किसानो, साधना मानकर खेती करें एवं समृद्ध हों !
इसलिए सनातन संस्था की सीख है कि किसानों की आत्महत्या की समस्या पर कर्जमाफी जैसे ऊपरी-ऊपर उपाय करने के स्थान पर प्रत्येक किसान को ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करना सिखानी चाहिए ।
इसलिए सनातन संस्था की सीख है कि किसानों की आत्महत्या की समस्या पर कर्जमाफी जैसे ऊपरी-ऊपर उपाय करने के स्थान पर प्रत्येक किसान को ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करना सिखानी चाहिए ।
हनुमानजी का जीवन अपने लिए नहीं था । प्रभु रामसेवा ही हनुमानकी जीवन था ।
माया के भवसागर से शिष्य और भक्त को धीरे से बाहर निकालनेवाले, उनसे आवश्यक साधना करवानेवाले और कठिन समय में उन्हें निरपेक्ष प्रेम का आधार देकर संकटमुक्त करानेवाले गुरु ही होते हैं । ऐसे परमपूजनीय गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन होता है ‘गुरुपूर्णिमा’ !
‘सनातन के आश्रम में प्रतिष्ठापित शालिग्राम पर स्वर्णरेखा है, साथ ही आश्रम में प्रतिष्ठापना होनेवाला शलिग्राम पर स्वर्णरेखा है । साथही वह देखते समय शिवलिंग जैसा दिखाई देता है ।
दिल्ली के सैदुलाजाब स्थित “लिटिल वंस पब्लिक स्कूल” में सनातन संस्था के कार्यकर्ताओं द्वारा “नैतिक शिक्षा “विषय पर मार्गदर्शन किया गया। तीसरी से पांचवी कक्षा के लिए हुए इस वर्ग का लाभ कुल 57 बच्चो ने लिया।
आपकी दृष्टि सुंदर होनी चाहिए । तब मार्ग पर स्थित पत्थरों, मिट्टी, पत्तों और फूलों में भी आपको भगवान दिखाई देंगे; क्योंकि प्रत्येक बात के निर्माता भगवान ही हैं । भगवान द्वारा निर्मित आनंद शाश्वत होता है; परंतु मानव-निर्मित प्रत्येक बात क्षणिक आनंद देनेवाली होती है । क्षणिक आनंद का नाम ‘सुख’ है ।
गुरुकृपायोगानुसार साधना कर पू. नीलेश सिंगबाळजी ने सद्गुरु पद प्राप्त किया । इस समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी और सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी की पत्नी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने उनका सम्मान किया ।
तनाव निर्मूलन हेतु व्यक्तित्व के दोष पर प्रभाव करें ऐसा गुण बढाने की आवश्यकता है । इसलिए अध्यापक और छात्रों में इस विषय में दिशादर्शन करने का प्रयास सनातन संस्था कर रही है, ऐसा प्रतिपादन सनातन संस्था की श्रीमती वैदेही पेठकर जी ने किया ।
एक बार संत नामदेव महाराजजी से पांडुरंग बोले, ‘‘तुम्हारे जीवन में सद्गुरु नहीं हैं । जब तक तुम पर सद्गुरु की कृपा नहीं होती, तब तक तुम्हें मेरे निराकार सत्य स्वरूप की पहचान नहीं होगी । तुम विसोबा खेचर से जाकर मिलो । वे महान सत्पुरुष हैं । वे तुम्हें दीक्षा देंगे ।
संत नामदेव समान प्रिय भक्त की संगत (सत्संग) सभी को मिले; इसलिए ज्ञानेश्वर महाराजजी ने स्वयं पंढरपुर में आकर नामदेव की भेंट ली और वे उनके साथ तीर्थयात्रा के लिए निकले ।