प्रयागराज महाकुम्भ मेला 2025
13 जनवरी से 26 फरवरी
सनातन संस्था के संग जगाएं ज्योत भक्ति की,
ले अनुभूति आनंद एवं दिव्यता की ।
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कुंभ मेला एक शाश्वत परंपरा है, जो हिन्दुओं की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का प्रतिनिधित्व करता है । कुम्भ मेले को विश्व में सबसे बडे धार्मिक आयोजन के रूप में मान्यता प्राप्त है । यह श्रद्धालुओं की सुध-बुध भुलाकर उनमें वैराग्य भाव जागृत करता है । उनके लिए आस्था और भक्ति में डूबने के लिए यह एक दिव्य व्यासपीठ के रूप में कार्य करता है । प्राचीन काल से कुंभपर्व बिना किसी आर्थिक सहायता की अपेक्षा आयोजित होता आया है । दिन-रात चलनेवाले अन्नछत्रों के माध्यम से ऊंच-नीच के भेदभाव का विस्मरण करवानेवाला यह भक्तों का पर्व है । ऐतिहासिक रूप से, कुंभ मेला धर्मजागृति, आध्यात्मिक सभाओं और सम्मेलनों के माध्यम से धर्म के संरक्षण का कार्य करते आया है । इसलिए कुंभमेले में प्रवचनों से ज्ञानप्राप्ति करें । गंगा स्नान, पूजा-अर्चना, पितृतर्पण, श्राद्धकर्म, यज्ञयाग, दानधर्म, ध्यान-धारणा, जप-तप आदि धार्मिक कृति तथा साधना करें ।
जनता को धर्म के सिद्धांतों की शिक्षा देने के लिए, भक्तों को आध्यात्मिकता के मार्ग पर दिशा देने के लिए समर्पित सनातन संस्था, पवित्र कुंभ मेलों में सक्रिय रूप से भाग लेती है । इस वर्ष, सनातन संस्था आस्था के इस भव्य संगम में भाग लेनेवाले करोडों श्रद्धालुओं को धर्म के बारे में अमूल्य ज्ञान प्रदान करने हेतु पोस्टर और सनातन के ग्रंथों की प्रदर्शनी लगाएगी ।
सनातन संस्था के शिविर में आने से श्रद्धालुओं को इन ग्रंथों में समाहित दिव्य ज्ञान जानने का अवसर मिलेगा । जो साधना करने की इच्छा रखते है उनके लिए ये ग्रंथ मार्गदर्शक है । इसके अतिरिक्त, साधना विषय पर दैनिक व्याख्यान आयोजित किए जाएंगे, जो लोगों को प्रतिदिन की दिनचर्या में आध्यात्मिकता का समावेश करने के लिए मार्गदर्शन करेंगे । इन कार्यों के माध्यम से, सनातन संस्था का उद्देश्य व्यक्तियों को सनातन हिन्दू धर्म के प्रति अपने विश्वास और अभ्यास को गहरा करने के लिए प्रेरित करना है । कुम्भमेले का आध्यात्मिक प्रयोजन ध्यान में रख सश्रद्ध हिन्दू समाज केवल कुम्भपर्व में ही नहीं, वर्ष के ३६५ दिन आध्यात्मिक प्रगति के लिए साधना करे, यह ईश्वरचरणों में प्रार्थना है !
प्रयागराज महाकुंभ मेला २०२५ में सनातन संस्था का कार्य
महाकुंभ मेले में सनातन संस्था से जुडें !
