नरकचतुर्दशी

आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशीके नामसे जानते हैं । दीपावलीके दिनोंमें अभ्यंगस्नान करनेसे व्यक्तिको अन्य दिनोंकी तुलनामें ६ प्रतिशत सात्त्विकताका अधिक लाभ मिलता है ।

धनत्रयोदशी

‘धनत्रयोदशी’ दिनके विशेष महत्त्वका कारण यह दिन देवताओंके वैद्य धन्वंतरिकी जयंतीका दिन है । धनत्रयोदशी मृत्युके देवता यमदेवसे संबंधित व्रत है । यह व्रत दिनभर रखते हैं । व्रत रखना संभव न हो, तो सायंकालके समय यमदेवके लिए दीपदान अवश्य करते हैं ।

गोवत्स द्वादशी का महत्त्व

वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभमें आती है । हिंदू कृतज्ञतापूर्वक गौको माता कहते हैं । जहां गोमाताका, भक्तिभावसे पूजन किया जाता है, वहां व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रका उत्कर्ष हुए बिना नहीं रहता।

ईश्‍वरीय चैतन्य से सर्व देह चैतन्यमय बनाने के लिए पू. राजेंद्र शिंदेजी ने दी एक अभिनव उपचारपद्धति !

१. मानस सर्व देहशुद्धि का अभिप्रेत अर्थ यहां सर्व देहशुद्धि, अर्थात स्थूलदेहसहित मनोदेह (मन), कारणदेह (बुद्धि) और महाकारणदेह (अहं) इन सूक्ष्मदेहों की शुद्धि । २. मानस सर्व देहशुद्धि का अध्यात्मशास्त्रीय आधार २ अ. संतों के संकल्प से लाभ ! यह मानस सर्व देहशुद्धि साधना-पद्धति सनातन के छठे संत पू. राजेंद्र शिंदेजी ने बताई है । … Read more

वैदिक परंपरा में नवसंवत्सरारंभ तथा उसका महत्त्व

आगे दी गर्इ जानकारी वैदिक परंपरा में नवसंवत्सरारंभ तथा उसका महत्त्व इस विषयपर किए गए संशोधन से प्राप्त हुर्इ है । यदि आपको इस विषय में कोर्इ भी शंका, प्रश्न तथा प्रतिक्रिया देनी है तो कृपया आगे दिए गए दूरभाष तथा इमेल पर संपर्क करें

सनातन के श्रद्धाकेन्द्र प.पू. भक्तराज महाराजजीद्वारा गायी गई चैतन्यमय नामधुन

सनातन संस्थाके आस्थाकेन्द्र प.पू. भक्तराज महाराजजीको उनके सर्व भक्त बाबा कहते थे । श्री अनंतानंद साईश, प.पू. बाबाके गुरु थे । भजन, भ्रमण एवं भण्डारा; यही बाबाका जीवन था । लाखों कि.मी. भ्रमण कर उन्होंने अनेक लोगोंमें अध्यात्मके प्रति रूचि उत्पन्न की । प.पू. बाबाने १७.११.१९९५ को इन्दौरमें देहत्याग किया ।

तीर्थक्षेत्र एवं उनकी विशेषताएं, अनुभूति एवं प्रमुख स्थान

दत्तभक्त गुरुचरित्रका वाचन, पाठ एवं श्रवण बडे भक्तिभावसे करते हैं । दत्तके सभी तीर्थक्षेत्र अत्यंत जागृत हैं । इन तीर्थक्षेत्रोंमें जानेपर अनेक भक्तोंको शक्तिकी अनुभूति होती है ।

दत्तके कार्य एवं विशेषताएं

भगवान दत्तात्रेय गुरुतत्त्वका कार्य करते हैं, इसलिए जबतक सभी लोग मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेते, तबतक दत्त देवताका कार्य चलता ही रहेगा । भगवान दत्तात्रेयने प्रमुखरूपसे कुल सोलह अवतार धारण किए ।

भगवान दत्तात्रेयके गुरु एवं उपगुरु

जगतकी प्रत्येक वस्तु ही गुरु है; क्योंकि प्रत्येक वस्तुसे कुछ न कुछ सीखा जा सकता है । बुराईसे हम सीखते हैं कि कौनसे दुर्गुणोंका परित्याग करना चाहिए तथा अच्छाईसे यह शिक्षा मिलती है कि कौनसे सद्गुण अपनाने चाहिए ।

भगवान दत्तात्रेयके जन्मका इतिहास एवं कुछ नाम

दत्त अर्थात वह जिसने निर्गुणकी अनुभूति प्राप्त की है; वह जिसे यह अनुभूति प्रदान की गई है कि ‘मैं ब्रह्म ही हूं, मुक्त ही हूं, आत्मा ही हूं ।’ भक्तोंका चिंतन करनेवाले अर्थात भक्तोंके शुभचिंतक श्री गुरुदेव दत्त हैं ।