दत्तात्रेय देवताका सात्त्विक चित्र
दत्तात्रेयके चित्रमें विद्यमान ४ श्वान चार वेदोंके प्रतीक होनेके कारण उनके स्थानपर आगे दिए अनुसार चार विविध रंगोंके वलय दिखाई दिए ।
दत्तात्रेयके चित्रमें विद्यमान ४ श्वान चार वेदोंके प्रतीक होनेके कारण उनके स्थानपर आगे दिए अनुसार चार विविध रंगोंके वलय दिखाई दिए ।
मार्गशीर्ष पूर्णिमाके दिन मृग नक्षत्रपर सायंकाल भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेयका जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रोंमें मनाया जाता है ।
हिंदुओ, हमाारे सार्वजनिक उत्सवोंका विकृतिकरण हो रहा है । अधिकांश लोग उत्सव मनानेके धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक कारणको भूलकर केवल मौजमस्ती इस एक ही दृष्टिसे उत्सवोंकी ओर देखते हैं ।
ऐसी जगदोद्धारिणी मां शक्तिके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर आवाहित शक्तितत्त्वको उनके मूल स्थानपर विराजमान होनेकी विनती करनेका दिन है महानवमी । इस दिन वेदीपर स्थापित घट एवं नवार्णव यंत्रपर स्थापित देवी का विशेष पूजन कर उनका विसर्जन करते हैं ।
दुर्गाष्टमीके दिन देवीके अनेक अनुष्ठान करनेका महत्त्व है । इसलिए इसे `महाष्टमी’ भी कहते हैं । अष्टमी एवं नवमीकी तिथियोंके संधिकालमें अर्थात अष्टमी तिथि पूर्ण होकर नवमी तिथिके आरंभ होनेके बीचके कालमें देवी शक्तिधारणा / शक्ति धारण करती हैं ।
नवरात्रिके प्रथम दिन घटस्थापना करते हैं । घटस्थापना करना अर्थात नवरात्रिकी कालावधिमें ब्रह्मांडमें कार्यरत शक्तितत्त्वका घटमें आवाहन कर उसे कार्यरत करना ।
जालस्थलमें उपयोग की गर्इं कुछ आध्यात्मिक परिभाषाओंका अर्थ : आध्यात्मिक उपाय, काली शक्ती, सूक्ष्म इत्यादी ।
असली एवं नकली रुद्राक्षकी विशेषताआेंको समझने हेतु रुद्राक्षके लाभ, असली एवं नकली रुद्राक्षकी विशेषताएं तथा अंतर आदिके बारेंमें प्रस्तूत लेखद्वारा अवगत कराया गया है।
गुरु ईश्वरके सगुण रूप होते हैं । उन्हें तन, मन, बुद्धि तथा धन समर्पित करनेसे उनकी कृपा अखंड रूपसे कार्यरत रहती है ।
गुरुदेव वे हैं, जो साधना बताते हैं, साधना करवाते हैं एवं आनंदकी अनुभूति प्रदान करते हैं । गुरुका ध्यान शिष्यके भौतिक सुखकी ओर नहीं, अपितु केवल उसकी आध्यात्मिक उन्नतिपर होता है ।