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धर्मशिक्षा प्रदान करने वाले फलकों की प्रदर्शनी
साधना के मूल सिद्धांतों पर दैनिक सत्संग
साधु-संतों का स्वागत एवं उनसे मिलना
राष्ट्र एवं धर्म विषयक सनातन के ग्रंथों की प्रदर्शनी
आनंदमय जीवन कैसे जीएं, इस पर साधना सत्संग
स्वच्छ कुंभ, सात्त्विक कुंभ अभियान
कार्यक्रमों की सूचि
सनातन संस्था आपको महाकुंभ मेले में हमारे नित्यनूतन कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करती है । साधना के मूल सिद्धांतों को सीखने के लिए दैनिक सत्संग में सम्मिलित हों, तथा आनंदमय जीवन जीने हेतु मार्गदर्शन के लिए साधना सत्संग में भाग लें । धर्म के विषय में अपना ज्ञान बढाने के लिए हमारी धर्मशिक्षा प्रदान करनेवाली प्रदर्शनी का लाभ लें तथा धर्म, अध्यात्म, राष्ट्र-निर्माण, आयुर्वेद, बाल संस्कार आदि विविध विषयों पर आधारित हमारी ग्रंथ प्रदर्शनी पर आएं । धर्म का मार्ग अपनाने तथा अपनी आध्यात्मिक यात्रा को गति देने के लिए हमसे जुडें !
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उद्घाटन
10 जनवरी 2025
इस दिन से मोरी – मुक्ति मार्ग चौराहा, सेक्टर 19, प्रयागराज में सनातन संस्था के शिविर और धर्मशिक्षा प्रदर्शनी का आरंभ होगा । सभी इसका अवश्य लाभ लें ।
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दैनिक सत्संग
13 जनवरी से 2 फरवरी 2025
साधना के मूल सिद्धांतों पर सत्संग । आध्यात्मिक जीवन जीने का मार्गदर्शन प्राप्त करें तथा अपनी शंकाओं का समाधान कराएं ।
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साधना सत्संग
9 फरवरी 2025
इस महासत्संग में आनंदी जीवन पर मार्गदर्शन होगा। यह सत्संग साधना करनेवाले तथा व्यावहारिक जीवन जीनेवाले दोनों के लिए लाभकारी है ।
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ग्रंथ प्रदर्शनी
6 जनवरी से 7 फरवरी 2025
यहां आप ११ भाषाओं में ३५० से अधिक ग्रंथों द्वारा हिन्दू जीवन, संस्कृति तथा राष्ट्र से जुडी गहन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।
धर्म प्रचार-प्रसार हेतु
दान करें !
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१२ वर्ष पश्चात आनेवाले इस महा कुम्भपर्व में अपनी क्षमतानुसार योगदान दें !
इस महाकुंभ मेले में सनातन संस्था 200 साधकों के माध्यम से धर्म का प्रचार-प्रसार करेगी । इसके अंतर्गत श्रद्धालुओं को आनंदमय जीवन जीने के लिए साधना का मार्गदर्शन करना, संस्कृति पालन एवं धार्मिक आचरण सिखानेवाले निःशुल्क प्रवचन और भव्य ग्रंथ एवं फलक प्रदर्शनियों का आयोजन, तथा गंगा और कुंभ की महिमा बतानेवाली प्रसारसामग्री और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसार करना आदि किया जाएगा । सनातन संस्था के साधक ‘स्वच्छ कुंभ, सात्त्विक कुंभ’ के अंतर्गत स्वच्छता में सम्मिलित होकर कुम्भ मेले की पवित्रता बनाए रखने में सहायता करेंगे । कुम्भ मेला हिन्दुओं की आध्यात्मिक शक्ति बढानेवाला विश्व का सबसे बडा तीर्थ है । इस कुम्भ पर्व में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 40 करोड श्रद्धालु गंगास्नान हेतु आने की संभावना है । आप के द्वारा किए गए दान-धर्म के कारण सनातन संस्था उपरयुक्त उपक्रम चलाकर अधिक से अधिक श्रद्धालुओं तक पहुंच पाएगी ।
शास्त्र कहता है कि तीर्थराज प्रयाग में होनेवाले महाकुंभ पर्व के निमित्त दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है । इसलिए आप भी अपनी क्षमता के अनुसार धन, भोजन, सामान आदि का दान करें और धार्मिक कार्यों में सम्मिलित हों !
