आत्महत्या करना निंदनीय ! – संत तुकाराम महाराज
अमूल्य एवं दुर्लभ मनुष्यजन्म का महत्त्व ध्यान में न लेते हुए छुटपुट कारणवश जीव (प्राण) दे रहे हैं । यह अत्यंत निंदनीय है । उसके समान पाप कर्म नहीं । ब्रह्महत्या को महापातक कहा गया है । इससे लोगों को परावृत्त करने के लिए तुकाराम महाराज कहते हैं, ‘अरे, प्राण क्यों देते हो ? मृत्यु तो निश्चित है, फिर जानबूझकर उसे क्यों गले लगाते हो ?