अधिक मास

अधिक मास को ‘मलमास’ कहते हैं । अधिक मास में मंगल कार्य की अपेक्षा विशेष व्रत और पुण्‍यकारी कृत्‍य किए जाते हैं ।

ॐ का नामजप एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ॐ का महत्त्व !

ॐ मंत्र के विषय में अनेक सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं । ॐ एक वैश्विक ध्वनि (कॉस्मिक साउंड) होने से उससे विश्व की निर्मिति हुई है, यह उसमें से सर्वाधिक प्रचलित सिद्धांत है; परंतु भारतीय (हिन्दू) संस्कृति में ॐ का नियमित जप करने के पीछे केवल वही एकमेव कारण नहीं,

सनातन संस्था जो स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया सिखाती है, उसके अनुसार आचरण करें ! – अधिवक्ता कृष्णमूर्ती पी., ‍विश्व हिन्दू परिषद, कोडागू, कर्नाटक

कुछ दिन पूर्व जब उन पर आक्रमण हुआ, उस समय उन्होंने ‘परमपूज्य गुरुदेवजी ने मेरी रक्षा की है । मुझे अभी बहुत कार्य करना है’, ऐसा बताया । अब उन्होंने कर्नाटक राज्य के अधिवक्ताओं का संगठन करने का दायित्व स्वीकार किया है ।

अभिव्यक्तिस्वतंत्रता की दिशा भारतविरोधी शक्तियों ने निर्धारित की है ! – चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

 हिन्दू धर्म दुराचार को अधर्म मानता है । विश्वकल्याण की भावना से काम करना भी धर्म है । योग्य कृति को ही धर्म कहा गया है । अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर अन्यों को पीडा देना, अधर्म है । अभिव्यक्ति स्वातंत्रता की मुख्य अडचन यह है कि अभिव्यक्ति स्वतंत्रता अथवा स्वैराचार ?

किसी वस्तु पर शीघ्र गति से आध्यात्मिक स्तर पर उपाय करने की पद्धति

‘किसी वस्तु पर कष्टदायक स्पंदनों का आवरण दूर करने के लिए भी उस वस्तु की किनार के सामने मुठ्ठी से आवरण निकालने पर उस वस्तु पर से भी आवरण शीघ्र निकल जाता है । तदुपरांत उस वस्तु के किनार के सामने हथेली रखकर आध्यात्मिक उपाय करने पर उसमें शीघ्र अच्छे स्पंदन आते हैं ।’

शरीर में कमजोरी का इलाज : आयुर्वेद के प्राथमिक उपचार

कई बार कुछ लोगों को बहुत थकान लगती है। शरीर में कमजोरी का इलाज करने हेतू आगे दिए क्रम से प्राथमिक उपचार करें ।

पेट में वेदना एवं पानी

पेट में तीव्र वेदना एवं एक से अधिक उलटी हुई हों, तो पेट के गंभीर विकार होने की संभावना है। ऐसे रोगी को पानी पीना भी धोकादायक हो सकता है ।

आपातकाल में अनिष्ट शक्तियों के कष्टों की ओर देखने का दृष्टिकोण एवं कष्ट पर मात करने के उपाय

अनेक साधक आध्यात्मिक कष्ट पर मात करने के लिए आध्यात्मिक उपायों में बैठते हैं । वर्तमान में आपातकाल आरंभ होने से ऐसा नहीं है कि कष्ट पूर्णरूप से चला जाएगा । यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि कष्ट में भी यदि हम भगवान से अपना अनुसंधान टिकाए हैं, तो उसमें भी साधना होगी

ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज की उपासना से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना संभव ! – सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी, धर्मप्रचारक संत, सनातन संस्था

आध्यात्मिक साधना करने से आत्मविश्वास जागृत होता है तथा व्यक्ति तनावमुक्त जीवन जी सकता है । वह साधना कर अपने कृत्य के फल के कार्य की अपेक्षा किए बिना कार्य कर सकता है तथा प्रत्येक कृत्य से आनंद प्राप्त करता है । फल की अपेक्षा रखे बिना काम करने से वह निःस्वार्थ कर्मयोग होता है, जिससे आध्यात्मिक प्रगति भी होती है । केवल ऐसा व्यक्ति ही धर्मरक्षा का कार्य सकता है ।

सनातन संस्था का हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव २०२३ में सहभाग !

इस अवसर पर व्यासपीठ पर भागवताचार्य (अधिवक्ता) श्री. राजीवकृष्णजी महाराज झा, पू. भागिरथी महाराज, पूज्य संत श्रीराम ज्ञानीदास महात्यागीजी, अधिवक्ता (पू.) हरिशंकर जैनजी, महंत दीपक गोस्वामी के करकमलों से सनातन की ग्रंथशृंखला के अंतर्गत ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की अनमोल सीख’ ‘प्रत्यक्षरूप से साधना सिखाने की पद्ध्तियां’ इस हिन्दी एवं मराठी भाषा के ग्रंथ का लोकार्पण किया गया ।