मिलता है ।


मकर संक्रांति पर तिल का उपयोग

तिल में सत्त्वतरंगें ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए तिलगुड का सेवन करने से अंतःशुद्धि होती है और साधना अच्छी होने हेतु सहायता होती हैं । तिल के दानों में घर्षण होने से सात्त्विकता का आदान-प्रदान होता है । श्राद्ध में तिल का उपयोग करने से असुर इत्यादि श्राद्ध में विघ्न नहीं डालते ।
मकर संक्रांति के दिन तिल का तेल एवं उबटन शरीर पर लगाना, तिल-मिश्रित जल से स्नान, तिल-मिश्रित जल पीना, तिल-होम करना, तिल-दान करना, इन छह पद्धतियोंसे तिल का उपयोग करनेवालों के सर्व पाप नष्ट होते हैं ।
सर्दी के दिनोंमें आनेवाली मकर संक्रांति पर तिल खाने से लाभ होता है ।

तिल की विशेषताएं दर्शानेवाला सूक्ष्म-चित्र


मकर संक्रांति के दिन मटकी का महत्त्व

मटकियोंको हलदी-कुमकुम से स्पर्शित उंगलियां लगाकर धागा बांधते हैं । मटकियोंके भीतर गाजर, बेर, गन्ने के टुकडे, मूंगफली, रुई, काले चने, तिलगुड, हलदी-कुमकुम आदि भरते हैं । रंगोली सजाकर पीढे पर पांच मटकियां रख पूजा करते हैं । तीन मटकियां सुहागिनोंको उपायन देते हैं, एक मटकी तुलसी को एवं एक अपने लिए रखते हैं ।’

एक सौभाग्यवती स्त्री का मकर संक्रांति के दिन दूसरी सौभाग्यवती स्त्री को उपायन (भेंट) देकर उसकी गोद भरना अर्थात दूसरी स्त्री में विद्यमान देवी-तत्त्व का पूजन कर तन, मन और धन से उसकी शरण में जाना ।

भीष्माचार्य का मृत्युशैया पर ५८ दिनों तक जीवित रहना

भीष्‍म पितामह को कौन नहीं जानता । प्रसिद्ध महाभारत युद्ध की कालावधि में भीष्‍म पितामह ने अपना देह त्‍याग ने के लिए मकर संक्रान्‍ति का ही चयन किया था । महाभारत युद्ध में अर्जुन के बाणों के शैय्‍या पर कई दिनों तक पितामह भीष्‍म लेटे रहे और उन्‍होंने मृत्‍यू के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की । महामहिम भीष्‍म उत्तरायण और मकर संक्रांति के महत्त्व को जानते थे और इसी लिए उन्‍होंने अपनी इच्‍छामृत्‍यु द्वारा यह दिन अपनी मृत्‍यु के लिए निश्‍चित किया । मकर संक्रांति के शुभ दिन पर उन्‍होंने मानव शरीर का त्‍याग किया ।

मकर संक्राति के दिन काला वस्त्र परिधान न करें !

मकरसं क्रांति के दिन छोटे बालक तथा सुवासिनी काला वस्त्र परिधान करते हैं; किंतु हिन्दु धर्म में काला रंग अशुभ माना जाता है तथा अध्यात्म के अनुसार काला रंग वातावरण के तमोगुणी स्पंदन आकृष्ट करता है । अतः इस रंग के वस्त्र परिधान करने से तमोगुणी स्पंदन आकृष्ट होते हैं । उसी कारण व्यक्ति को कष्ट हो सकते हैं । ‘मकर सक्रांति के दिन काला वस्त्र परिधान करें अथवा परिधान कर सकते है है’, इस सूत्र को किसी भी धर्मग्रंथ का आधार न होने के कारण उस दिन काला वस्त्र परिधान न करें ।
‘मकर संक्रांति के दिन काला वस्त्र परिधान करें’, इसप्रकार का संदर्भ यदि किसी ग्रंथ में पाया गया, तो कृपया [email protected] इस संगणकीय पते पर भेजें ।

