आनंदपूर्ण क्षणों का स्मरण ही स्मरणभक्ति
जिस प्रकार हम भगवान का स्मरण करते हैं अथवा हमारे जीवन की अच्छी घटनाओं का स्मरण करते हैं, तब हमारे जीवन में एक अलग ही आनंद उत्पन्न होता है । केवल उनका स्मरण करना ही एक शक्ति है, यह हमारे ध्यान में आता है ।
जिस प्रकार हम भगवान का स्मरण करते हैं अथवा हमारे जीवन की अच्छी घटनाओं का स्मरण करते हैं, तब हमारे जीवन में एक अलग ही आनंद उत्पन्न होता है । केवल उनका स्मरण करना ही एक शक्ति है, यह हमारे ध्यान में आता है ।
भगवान के स्मरण में सब कुछ है । अन्य सभी बातें, सत्कर्म, दानधर्म, तीर्थयात्रा, पारायण जैसी बातें अन्य अंगों जैसी हैं । इन सभी को अंग माना जाए, तो भगवान का स्मरण प्राण है ।
मन का कार्य ही है विचार करना । इस कारण मन में सदैव संकल्प और विकल्प आते रहते हैं । इस कारण जब तक साधना करके मनोलय की स्थिति नहीं आती, तब तक मन में संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है ।
कुछ लोगों की मोहमाया की इच्छाएं तृप्त ही नहीं होतीं । वे गुरु के पास सतत कुछ ना कुछ मांगते ही रहते हैं । वे लोग भूल जाते हैं कि मन की इच्छा नष्ट कर मनोलय करवाना ही गुरु का खरा कार्य है ।
जो भी व्यक्ति रामनाम का, प्रभुनाम का पूरा लाभ लेना चाहे, उसे दस दोषों से अवश्य बचना चाहिए । ये दस दोष ‘नामापराध’ कहलाते हैं ।
गुरुमंत्र देवता का नाम, मंत्र, अंक अथवा शब्द होता है जो गुरु अपने शिष्य को जप करने हेतु देते हैं ।
गुरु अर्थात ईश्वर का साकार रूप व ईश्वर अर्थात गुरु का निराकार रूप, ऐसे शास्त्र बताते हैं ।
समाज यदि सात्त्विक बने तो समाज में अंतर्गत तनाव दूर होना संभव है । हम कितना भी प्रयास करें पर अन्यों के कर्म तथा मानसिकता में बदलाव करना हमारे लिए संभव नहीं होता है । इस कारण ही रामराज्य जैसे हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी आवश्यक है ।
सनातन संस्था आयोजित ‘ऑनलाईन साधना प्रवचन शृंखला’ का आयोजन किया गया है ।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य का मूल नाम गिरिधर मिश्र है । इनका जन्म १४ जनवरी १९५० को जौनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश) के सांडीखुर्द गांव में हुआ है ।