सत्संग ३ : साधना में होनेवाली चूकें

सामान्यरूप से साधनामार्ग में कार्यरत व्यक्तियों से ४ प्रकार की चूकें होती हैं – अपने मन से साधना करना, सांप्रदायिक साधना में फंस जाना, गुरु बनाना और स्वयं को साधक समझना ! इन चूकों के कारण अनेक वर्ष साधना करने का प्रयास करने पर भी अपेक्षित आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती ।

सत्संग २ : साधना के सिद्धांत एवं तत्त्व (भाग २)

साधना का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, स्तर के अनुसार साधना ! स्तर अर्थात अधिकार ‘अधिकार शब्द को यहां व्यावहारिक दृष्टिकोण से नहीं, अपितु आध्यात्मिक अर्थ से हमें समझना है । संत तुकाराम महाराजजी ने कहा है, ‘जैसा अधिकार वैसा उपदेश’ ।

सत्‍संग १ : साधना के सिद्धांत एवं तत्त्व (भाग १)

साधना का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है ‘जितने व्‍यक्‍ति, उतनी प्रकृतियां और उतने साधनामार्ग !’ ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्‍यानयोग, भक्‍तियोग जैसे साधना के अनेक मार्ग हैं । प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति की प्रकृति के अनुसार उसके मोक्षप्राप्‍ति के मार्ग भी अलग होते हैं ।

प्रवचन ३

नामजप और साधना केवल आध्‍यात्मिक उन्‍नति और मनःशांति के लिए ही नहीं की जाती, अपितु साधना का हमारे व्‍यावहारिक जीवन पर भी अच्‍छा परिणाम होता है । साधना करने से व्‍यक्‍तित्‍व आदर्श बनने में सहायता होती है ।

मा.गो. वैद्य के निधन से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचारों की हानि ! 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतक माधव गोविंद उपाख्य बाबूराव वैद्य के निधन से ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के विचारों की हानि हुई है ।

आपातकाल की तैयारी स्‍वरूप वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से उगी हुई औषधीय वनस्‍पतियां संग्रहित करें ! (भाग २)

लेख के इस भाग में हम गरखा और छकुंड (चक्रमर्द) इन २ वनस्‍पतियों की जानकारी समझते हैं ।

आपातकाल की तैयारी स्‍वरूप वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से उगी हुई औषधीय वनस्‍पतियां संग्रहित करें ! (भाग १)

भावी भीषण विश्‍वयुद्ध के काल में डॉक्‍टर, वैद्य, बाजार में औषधियां आदि उपलब्‍ध नहीं होंगी । ऐसे समय हमें आयुर्वेद का ही आधार रहेगा । क्रमशः प्रकाशित होनेवाले लेख के इस भाग में ‘प्राकृतिक वनस्‍पतियों का संग्रह कैसे करना चाहिए’, इससे संबंधित जानकारी

प्रवचन २

हममें से प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति ने सुख के क्षण और दुख का भी अनुभव किया है । प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति के प्रयास भले ही सुख की प्राप्‍ति के लिए होते हों; परंतु अधिकांश समय हमें दुख ही मिलता है, ऐसा हमारा अनुभव रहता है । सर्वसामान्‍यरूप से आज के काल में मनुष्‍य जीवन में औसतन सुख २५ प्रतिशत और दुख ७५ प्रतिशत होता है ।

प्रवचन १ : आनंदमय जीवन एवं आपातकाल की दृष्टि से अध्यात्म का महत्त्व

धर्मशास्‍त्र में ईश्‍वरप्राप्‍ति अर्थात आनंदप्राप्ति के अनेक मार्ग बताए गए हैं । किंतु अनेकों को यह ज्ञात नहीं होता कि इन सहस्रों साधनामार्ग मे से कौनसी साधना आरंभ करें । इस कारण अनेक लोग उन्‍हें जो पसंद है अथवा उन्‍हें जैसे लगता है, उसके अनुसार साधना करने का प्रयत्न करता है ।

चेन्‍नई के पट्टाभिराम प्रभाकरन् (आयु ७६ वर्ष) सनातन के १०५ वें व्‍यष्‍टि संत पद पर विराजमान !

नम्रता, अल्‍प अहं तथा वृद्धावस्‍था में भी भावपूर्ण सेवा करनेवाले सनातन के साधक श्री. पट्टाभिरामन् प्रभाकरन् सनातन के १०५ वें व्‍यष्‍टि संत पद पर विराजमान हुए ।