रामायण के प्रसंगों के संदर्भ में शंका निरसन
लंकाकांड के बातों से हम समझ सकते हैं कि रावण की बुद्धि को अहंकार तथा अभिमान ने संपूर्णत: ग्रसित कर लिया था । इस कारण रामसेतु बनने का समाचार सुनने पर भी रावण ने कुछ नहीं किया ।
लंकाकांड के बातों से हम समझ सकते हैं कि रावण की बुद्धि को अहंकार तथा अभिमान ने संपूर्णत: ग्रसित कर लिया था । इस कारण रामसेतु बनने का समाचार सुनने पर भी रावण ने कुछ नहीं किया ।
भगवान श्रीकृष्णकी सीख दर्शानेवाले चित्र १ . भगवान श्रीकृष्णद्वारा ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी…’ इस श्लोक के माध्यम से एक पितासमान दिनचर्या से संंबंधित आचार सिखाना ‘२७.१०.२०१२ को मैं ‘दिनचर्यासे संबंधित आचार एवं उनका शास्त्र’ इस ग्रंथका मराठीसे तमिलमें भाषांतर करनेकी सेवा कर रही थी । उस समय ‘कराग्रे वसत लक्ष्मी …’ इस श्लोकका भावार्थ समझते समय मेरी भावजागृति हुई … Read more
‘पिछले सप्ताह मैं एक साधिकाके घर पंचांग और ग्रंथके संदर्भमें सेवा करने गई थी । सेवा करते समय उन्होंने मुझसे पूछा, ‘आप क्या भाव रखकर सेवा करती हैं ?’ तब मैंने उत्तरमें बताया, ‘ऐसा भाव रखते हैं कि हम भगवान श्रीकृष्णके बालक हैं और उनकी गोदमें बैठकर संगणकके साथ खेल रहे हैं ।
सहस्रों वर्ष जिस भूमि की ओर किसी ने टेढी आंख कर नहीं देखा, उस भूमि पर वर्ष ७११ में सिंध प्रांत में जो आक्रमण हुआ, वह महाभयंकर था । उस समय राजा दाहीर सिंध देश के अधिपति थे । लडाई में राजा मारे गए, शील की रक्षा हेतु उनकी महारानी जलती चिता में कूद गईं ।
हमारी बेटियां, माताएं और बहनें जब तक दुर्गा अथवा झांसी की रानी का रूप नहीं धारण करतीं, तब तक हमें ऐसा नहीं मानना चाहिए कि क्रांति सफल हुई ।
आश्रम सर्वत्र ईश्वर की चेतना से ओतप्रोत है । जिन जीवों का भाग्योदय हुआ है, वही यहां आ सके हैं । साधकों का आचरण अत्यंत मधुर, प्रेमपूर्ण एवं शालीन है । ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता है; सभी के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !
आगे दी प्रत्येक आकृति की ओर १ – २ मिनट देखने पर क्या प्रतीत होता है, इसका अध्ययन करें ।
स्वाधीनता आंदोलन के प्रयासों को सबल बनाने हेतु उन्होंने जनवरी १९०५ से इंडियन सोशियोलोजिस्ट नामक मासिक पत्र निकालना प्रारंभ किया और १८ फरवरी, १९०५ को इंडियन होमरूल सोसाइटी की स्थापना इस उद्देश्य से की कि भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित हो ।
आज विश्व के प्रत्येक कोने में हिन्दू संस्कृति के प्रचार में रामायण, गीता, वेदोपनिषद से लेकर प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों की कथाओं को पहुंचाने का एकमात्र श्रेय भाईजी को है ।
वंदे मातरम व स्वतंत्रतालक्ष्मी की जय कहने मात्र से अंग्रेज सरकार ने उन्हें दंडित किया था । ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी अपना कार्य आरंभ रखनेवाले बाबाराव सावरकरजी अर्थात,स्वतंत्रतावीर विनायक दामोदर सावरकर के अग्रज थे ।