गहरी सांस लेना, यह मनुष्य के लिए एक परिपूर्ण औषधि !

श्वास जीवन का आधार है । मन एवं जीवन में रहस्यमय डोर है । श्वास, जिसके आधार पर प्रत्येक प्राणी जीवन में कदम रखता है । इसलिए शारीरिक संरचना में श्वास की गति का स्थान महत्त्वपूर्ण है; कारण श्वास की गति बढने से शरीर का तापमान बढता है । उसे हम अल्पायु का संकेतांक कह सकते हैं ।

हनुमान जयंती निमित्त श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी का शुभसंदेश !

जिनका मंत्र ‘रामभक्ति’ तथा धुन ‘रामसेवा’ ही है, वे हनुमानजी हैं । प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के पश्चात उनके श्रीचरणकमलों में बैठकर हनुमानजी ने अपने प्राणनाथ प्रभु से आर्तता से आगे दी हुई प्रार्थना की ।

हिन्दू नववर्ष के उपलक्ष्य में श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी का शुभ संदेश !

इस वर्ष गुडीपडवा २२ मार्च को है । गुडीपडवा अर्थात सृष्टि का निर्मिति दिन ! इस नववर्षारंभ दिन के अवसर पर श्रीरामस्‍वरूप सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के चरणों में शरणागत होकर साधना के प्रयास बढाने का शुभ संकल्प करें !…

व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर ज्योतिषशास्त्र की उपयुक्तता

ज्योतिषशास्त्र, यह कालज्ञान का शास्त्र है । ‘कालमापन’ एवं ‘कालवर्णन’, उसके २ अंग हैं । कालमापन के अंतर्गत काल नापने के लिए आवश्यक घटक एवं गणित की जानकारी होती है । कालवर्णन के अंतर्गत काल का स्वरूप जानने के लिए आवश्यक घटकों की जानकारी होती है । कालवर्णन के दृष्टिकोण से ज्योतिषशास्त्र की व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर उपयुक्तता इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

ज्योतिषशास्त्र : काल की अनुकूलता एवं प्रतिकूलता बतानेवाला शास्त्र !

ज्योतिषशास्त्र अर्थात ‘भविष्य बतानेवाला शास्त्र’ ऐसी अनेकों की समझ होती है और इसलिए उन्हें लगता है कि ज्योतिषी हमारा भविष्य विस्तार से बताए । क्या वास्तव में ज्योतिष भविष्य बतानेवाला शास्त्र है, यह इस लेख द्वारा हम समझ लेंगे । उससे पूर्व ज्योतिषशास्त्र का प्रयोजन समझ लेंगे ।

फल-ज्योतिषशास्त्र के मूलभूत घटक : ग्रह, राशि एवं कुंडली के स्थान

फल-ज्योतिषशास्त्र ग्रह, राशि एवं कुंडली के स्थान, इन ३ मूलभूत घटकों पर आधारित है । इन ३ घटकों के कारण भविष्य दिग्दर्शन करना संभव होता है । इन ३ घटकों को संक्षेप में इस लेख द्वारा समझ लेते हैं ।

प्रभु श्रीराम का जन्म होने के पीछे अनेक उद्देश्य होना !

वाल्मीकि-रामायण के उत्तरकांड के ९१ वें सर्ग की कथा में आया है, ‘प्राचीन काल की बात है । एक बार देवासुर-संग्राम में देवताओं से  पीडित दैत्यों ने महर्षि भृगु की पत्नी से आश्रय मांगा । भृगुपत्नी ने उन्हें आश्रय दिया और वे दैत्य उनके आश्रम में निर्भयता से रहने लगे ।

सीतामाता के वास्तव्य से पावन हुई श्रीलंका का ‘सीता कोटुवा’ !

रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहते हैं, वह स्थान आज का श्रीलंका देश है । त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णु ने श्रीरामावतार धारण किया एवं लंकापुरी में जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । युगों-युगों से इस स्थान पर हिन्दू संस्कृति ही थी । २ सहस्र ३०० वर्षों पूर्व राजा अशोक की कन्या संघमित्रा के कारण श्रीलंका में बौद्ध पंथ आया । अब वहां के ७० प्रतिशत लोग बौद्ध हैं ।