खुलकर बात करना एक महान औषधि है !

पूर्वाग्रह, राग, भय के समान मूलभूत स्वभावदोषों के कारण अधिकांश लोगों के लिए खुलकर बात करना असहज रहता है । कुछ लोगों के मन में अनेक वर्षाें के प्रसंग तथा उस संबंधी भावनाएं रहती हैं । यदि मन में किसी भी प्रकार के विचार संगठित हुए, तो उसका परिणाम देह पर होता है तथा विभिन्न शारीरिक कष्ट आरंभ होते हैं ।

शारदापीठ तथा ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज का देहावसान !

द्वारका स्थित शारदापीठ तथा बद्रिकाश्रम के ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज के देहावसान से हिन्दू धर्म के लिए धधकती ब्राह्मतेजकी ज्वाला शांत हो गई ।

किसी को नामजपादि उपाय ढूंढकर देते समय उस व्यक्ति का कष्ट, उसका आध्यात्मिक स्तर, अनिष्ट शक्तियों के उस पर हो रहे आक्रमण इत्यादि घटकों का विचार करें !

कष्ट होनेवाले साधक अथवा संत का आध्यात्मिक स्तर, उनका समष्टि कार्य, उन्हें होनेवाला आध्यात्मिक कष्ट, अनिष्ट शक्तियों के उन पर हो रहे आक्रमण इत्यादि घटकों का विचार कर उन्हें नामजप, की जानेवाली उंगलियों की मुद्रा एवं उन मुद्राओं से किया जानेवाला न्यास ढूंढें ।

व्यक्ति को होनेवाले आध्यात्मिक कष्ट दूर होने हेतु आध्यात्मिक स्तर पर उपाय करना ही आवश्यक !

मनुष्य के जीवन में आनेवाली ८० प्रतिशत समस्याएं आध्यात्मिक कारणों से होती हैं । इन समस्याओं में शारीरिक एवं मानसिक विकार भी आते हैं । इन विकारों का कारण ८० प्रतिशत आध्यात्मिक होने से ये विकार मुख्यरूप से आध्यात्मिक स्तर के उपायों से ही ठीक होते हैं । ये आध्यात्मिक स्तर के उपाय, अर्थात प्राणशक्तिवहन … Read more

‘रज-तम प्रधान स्थान पर जानेपर कष्ट न हो’, इस हेतु साधक आगे दिए आध्यात्मिक स्तर पर उपाय करें !

कुछ साधकों को स्मशान अथवा अन्य रज-तम प्रधान स्थानों पर व्यक्तिगत कारणों के लिए अथवा समष्टि सेवा के लिए जाना पडता है ।उन्हें विविध प्रकार के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक अथवा आध्यात्मिक स्वरूप के कष्ट होने से वे साधना भी ठीक से नहीं कर पाते ।

आनेवाले आपातकाल में तर जाने के लिए पूर्वतैयारी के विषय में बतानेवाले एकमेवाद्वितीय परात्पर गुरु डॉ. आठवले !

‘वर्तमान में देश एवं धर्म के दृष्टिकोण से आपातकाल चल रहा है । प्राकृतिक आपत्तियां सतत आना, देशद्रोही एवं धर्मद्रोही की प्रबलता बढना, राजकीय अस्थिरता निर्माण करनेवाली घटनाएं होना, समाज, राष्ट्र एवं धर्म के हित के शुभ कार्य में विघ्न आना इत्यादि आपातकाल के भौतिक लक्षण हैं । ऐसे काल में सामान्य नागरिकों का दैनंदिन जीवन संघर्षशील होता है !

नामजप, देवी-देवता आदि के संबंध में कुछ टिप्पणी एवं उनका खंडन

अभ्यास एवं स्वानुभव न होते हुए भी पु.ल. देशपांडे ने किए नामजप के विषय के (नामस्मरण संबंधी) बेताल वक्तव्य ! मनोभाव से नामजप करने पर आचार में दोष नहीं रहता, यह सूर्यप्रकाश समान स्पष्ट है !

घर की फर्श पर पडे दागों की स्वच्छता कैसे करेंगे ?

‘फर्श पर तैलीय पदार्थ गिरा हो, तो सर्वप्रथम सूखे कपडे से उसे पोछ लें । इससे फर्श पर पडा हुआ तेल अथवा घी अन्यत्र फैलेगा नहीं । तदुपरांत छोटे से बर्तन में पानी लेकर उसमें ‘डिटर्जंट पाउडर’ मिलाएं । इस पानी को उबालें । तदुपरांत उसमें कपडा भिगोने डालें । फिर इस पानी को उबालें । तदुपरांत उसमें कपडा भिगोकर-भिगोकर उससे फर्श पोछें ।

आटा, धान्य एवं मसाले खराब न होने हेतु रखी जानेवाली सावधानी

रसोईघर में रखा हुआ आटा, अनाज एवं मसालों के भी खराब होने की संभावना होती है । कुछ समय उपरांत रखा हुआ आटा, अनाज एवं मसालों के भी खराब होने की संभावना होती है । कई बार आटे में पडनेवाले कीडे हमारे लिए कष्टदायी हो सकते हैं । इसलिए वर्षा में आनेवाले कीडे हमारे लिए कष्टदायक भी हो सकते हैं । इसलिए वर्षा में आटा एवं दालों को कीडों से बचाने के लिए कुछ सरल युक्तियां यहां दे रहे हैं ।

आयुर्वेद : रोगों का मूल एवं उस पर दैवीय चिकित्सा

कोई भी रोग, यह शरीर के वात, पित्त एवं कफ की मात्रा में परिवर्तन होने से होता है । आयुर्वेद के अनुसार कर्करोग से हृदयरोग तक एवं पक्षाघात से लेकर मधुमेह तक सर्व रोगों का मूल यही है । शरीर के त्रिदोषों में से किसी भी दोष की मात्रा बढने अथवा अल्प होने अथवा उनके गुणों में परिवर्तन होने से वे दूषित हो जाते हैं । फिर यही कण शरीर में रोग उत्पन्न करते हैं ।