नवग्रहों की उपासना करने का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व !
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहदोषों के निवारण के लिए ग्रहदेवता की उपासना करने के लिए बताया जाता है । इस उपासना करने के पीछे का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहदोषों के निवारण के लिए ग्रहदेवता की उपासना करने के लिए बताया जाता है । इस उपासना करने के पीछे का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।
भारत में रत्नाें का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है । प्राचीन ऋषि, ज्योतिषी, वैद्याचार्य आदि ने उनके ग्रंथाें में ‘रत्नाें के गुणधर्म एवं उपयोग’ संबंधी विवेचन किया है । ज्योतिषशास्त्र में ग्रहदोषोें के निवारण के लिए रत्नों का उपयोग किया जाता है । रत्न धारण करने के पीछे का उद्देश्य एवं उनका उपयोग इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।
‘शनि ग्रह की ‘साडेसाती’ कहते ही सामान्यतः हमें भय लगता है । ‘मेरा बुरा समय आरंभ होगा, संकटों की श्रृंखला आरंभ होगी’, इत्यादि विचार मन में आते हैं; परंतु साडेसाती सर्वथा अनिष्ट नहीं होती । इस लेख द्वारा ‘साडेसाती क्या है और साडेसाती के होते हुए हमें क्या लाभ हो सकता है’, इस विषय में समझ लेंगे ।
गत जन्मों की साधना के कारण व्यक्ति को जन्म से ही ज्योतिष विद्या का ज्ञान होता है । ज्योतिषशास्त्र से संक्षिप्त परिचय होने पर भी व्यक्ति को उसकी सभी बारीकियों का अपनेआप बोध होने लगता है ।
वर्तमान में कलियुगांतर्गत छठे कलियुग के चक्र का अंत होने से पूर्व का संधिकाल शुरू है । इस युगपरिवर्तन के समय आनेवाला आपातकाल अब आरंभ हो गया है । जग में एवं भारत में होनेवाली विविध घटनाओं से यह आपातकाल सभी अनुभव कर रहे हैं ।
मित्रों, आप देश की भावी पीढी हैं । इसलिए आपको साहसी बनना होगा । छोटी-छोटी बातों से हमें दुर्बल नहीं होना है । ‘मेरी शिक्षा, मेरी पढाई, मेरा भविष्य’ केवल इतना ही अपना जीवन नहीं है, अपितु हमारे राष्ट्र एवं धर्म के प्रति कुछ तो कर्तव्य हैं’, इसका सदैव भान रहे । हमें सतत प्रयत्नरत ही रहना है । जहां प्रयत्न होते हैं, वहां सफलता-असफलता होती ही है ।
अध्यात्मशास्त्र कहता है, ‘प्रतिदिन होनेवाली आत्महत्याएं, ये जीवन की निराशा, संकट, कसौटी के क्षण, तनाव के प्रसंगों का सामना करने के लिए आवश्यक आत्मबल देने के लिए वर्तमान की शिक्षाप्रणाली, समाजरचना एवं संस्कार असफल होने के द्योतक हैं । ‘जीवन के ८० प्रतिशत दुःखों का मूल कारण भी आध्यात्मिक होने से उन पर केवल आध्यात्मिक उपायों से अर्थात साधना द्वारा मात कर सकते हैं ।’
अमूल्य एवं दुर्लभ मनुष्यजन्म का महत्त्व ध्यान में न लेते हुए छुटपुट कारणवश जीव (प्राण) दे रहे हैं । यह अत्यंत निंदनीय है । उसके समान पाप कर्म नहीं । ब्रह्महत्या को महापातक कहा गया है । इससे लोगों को परावृत्त करने के लिए तुकाराम महाराज कहते हैं, ‘अरे, प्राण क्यों देते हो ? मृत्यु तो निश्चित है, फिर जानबूझकर उसे क्यों गले लगाते हो ?
फरीदाबाद में वानप्रस्थ वृद्धजन सेवा सदन में सनातन संस्था की ओर से फल वितरण किया गया । इससे उन्हें बहुत अच्छा लगा । आश्रम के संचालक श्री. अनिलजी सरीन ने सनातन संस्था के कार्य की सराहना की ।
‘जैसा देश वैसा वेश’ ऐसी कहावत है । आज अपना पहनावा ‘फैशन’पर आधारित होता है । कभी-कभार परिवर्तन के लिए किया जानेवाला ‘फैशन’ही यदि प्रतिदिन की पसंद बन जाए, तो स्वास्थ्य समास्याएं कितनी भीषण हो जाती हैं, इसका उदाहरण है जीन्स