प्रत्येक व्यक्ति अपने क्षेत्र में कार्यरत रहकर साधना करें ! – पू. प्रदीप खेमका, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था (झारखंड)

कोरोना महामारी के काल में लोग भयग्रस्त थे । सर्वत्र ही वैसा वातावरण था, तब भी मेरा व्यवसाय भली-भांति चल रहा था । मेरा ऐसा भाव है कि ‘मेरा व्यापार गुरुदेवजी का है ।’ साधना मैं अपने लिए कर रहा हूं । कोरोना के काल में मेरा व्यवसाय ठीक से चल रहा था ।

सात्त्विक उदबत्ती में बांस की लकडी का उपयोग करने पर भी उससे कोई हानि नहीं; अपितु लाभ ही होना एवं वह उदबत्ती धर्मशास्त्र के विरुद्ध भी न होना

सात्त्विक उदबत्ती में बांस की काडी होते हुए भी उसे जलाने के पश्चात उसमें जलाई गई धूपबत्ती समान ही सकारात्मक ऊर्जा पाई गई, लगभग उतनी ही सकारात्मक ऊर्जा सात्त्विक उदबत्ती में मिली ।

‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ के उपलक्ष्य में सनातन संस्था के संस्थापक (सच्चिदानंद परब्रह्म) डॉ. जयंत आठवलेजी का संदेश

आप सभी हिन्दू राष्ट्रवीरों को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य हेतु भक्ति करने की बुद्धि तथा देवताओं की शक्ति प्राप्त हो, इसके लिए मैं भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना करता हूं !’

मनुष्य को रात में अनिष्ट शक्तियों का कष्ट अधिक मात्रा में होने के पीछे का अध्यात्मशास्त्र !

पृथ्वी पर जिन भूभागों पर सूर्यप्रकाश पडता है, उस समय एवं उसके पश्चात भी कुछ समय के लिए सूर्य का वातावरण पर परिणाम सूक्ष्म रूप से टिका रहता है; कारण सूर्यप्रकाश में दैवीय अस्तित्व होता है । इसलिए सूक्ष्म से अनिष्ट शक्तियों को सूर्यप्रकाश से युक्त भूभागों पर कार्य करना कठिन होता है ।

विकार-निर्मूलन एवं साधना की अडचनों पर उपयुक्त : सर्वबाधानाशक यंत्र !

हमेशा बीमार पडना अथवा अपघात होने से साधना में बाधा आना, आध्यात्मिक कष्ट होना अथवा सेवा करते समय सेवा से संबंधित उपकरण, वाहन इत्यादि बंद पडना अथवा अन्य कुछ बाधाएं आना, इन सभी पर यह यंत्र उपयुक्त है ।

संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज

इनका जीवन अद्वैतरूपी धर्मसिद्धांत प्रस्तुत करनेवाला होता है । अत: इनके जीवन और इनकी मार्गदर्शनात्मक शैली को ब्रह्मरूपी कर्मसिद्धांत प्राप्त हाेने से ये सिद्धांत ब्रह्मवाक्य समान अनुकरणीय हो गए हैं ।

अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाले कष्टों पर मात करने के लिए होनेवाले कष्टों पर मात करने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर उपायों की क्षमता एवं साधना बढाएं !

कालमहिमा अनुसार वर्तमान में अनिष्ट शक्तियों का प्रकोप होना

वर्तमान के कलियुग में बहुतांशी समाज धर्माचरण से विन्मुख हुआ है । इसलिए समाज एवं वातावरण के रज-तम इन कष्टदायक गुणों की प्रबलता बढ गई है । यह अनिष्ट शक्तियों को पोषक होने से उनकी प्रभाव बढ गया है और इससे उन्हें मनुष्यों को कष्ट देने की मात्रा भी बहुत बढ गई है ।

प.पू. भक्तराज महाराज की छायाचित्रात्मक स्मृतियां (भाग १) !

प.पू. भक्तराज महाराज के मध्यप्रदेश स्थित मोरटक्का एवं इंदौर के आश्रमों में जहां उनका वास्तव्य था, उस चैतन्यमयी वास्तु का छायाचित्रात्मक दर्शन लेंगे ।

प.पू. भक्तराज महाराजजी की छायाचित्रात्मक स्मृतियां (भाग २) !

प.पू. भक्तराज महाराज सनातन के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु थे । उन्हीं के कृपाशीर्वाद से सनातन की स्थापना हुई । सनातन को प.पू. बाबा के उत्तराधिकारी प.पू. रामानंद महाराज का भी कृपाछत्र मिला । उनके आशीर्वाद से वर्ष १९९१ में स्थापित हुए सनातन के कार्य का विस्तार किसी ‍विशाल वटवृक्ष समान हो गया है । सनातन परिवार प.पू. बाबा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ है !

पशु-पक्षियों का सहजता से सद्गुरु की ओर आकर्षित होना, उनमें विद्यमान चैतन्य का द्योतक !

हम सभी ने कहीं न कहीं पढा ही होगा कि पूर्व के काल में ऋषि-मुनियों के आश्रम में पशु-पक्षी निर्भयता से विचरते थे । ऋषि-मुनियों की तपस्या की सात्त्विकता पशु-पक्षियों को भी ध्यान में आती है । प्रकृति भी उस सात्त्विकता को प्रतिसाद देती है, इसीलिए ऋषि-मुनियों के आश्रम में भी बहार आ जाती थी ।