गुरुपूर्णिमाके दिन गुरुतत्त्व १ सहस्त्र गुना कार्यरत रहता है
गुरु ईश्वरके सगुण रूप होते हैं । उन्हें तन, मन, बुद्धि तथा धन समर्पित करनेसे उनकी कृपा अखंड रूपसे कार्यरत रहती है ।
गुरु ईश्वरके सगुण रूप होते हैं । उन्हें तन, मन, बुद्धि तथा धन समर्पित करनेसे उनकी कृपा अखंड रूपसे कार्यरत रहती है ।
गुरुदेव वे हैं, जो साधना बताते हैं, साधना करवाते हैं एवं आनंदकी अनुभूति प्रदान करते हैं । गुरुका ध्यान शिष्यके भौतिक सुखकी ओर नहीं, अपितु केवल उसकी आध्यात्मिक उन्नतिपर होता है ।
हिंदूओंमें धर्मनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा बढे, उन्हें संगठित करनेमें सहायता हो, लोकमान्य तिलकने इस उदात्त हेतु सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ किया; परंतु आजकल सार्वजनिक गणेशोत्सवोंमें होनेवाले अनाचार एवं अनुशासनहीनताके कारण उत्सवका मूल उद्देश्य विफल होनेके साथ उसकी पवित्रता भी नष्ट होती जा रही है । ‘सार्वजनिक श्रीगणेशोत्सव कैसा न हो तथा कैसा हो’, आगे दिए सूत्रोंसे इसकी जानकारी हो सकती है ।
शौच एवं लघुशंका जैसी कृति करते समय पैरके संपर्कमें आई रज-तमात्मक तरंगोंका पैर धोनेसे जलमें विसर्जन होता है तथा देह शुद्ध हो जाता है । हाथ-पैर धोना तथा कुल्ला करनेके संदर्भमें आचारके संदर्भमें देखते है…
‘हिन्दू धर्म की रक्षा करना प्रत्येक हिन्दू का पहला कर्तव्य कैसे है’ इस विषय में तथा एक ‘हिन्दूू होने के नाते हम धर्मरक्षा के लिए क्या-क्या कर सकते हैं’, यह इस लेख से समझने का प्रयास करेंगे ।
प्रभु श्रीराम की जीवन हम सभी को हर स्थिति में कैसे रहना है, इसका संदेश देती है । प्रभु श्रीराम स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे ।
आजकल ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ लोग ब्रह्मध्वजा पर स्टील या तांबे का लोटा अथवा घडे के आकारवाला बरतन रखते हैं । धर्मशास्त्र के अनुसार ‘ब्रह्मध्वजा पर तांबे का कलश उल्टा रखने का अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन यहां दे रहे हैं । इससे हमारी संस्कृति का महत्त्व तथा प्रत्येक कृत्य धर्मशास्त्र के अनुसार करने का महत्त्व समझ में आता है !
प्रकृतिनुसार वस्त्रोंका रंग कैसा होता है ? व्यक्तिकी रुचि-अरुचि उसकी प्रकृतिके अनुरूप होती है एवं प्रकृति उसमें विद्यमान सत्त्व, रज एवं तम, इन त्रिगुणोंपर आधारित होती है ।
नवरात्रिकी कालावधिमें देवीपूजनके साथ उपासनास्वरूप देवीके स्तोत्र, सहस्रनाम, देवीमाहात्म्य इत्यादिके यथाशक्ति पाठ एवं पाठसमाप्तिके दिन हवन विशेष रूपसे करते हैं ।सुख, लाभ, जय इत्यादि कामनाओंकी पूर्तिके लिए सप्तशतीपाठ करनेका महत्त्व बताया गया है । श्री दुर्गासप्तशती पाठमें देवीमांके विविध रूपोंको वंदन किया गया है ।