मकरसंक्रांति का साधना की दृष्टि से महत्त्व

इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्‍त तक वातावरण अधिक चैतन्‍यमय होता है । साधना करनेवाले को इस चैतन्‍य का लाभ होता है । इस दिन ब्रह्मांड की चंद्रनाडी कार्यरत होती है । इसलिए, वातावरण में रज-सत्त्व तरंगों की मात्रा बढती है । अतः मकरसंक्रांति काल को साधना-उपासना के लिए बहुत अनुकुल बताया गया है । और यहां यह भी ध्‍यान में आता है की, ऋषिमुनीयोंको ग्रहोंकी गति का यथायोग्‍य आकलन था । आज वैज्ञानिक उपकरणोंसे उसकी प्रामाणिकता भी स्‍पष्ट हो रही है । ऋषिमुनीयोंने ग्रहोंकी इस गति का व्‍यक्‍ति और वातावरण पर होनेवाले परिणामोंका आकलन कर विभिन्‍न त्‍योहारोंके माध्‍यम से धर्माचरण की ऐसी कृतियां बतायी, जिससे सभी को लाभ हो पाएं और इन ग्रहोंके भ्रमण को भी सभी समझ पाएं । सनातन संस्‍कृति की यह विशेषता हमें यहांपर ध्‍यान में लेनी चाहिए ।


कैसे मनाई जाती है देश-विदेश में मकर संक्रांति ?


मकर संक्रांति की जानकारी देनेवाले व्हिडिओ !


भारतीय संस्कृति में मकर संक्रात का पर्व आपसी कलह को भुलाकर प्रेम बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन हर व्यक्ति एक-दूसरे को तिलगुड़ देते हैं। विभिन्न त्योहारों को मनाने के पीछे के गहरा अर्थ समझकर हम उन्हें मनाने से अधिक आध्यात्मिक लाभ उठा सकते हैं। ऐसी ही उपयोगी जानकारी जानने के लिए…


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आपातकालीन परिस्थिति में मकर संक्रांति कैसे मनाएं ?


कोरोना की पार्श्‍वभूमि पर गत कुछ महिनों से त्यौहार – उत्सव मनाने अथवा व्रत करने में कुछ प्रतिबंध थे । कोरोना की परिस्थिति धीरे-धीरे पुन: जोर पकड रही है । ऐसे समय पर त्यौहार मनाते समय आगे दिए गए सूत्र ध्यान में रखें ।

१. त्यौहार मनाने के सर्व आचार, (उदा. हलदीकुंकू समारोह, तिलगुड देना आदि) अपनी स्थानीय परिस्थिति को देखते हुए और कोरोना के विषय में शासन-प्रशासन द्वारा डाले गए सर्व नियमों का पालन करके मनाएं ।

२. हलदी – कुंकू का कार्यक्रम आयोजित करते समय एक ही समय पर सर्व महिलाओं को न बुलाते हुए ४-४ के गुट को १५-२० मिनटों के अंतर पर बुलाएं ।

३. तिलगुड का लेन-देन सीधे न करते हुए छोटे-छोटे पैकटों में डालकर उनका लेन-देन करें ।

४. एक-दूसरे से मिलते-बोलते समय मास्क का उपयोग करें ।

५. कोई भी त्यौहार अथवा उत्सव मनाने का उद्देश्य स्वयं में सत्त्वगुण की वृद्धि करना होता है । इसलिए आपातकालीन परिस्थिति के कारण प्रथा के अनुसार त्यौेहार-उत्सव मनाने में मर्यादा आती हो, तब भी उस काल में अधिकाधिक समय ईश्‍वर का स्मरण, नामजप, उपासना आदि कर सत्त्वगुण बढाने का प्रयत्न करने पर वास्तव में उत्सव मनाना होगा ।