निवास
₹19,35,000
रजाई, गद्दे, चादर, तकिए; हीट कॉयर (फोम); निवास हेतु फ्लॅट / टेंट; जनरेटर एवं इन्वर्टर
आहार (अन्न)
₹28,50,000
साधकों के लिए भोजन तथा अल्पाहार, अतिथियों के लिए भोजन तथा अल्पाहार, पीने के पानी की व्यवस्था
प्रदर्शनी
₹26,00,000
टेंट लगाना; प्रदर्शनी हेतु फ्लेक्स, कनात; मेज, कुर्सियां २००; कार्पेट (लाल एवं हरा)
प्रसिद्धि
₹4,85,000
समाचार, टी.वी. चैनल पर प्रसिद्धि व पत्रकार सम्मेलन; निमंत्रण पत्रिका, होर्डिंग, पोस्ट, फ्लेक्स फलकों की छपाई
ध्वनि एवं विद्युत व्यवस्था
₹10,25,000
सत्संग हेतु विद्युत व्यवस्था, (२५ हैलोजन सहित) ध्वनि व्यवस्था; अन्य विद्युत उपकरण; प्रोजेक्टर व्यवस्था
अन्य
₹ 17,05,000
कार्यक्रमों के लिए व्यासपीठ; ५ चारपहिया एवं १० दोपहिया वाहनों के लिए पेट्रोल; चिकित्सा (मेडिकल) व्यवस्था; कार्यालयीन खर्च
Payment Options
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गत कुम्भमेलों में सनातन संस्था का कार्य
धर्म की सीख देना
साधना सीखाना
साधू – सन्तों का स्वागत
यात्रा सुनियोजन
सत्संग
राम नाम जाप का आयोजन
ग्रंथ प्रदर्शनी
धर्मशिक्षा फलक प्रदर्शनी
‘स्वच्छ कुंभ, सात्त्विक कुंभ’ अभियान
गत कुम्भमेलों में सनातन संस्था का कार्य
धर्म की सीख देना
साधना सीखाना
साधू – सन्तों का स्वागत
यात्रा सुनियोजन
सत्संग
ग्रंथ प्रदर्शनी
राम नाम जाप का आयोजन
धर्मशिक्षा फलक प्रदर्शनी
‘स्वच्छ कुंभ, सात्त्विक कुंभ’ अभियान
गत कुम्भमेलों में सन्तों द्वारा सनातन संस्था की प्रशंसा !
कुम्भमेला भारत की सांस्कृतिक महानता के केवल दर्शन ही नहीं, अपितु सन्तसंग प्रदान करनेवाला आध्यात्मिक सम्मेलन है । कुम्भपर्व के निमित्त प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक, इन चार क्षेत्रों में प्रति १२ वर्ष पश्चात सम्पन्न होनेवाले इस पर्व का हिन्दू जीवनदर्शन में महत्त्वपूर्ण स्थान है । गंगास्नान, साधना, दानधर्म, पितृतर्पण, श्राद्धविधि, सन्तदर्शन, धर्मचर्चा जैसी धार्मिक कृति करने के लिए करोडों श्रद्धालु एवं साधु-सन्त यहां आते हैं ।
प्रयाग में गंगा, यमुना तथा सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर प्रत्येक १२ वर्ष पश्चात कुम्भमेले का आयोजन होता है, जिसे ‘महाकुम्भमेला’ कहते हैं । इस कुम्भपर्व में मकर संक्रांति, माघी (मौनी) अमावस्या एवं वसन्त पंचमी, ये तीन पर्वकाल होते हैं । इनमें माघी (मौनी) ‘अमावस्या’ प्रमुख पर्व है तथा इसे ‘पूर्णकुम्भ’ कहते हैं । माघी पूर्णिमा को ‘पर्वकाल’ माना जाता है । इन चार पर्वों पर गंगास्नान का विशेष महत्त्व है । १२ वर्ष में आनेवाले कुम्भमेले के उपरान्त ६ वर्ष पश्चात आनेवाले कुम्भमेले को ‘अर्धकुम्भमेला’ कहते हैं ।
कल्पवास – कुम्भपर्व की एक साधना !
