अन्य पंथ तो पूर्वजों के लिए कुछ नहीं करते, फिर उन्हें कष्ट नहीं होता है क्या ?

हिन्दू हो, मुसलमान हो अथवा ईसाई । जो भी शास्त्रों का पालन करेगा, उसे लाभ होगा । जो नहीं करेगा, उसकी हानि निश्‍चित है; परंतु अनेक पंथों में हिन्दू धर्म में वर्णित बातें अलग-अलग पद्धति से अपनायी जाती हैं ।

कोरोना महामारी के काल में श्री गणेशमूर्ति का आगमन, पूजन और विसर्जन !

वर्तमान में कोरोना और तत्सम आपातकाल में भी हिन्दू धर्म में धर्माचरण के कुछ विकल्प बताए हैं । वे विकल्प कौन-से हैं ? इस विषय में जानने के लिए ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि और सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस से भेंटवार्ता हुई ।

कलियुग के दोष नष्ट करने के लिए तपस्या करनेेवाले ऋषिगणों के विघ्न हरण करनेवाला इडगुंजी (कर्नाटक) का श्री महागणपति !

इडगुंजी मंदिर की मुख्य मूर्ति भी चौथी अथवा पांचवीं शताब्दी की है । यह द्विभुजा श्री गणेशमूर्ति पाषाण पर खडी है ।

हनुमानजी द्वारा लंकादहन

हनुमानजी लंका जलाने के लिए जब स्वयं को अपराधी मान रहे थे, उसी समय हनुमानजी को दिव्य वाणी सुनाई दी – राक्षसों की लंका जल गई, पर सीता पर कोई आंच नहीं आई । तब हनुमानजी ने अपना मनोरथ पूर्ण समझा ।

जलप्रलय की दृष्टि सेे भौतिक स्तर पर क्या पूर्व तैयारी करनी चाहिए ? : भाग ४ 

वर्ष २०१९ में महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों के कुछ शहरों में भीषण बाढ आने पर योग्य कृत्य करने का ज्ञान न होने के कारण अनेक नागरिक भ्रमित हो गए थे । ऐसे अवसर पर नागरिकों द्वारा अयोग्य कृत्य करने अथवा निर्णय लिए जाने की संभावना होती है ।

आपातकालमें जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी : भाग – १०

पारिवारिक स्तर पर विचार करते समय घर के विषय में, आर्थिक स्तर पर विचार करते समय संपत्ति के विषय में तथा सामाजिक दायित्व के अंतर्गत समाज के लिए हम क्या कर सकते हैं, इस विषय में जानकारी दी गई है ।

रुद्रावतार हनुमानजी

हनुमानजी को ग्यारहवां रुद्र माना जाता है । इसी कारण समर्थ रामदासजीने हनुमानजीको ‘भीमरूपी महारुद्र’ संबोधित किया है । हनुमानजी की पंचमुखी मूर्ति रुद्रशिव के पंचमुखी प्रभाव से निर्माण हुई है ।

भावशक्ति के बल पर विदेश में धर्मजागृति का महान कार्य सफलतापूर्वक करनेवाले स्वामी विवेकानंद !

स्वामी विवेकानंद जब धर्मप्रसार के लिए, अर्थात् सनातन हिन्दू धर्म का तेज विदेशों में फैलाने के उद्देश्य से सर्वधर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत के प्रतिनिधि के रूप में शिकागो (अमेरिका) गए थे, तब उन्होंने उस धर्मसम्मेलन में श्रोताओं के मन जीतकर वहां ‘न भूतो न भविष्यति !’ ऐसा विलक्षण प्रभाव उत्पन्न किया ।

देवर्षि नारद

जिसप्रकार नारदमुनि भगवान का अखंड स्मरण और स्तुति करते हैं; उसीप्रकार श्रीकृष्णजी भी अखंड अपने भक्त का स्मरण एवं स्तुति करते हैं । श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है – ‘देवर्षीणाम् च नारद:।’