परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के देह से बचपन में प्रक्षेपित होनेवाली चैतन्य की अनुभूति
पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, इस उक्ति के अनुसार अवतारी देह में से बचपन से ही चैतन्य का प्रक्षेपण हो रहा है ।
पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, इस उक्ति के अनुसार अवतारी देह में से बचपन से ही चैतन्य का प्रक्षेपण हो रहा है ।
तैलाभ्यंगस्नानके लिए संकल्प किया जाता है । सुगंधित तेल एवं उबटनका लेप बनाकर, तेलके समान ही पूरे शरीरपर लगाया जाता है ।
दीपावली शब्दका अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । अपने घरमें सदैव लक्ष्मीका वास रहे, ज्ञानका प्रकाश रहे, इसलिए हरकोई बडे आनंदसे दीपोत्सव मनाता है । घर शुद्ध एवं सुशोभित कर दीपावली मनानेसे श्री लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा वहां स्थायीरूपसे निवास करती हैं ।
वसुबारस अर्थात् गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभमें आती है । यह गोमाताका सवत्स अर्थात् उसके बछडेके साथ पूजन करनेका दिन है । शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण द्वादशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशीके नामसे जानी जाती है । यह दिन एक व्रतके रूपमें मनाया जाता है ।
श्री यमराज धर्मके श्रेष्ठ ज्ञाता एवं मृत्युके देवता हैं । असामयिक मृत्युके निवारण हेतु यमतर्पणकी विधि बताई गई है । नरक चतुर्दशी के दिन यह विधि अभ्यंगस्नान के उपरांत की जाती है ।
इस दिनसे शुभ दिवसका, अर्थात मुहूर्तके दिनोंका आरंभ होता है । ऐसा माना जाता है कि, ‘यह विवाह भारतीय संस्कृतिका आदर्श दर्शानेवाला विवाह है ।’ घरके आंगनमें गोबर-मिश्रित पानी छींटिए ।
यमद्वितीया अर्थात भाईदूजके दिन ब्रह्मांडसे आनंदकी तरंगोंका प्रक्षेपण होता है । इन तरंगोंका सभी जीवोंको अन्य दिनोंकी तुलनामें ३० प्रतिशत अधिक लाभ होता है । इसलिए सर्वत्र आनंदका वातावरण रहता है ।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा वर्षके साढेतीन प्रमुख शुभ मुहूर्तोंमेंसे आधा मुहूर्त है । इसलिए भी इस दिनका विशेष महत्त्व है । कार्तिक शुक्ल प्रतिपदाके दिन कुछ विशेष उद्देश्योंसे विविध धार्मिक विधियां करते हैं । प्रत्येक विधि करनेका समय भिन्न होता है ।
आश्विन अमावस्या अर्थात दिवाली के श्री लक्ष्मीपूजन के दिन सर्व मंदिरों, दुकानों तथा घरों में धन-संपत्ति की अधिष्ठात्रि देवी श्री लक्ष्मी की पूजा होती है । इस दिन अर्धरात्रि के समय देवी श्री लक्ष्मी का आगमन सद्गृहस्थोंके घर होता है । घर को पूर्णत: स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित कर दीपावली मनाने से श्री लक्ष्मी देवी प्रसन्न होती हैं । इसलिए इस दिन श्री लक्ष्मीपूजन करते हैं और दीप जलाते हैं ।
नरक चतुर्दशीपर अभ्यंगस्नान एवं यमतर्पण करनेके उपरांत देवताओंका पूजन करते हैं । सूर्यदेव एवं कुलदेवता को नमस्कार करते हैं । इसके उपरांत दोपहर ब्राह्मणभोजन कराते हैं ।