प्रयाग के संगम स्थान पर पौष शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक अनेक साधु-सन्त एवं श्रद्धालु संयमपूर्वक निवास करते हैं । इस निवास को ‘कल्पवास’ कहते हैं ।
महाकुम्भ 2025 में राजसी स्नान कब है ?
जनवरी 2025
पौष पूर्णिमा
जनवरी 2025
मकर संक्रांति
जनवरी 2025
मौनी अमावस्या
फरवरी 2025
वसंत पंचमी
फरवरी 2025
माघी पूर्णिमा
फरवरी 2025
महाशिवरात्रि
ग्रहगणित के अनुसार चार कुम्भक्षेत्रों में होनेवाले कुम्भपर्व
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हरिद्वार कुम्भपर्व
जब सूर्य मेष राशि में एवं गुरु कुम्भ राशि में प्रवेश करते हैं
यह उत्तराखंड राज्यके गंगातटपर बसा प्राचीन तीर्थक्षेत्र है । हिमालयकी अनेक कंदराओं एवं शिलाओंसे तीव्र वेगसे नीचे आनेवाली गंगाका प्रवाह, यहांके समतल क्षेत्रमें आनेपर मंद पड जाता है । इस स्थानको ‘गंगाद्वार’ भी कहते हैं ।
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प्रयाग कुम्भपर्व
जब गुरु वृषभ राशि में और चन्द्र एवं सूर्य मकर राशि में आते हैं
यह उत्तरप्रदेशमें गंगा, यमुना एवं सरस्वतीके पवित्र ‘त्रिवेणी संगम’पर बसा तीर्थस्थान है । इस पवित्र संगमके कारण ही इसे ‘प्रयागराज’ अथवा ‘तीर्थराज’ कहा जाता है । प्रयाग का अर्थ है ‘बडा यज्ञ करना’ । ब्रह्मदेवकी कुरुक्षेत्र, गया, विराज, पुष्कर एवं प्रयाग, इन पांच यज्ञवेदियोंमेंसे प्रयाग मध्यवेदी है । काशी, प्रयाग एवं गया इस त्रिस्थली यात्रामें एक प्रयागका स्थान धार्मिक दृष्टिसे अद्वितीय है । इस क्षेत्रका माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि महाप्रलयके समय भले ही संपूर्ण विश्व डूब जाए, तब भी प्रयाग नहीं डूबेगा ।
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उज्जैन कुम्भपर्व
जब सूर्य मेष राशि में एवं गुरु सिंह राशि में होते हैं।
उज्जैन का कुंभपर्व क्षिप्रा नदी के तटपर होता है । यह उत्तरवाहिनी पवित्र नदी जिस स्थानपर पूर्ववाहिनी बन जाती है उसका, इस स्थानपर प्राचीन काल में एक बार गंगाजी से मिलन हुआ था । आज वहां गणेश्वर नामक लिंग है, साथ ही स्कंदपुराण में क्षिप्रा नदी को गंगा नदी माना गया है ।
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त्र्यंबकेश्वर-नासिक कुम्भपर्व
जब गुरु तथा सूर्य दोनों सिंह राशि में प्रवेश करते हैं
त्र्यंबकेश्वर-नासिक का कुंभपर्व गोदावरी नदी के तटपर होता है । गौतमऋषीजी गंगा को गोदावरी नाम से त्र्यंबकेश्वर-नासिक क्षेत्र में ले आए । ब्रह्मपुराण में विंध्य पर्वत के उस पार की गंगाजी को गौतमी (गोदावरी) के नाम से जाना जाता है, ऐसा कहा गया है ।
कुम्भमेले का अनन्यसाधारण महत्त्व
यहां साधना कर उसका १००० गुना फल प्राप्त करें
पुण्यदायी
कुम्भपर्व में स्नान करने से १ सहस्र अश्वमेध, १०० वाजपेय तथा पृथ्वी की १ लाख परिक्रमा करने का पुण्य मिलता है, साथ ही १ सहस्र कार्तिक स्नान, १०० माघ स्नान तथा नर्मदा पर १ करोड वैशाख स्नान का फल मिलता है ।
मन एवं कर्म की शुद्धि होना
