दिल्ली के विश्‍व पुस्तक मेले में सनातन संस्था की ग्रंथ-प्रदर्शनी का शुभारंभ !

दिनांक 25 फरवरी से 5 मार्च 2023 के बीच प्रगति मैदान, दिल्ली में हो रहे विश्व पुस्तक मेले में सनातन संस्था द्वारा आध्यात्मिक ग्रंथों की प्रदर्शनी लगाई गई है ।
हिन्दी स्टॉल : हॉल क्र.  2, स्टॉल क्र. 169/170
इंग्लिश स्टॉल  : हॉल क्र. 4, फर्स्ट फ्लोर, स्टॉल क्र.113

नैसर्गिक कालविभाग : वर्ष, अयन, ऋतु, मास एवं पक्ष

सूर्य एवं चंद्र, कालपुरुष के नेत्र समझे जाते हैं । सूर्य एवं चंद्र के भ्रमण के कारण हम कालमापन कर सकते हैं और उसका व्यवहार में उपयोग भी कर सकते हैं । ‘वर्ष, अयन, ऋतु, मास एवं पक्ष’ इन प्राकृतिक कालविभागों की जानकारी इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

चंद्रोदय कब होता है ?

‘सामान्यतः बोली भाषा में हम ऐसा कहते हैं ‘सूर्य का उदय सवेरे एवं चंद्र का रात में होता है ।’ सूर्य के संदर्भ में यह योग्य हो, तब भी  चंद्र के संदर्भ में ऐसा नहीं हाेता है । चंद्रोदय प्रतिदिन भिन्न-भिन्न समय होता है । उस विषय की जानकारी इस लेख द्वारा समझ लेते हैं ।

नवग्रहों की उपासना करने का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व !

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहदोषों के निवारण के लिए ग्रहदेवता की उपासना करने के लिए बताया जाता है । इस उपासना करने के पीछे का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

ज्योतिषशास्त्रानुसार रत्न धारण करने का महत्त्व

भारत में रत्नाें का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है । प्राचीन ऋषि, ज्योतिषी, वैद्याचार्य आदि ने उनके ग्रंथाें में ‘रत्नाें के गुणधर्म एवं उपयोग’ संबंधी विवेचन किया है । ज्योतिषशास्त्र में ग्रहदोषोें के निवारण के लिए रत्नों का उपयोग किया जाता है । रत्न धारण करने के पीछे का उद्देश्य एवं उनका उपयोग इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

शनि ग्रह की ‘साडेसाती’ अर्थात आध्यात्मिक जीवन को गति देनेवाली पर्वणी !

‘शनि ग्रह की ‘साडेसाती’ कहते ही सामान्यतः हमें भय लगता है । ‘मेरा बुरा समय आरंभ होगा, संकटों की श्रृंखला आरंभ होगी’, इत्यादि विचार मन में आते हैं; परंतु साडेसाती सर्वथा अनिष्ट नहीं होती । इस लेख द्वारा ‘साडेसाती क्या है और  साडेसाती के होते हुए हमें क्या लाभ हो सकता है’, इस विषय में समझ लेंगे ।

ज्योतिषशास्त्रानुसार भविष्य बताने की पद्धति एवं प्रारब्ध पर मात करने हेतु साधना एवं क्रियमाणकर्म का महत्त्व

गत जन्मों की साधना के कारण व्यक्ति को जन्म से ही ज्योतिष विद्या का ज्ञान होता है । ज्योतिषशास्त्र से संक्षिप्त परिचय होने पर भी   व्यक्ति को उसकी सभी बारीकियों का अपनेआप बोध होने लगता है ।

प्राकृतिक संकटों से भरा आपातकाल एवं भक्ति की अनिवार्यता !

वर्तमान में कलियुगांतर्गत छठे कलियुग के चक्र का अंत होने से पूर्व का संधिकाल शुरू है । इस युगपरिवर्तन के समय आनेवाला आपातकाल अब आरंभ हो गया है । जग में एवं भारत में होनेवाली विविध घटनाओं से यह आपातकाल सभी अनुभव कर रहे हैं ।

आत्महत्या करना महापाप होने से साधना करना ही सभी समस्याओं का समाधान !

मित्रों, आप देश की भावी पीढी हैं । इसलिए आपको साहसी बनना होगा । छोटी-छोटी बातों से हमें दुर्बल नहीं होना है । ‘मेरी शिक्षा, मेरी पढाई, मेरा भविष्य’ केवल इतना ही अपना जीवन नहीं है, अपितु हमारे राष्ट्र एवं धर्म के प्रति कुछ तो कर्तव्य हैं’, इसका सदैव भान रहे । हमें सतत प्रयत्नरत ही रहना है । जहां प्रयत्न होते हैं, वहां सफलता-असफलता होती ही है ।

आत्महत्या रोकने के लिए शिक्षाप्रणाली में धर्मशिक्षा, धर्माचरण एवं साधना का समावेश अत्यावश्यक !

अध्यात्मशास्त्र कहता है, ‘प्रतिदिन होनेवाली आत्महत्याएं, ये जीवन की निराशा, संकट, कसौटी के क्षण, तनाव के प्रसंगों का सामना करने के लिए आवश्यक आत्मबल देने के लिए वर्तमान की शिक्षाप्रणाली, समाजरचना एवं संस्कार असफल होने के द्योतक हैं । ‘जीवन के ८० प्रतिशत दुःखों का मूल कारण भी आध्यात्मिक होने से उन पर केवल आध्यात्मिक उपायों से अर्थात साधना द्वारा मात कर सकते हैं ।’