शिव पूजा की उपासना पद्धतियां

शिव पूजा में सबसे महत्त्वपूर्ण तथा शिवजीको प्रिय घटक है बिल्वपत्र । शिव पूजा कैसे करें ? शिवपिंडी की परिक्रमा कैसे करें ?

शिवपूजन में भस्म धारण का महत्व

यज्ञमें अर्पित समिधा एवं घीकी आहुतिके जलनेके उपरांत शेष बची पवित्र रक्षाको ‘भस्म’ कहते हैं । भस्मको विभूति एवं राख, इन नामोंसे भी जाना जाता है ।

शिवपिंडीकी विशेषताएं एवं कार्य

शिवजीसे प्रक्षेपित शक्तिशाली सात्त्विक तरंगें सर्वप्रथम नंदीकी ओर आकृष्ट होती हैं, तदुपरांत वातावरणमें प्रक्षेपित होती हैं । शिवपिंडीसे चैतन्यके वलयोंका पूरे शिवालयमें प्रक्षेपण होता रहता है ।

शृंगदर्शनकी पद्धति

शिवजीमें पवित्रता, ज्ञान एवं साधना, ये तीनों गुण परिपूर्णतः विद्यमान हैं । इसलिए उन्हें ‘देवोंके देव’, अर्थात ‘महादेव’ कहते हैं ।

मुद्रा

मानवकी प्रत्येक क्रियासे उसके शरीर अथवा अवयवोंसे कोई-न-कोई आकार बनता है । उसी कार, हाथकी उंगलियोंका परस्पर स्पर्श होनेपर अथवा उन्हें विशेष प्रकारसे जोडनेपर अलग-अलग  प्रकारकी आकृतियां बनती हैं, इन आकृतियोंको मुद्रा कहते हैं ।

न्यास

हाथकी उंगलियोंसे विशिष्ट मुद्रा बनाकर उसे शरीरके कुण्डलिनीचक्रों अथवा अन्य किसी भागके पास रखनेकी क्रियाको न्यास कहते
हैं । यह न्यास शरीरसे १ – २ सें.मी. दूरसे करें । 

कुंभमेलेमें सहभागी होनेवाले विभिन्न अखाडे !

सर्वत्रके कुंभमेलेमें एकत्र होनेवाले सर्व अखाडे उत्तर भारतके हैं । प्रत्येक अखाडेमें महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, महंत जैसे कुछ प्रमुखोंकी श्रेणी होती है । नम्र, विद्वान तथा परमहंस पद प्राप्त ब्रह्मनिष्ठ साधुका चयन इस पदके लिए किया जाता है ।

सिंहस्थ पर्वमें गोदावरीस्नान अत्यंत पवित्र क्यो माना गया है?

६० सहस्त्र वर्ष भागीरथी नदीमें स्नान करनेसे जितना पुण्य मिलता है, उतना पुण्य गुरुके सिंह राशिमें आनेपर गोदावरीमें किए केवल एक स्नानसे प्राप्त होता है ।

हरद्वार (हरिद्वार) स्थित विविध क्षेत्रोंकी महिमा

यह उत्तराखंड राज्यके गंगातटपर बसा प्राचीन तीर्थक्षेत्र है । हिमालयकी अनेक कंदराओं एवं शिलाओंसे तीव्र वेगसे नीचे आनेवाली गंगाका प्रवाह, यहांके समतल क्षेत्रमें आनेपर मंद पड जाता है ।