कुंभपर्व के काल में सर्वत्र पुण्यतरंगों का भ्रमण होता है । इससे मनुष्य के मन की शुद्धि होती है । ऐसे शुद्ध मन में उत्पन्न होनेवाले विचारों के माध्यम से कृति भी फलीभूत होती है । अर्थात, कृति और कर्म, दोनों भी शुद्ध हो जाते हैं ।
अल्प कालावधि में कार्यसिद्धि होना
कुंभपर्व के समय में अनेक देवी-देवता, मातृका, यक्ष, गंधर्व और किन्नर भी भूमंडल की कक्षा में कार्यरत होते हैं । साधना करने से इन सभी से आशीर्वाद प्राप्त कर अल्प कालावधि में ही हमारी कार्यसिद्धि होती है ।
पूर्वजों को मुक्ति दिलाना
गंगाजी का प्रयोजन ही मूलतः पूर्वजों को मुक्ति दिलाना है । इसलिए कुंभपर्व में गंगास्नानसहित पितृतर्पण की धर्माज्ञा है । वायुपुराण में कुंभपर्व को श्राद्धकर्म के लिए उपयुक्त बताया गया है ।
पापों से मुक्त होना
पवित्र तीर्थस्थान में स्नान कर पापक्षालन के उद्देश्य से अनेक श्रद्धालु कुंभक्षेत्र में स्नान करते हैं । उदाहरणार्थ, मत्स्यपुराण (अध्याय १०४, श्लोक ११) के अनुसार तीर्थराज प्रयाग के दर्शन करना, वहां नामजप करना और वहां की मिट्टी को स्पर्श करने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है ।
शरीर में ईश्वरीय ऊर्जा प्रवाहित होना
कुंभपर्व का संबंध खगोल एवं भूगोल के साथ है । कुंभपर्व में विद्यमान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के कारण वैज्ञानिक ऊर्जा उत्पन्न होती है । वह कुंभपर्व के स्थान पर विद्यमान जलप्रवाह में प्रवाहित होती है । ऐसे नदी के प्रवाह में स्नान करने से वह ईश्वरीय ऊर्जा हमारे शरीर में प्रवाहित होने लगती है ।
संतों का सत्संग
कुंभपर्व में भारत के विविध पीठों के शंकराचार्य, १३ अखाडों के साधु, महामंडलेश्वर, अनेक विद्वान, संन्यासी और संत-महात्मा एकत्रित होते हैं । इसलिए कुंभपर्व का स्वरूप अखिल भारतवर्ष के संत-सम्मेलन जैसा भव्यदिव्य होता है । कुंभपर्व के कारण श्रद्धालुओं को संत सत्संग का सबसे बडा अवसर उपलब्ध होता है ।
आशीर्वाद सहजता से प्राप्त होना
गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी एवं क्षिप्रा इन नदियों के क्षेत्र में कुंभपर्व होता है । नदी के पुण्यक्षेत्र में निवास करनेवाली अनेक देवताएं, पुण्यात्मा, ऋषिमुनि एवं कनिष्ठ गण भी इस कालावधि में जागृत होने से उनके आशीर्वाद प्राप्त होने में भी सहायता मिलती है ।
क्या आप महाकुम्भ मेले में जा रहें हैं ?
तो हमसे अवश्य जुडें…
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पता
1. मोरी मुक्ति मार्ग चौराहा, सेक्टर 19, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश 211019
2. कुंभक्षेत्र, गंगेश्वर कैलाशपुरी चौराहा, कलश द्वार के निकट, सेक्टर 9, प्रयागराज, उ.प्र. 211002
इ-मेल
फोन नंबर
+91 7058885610
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कुम्भमेले के विषय में जानिए सबकुछ !
कुम्भमेला का अर्थ, उसका इतिहास, कुम्भमेले की परंपरा क्या है आदी जानकारी यहां पढें । आखाडे का अर्थ तथा विभिन्न आखाडे के नागा संन्यासियों के विषय में भी जान लें !