वर्षारंभ दिन कब मनाएं ?
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टी की निर्मिति हुई, इसलिए इस दिन हिन्दू नववर्ष मनाया जाता है । इस दिन को संवत्सरारंभ, गुडी पडवा, विक्रम संवत् वर्षारंभ, युगादी, वर्षप्रतिपदा, वसंत ऋतु प्रारंभ दिन आदी नामों से भी जाना जाता है । यह दिन महाराष्ट्र में ‘गुडीपडवा’ के नाम से भी मनाया जाता है । गुडी अर्थात् ध्वजा । पाडवा शब्द में ‘पाड’ का अर्थ होता है पूर्ण; एवं ‘वा’ का अर्थ है वृद्धिंगत करना, परिपूर्ण करना । इस प्रकार पाडवा शब्द का अर्थ है, परिपूर्णता ।
वर्षारंभ दिन क्यों मनाएं ?
भिन्न-भिन्न संस्कृति अथवा उद्देश्य के अनुसार नववर्ष का आरंभ भी विभिन्न तिथियोंपर मनाया जाता हैं । उदाहरणार्थ, ईसाई संस्कृति के अनुसार इसवी सन् १ जनवरी से आरंभ होता है, जबकि हिंदु नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है । आर्थिक वर्ष १ अप्रैल से आरंभ होता है, शैक्षिक वर्ष जून से आरंभ होता है, जबकि व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है ।
वर्षारंभ मनाने का नैसर्गिक कारण
भगवान श्रीकृष्णजी अपनी विभूतियोंके संदर्भ में बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं,
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।। – श्रीमद्भगवद्गीता (१०.३५)
अर्थ : ‘सामोंमें बृहत्साम मैं हूं । छंदोंमें गायत्रीछंद मैं हूं । मासोंमें अर्थात् महीनोंमें मार्गशीर्ष मास मैं हूं; तथा ऋतुओंमें वसंतऋतु मैं हूं ।’
सर्व ऋतुओंमें बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु । इस काल में उत्साहवर्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है । शिशिर ऋतु में पेडोंके पत्ते झड चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतु के आगमन से पेडोंमें कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं । कोयल की कूक सुनाई देती है । इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजी की विभूतिस्वरूप वसंत ऋतु के आरंभ का यह दिन है ।
वर्षारंभ मनाने के ऐतिहासिक कारण
१. इस दिन रामने वाली का वध किया ।
२. शकोंने प्राचीनकाल में शकद्वीप पर रहनेवाली एक जाति हुणोंको पराजित कर विजय प्राप्त की ।
३. इसी दिनसे ‘शालिवाहन शक’ प्रारंभ हुआ; क्योंकि इस दिन शालिवाहनने शत्रुपर विजय प्राप्त की ।
वर्षारंभ दिन मनाने का आध्यात्मिक कारण
ब्रह्मांड की निर्मिति का दिन
ब्रह्मदेव ने इसी दिन ब्रह्मांड की निर्मिति की । उनके नाम से ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ । सत्ययुग में इसी दिन ब्रह्मांड में विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुण से निर्गुण-सगुण स्तर पर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वी पर आया ।
सृष्टि के निर्माण का दिन
ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की, तदूपरांत उसमें कुछ उत्पत्ति एवं परिवर्तन कर उसे अधिक सुंदर अर्थात परिपूर्ण बनाया । इसलिए ब्रह्मदेव द्वारा निर्माण की गई सृष्टि परिपूर्ण हुई, उस दिन गुडी अर्थात धर्मध्वजा खडी कर यह दिन मनाया जाने लगा ।
चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि । – ब्रम्हपुराण
अर्थ : ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सत्ययुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है ।
साढेतीन मुहूर्तोंमें से एक
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढेतीन मुहूर्त होते हैं । इन साढेतीन मुहूर्तोंकी विशेषता यह है, कि अन्य दिन शुभकार्य करने के लिए मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनोंका प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त ही होता है ।
वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहना
१. ब्रह्मदेव की ओर से सगुण-निर्गुण ब्रह्मतत्त्व, ज्ञानतरंगें, चैतन्य एवं सत्त्वगुण ५० प्रतिशत से भी अधिक मात्रा में प्रक्षेपित होता है । अतः यह दिन वर्ष के अन्य दिनोंकी तुलना में सर्वाधिक सात्त्विक होता है ।
२. प्रजापति तरंगें सबसे अधिक मात्रा में पृथ्वीपर आती हैं । इससे वनस्पति अंकुरने की भूमि की क्षमता में वृद्धि होती है । तो बुद्धि प्रगल्भ बनती है । कुओं-तालाबोंमें नए झरने निकलते हैं ।
३. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन धर्मलोक से धर्मशक्ति की तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आती हैं । पृथ्वी के पृष्ठभाग पर स्थित धर्मबिंदु के माध्यम से यह ग्रहण की जाती हैं, तत्पश्चात् आवश्यकता के अनुसार भूलोक के जीवोंकी दिशा में वह प्रक्षेपित की जाती हैं ।
४. इस दिन भूलोक के वातावरण में रजकणोंका प्रभाव अधिक मात्रा में होता है, इस कारण पृथ्वी के जीवोंका क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंका प्रभाव भी कम रहता है । इस कारण वातावरण अधिक चैतन्यदायी रहता है ।
५. वर्षारंभ के दिन प्रक्षेपित तरंगोंका सप्तलोकोंपर परिणाम होता है । इससे उन लोकोंकी सात्त्विकता में वृद्धि होती है । रज-तम की मात्रा कम होने के कारण पाताल से अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमण की मात्रा भी कम रहती है । वर्षारंभ के दिन सगुण ब्रह्मलोक से प्रजापति, ब्रह्मा एवं सरस्वतीदेवी की सूक्ष्मतम तरंगें प्रक्षेपित होती हैं ।
गुडीपडवा की पूर्वतयारी
ब्रह्मध्वज अर्थात गुडी खडी करनेके लिए आवश्यक सामग्री
हरा गीला १० फुटसे अधिक लंबाईका बांस, तांबेका कलश, पीले रंगका सोनेके तारके किनारवाला अथवा रेशमी वस्त्र, कुछ स्थानोंपर लाल वस्त्रका भी प्रयोग किया जाता है, नीमके कोमल पत्तोंकी मंजरीसहित अर्थात पुष्पों(फूलों) सहित छोटी टहनी, शक्करके पदकोंकी माला एवं (फूलोंका हार) पुष्पमाला, ध्वजा खडी करनेके लिए पीढा ।
ब्रह्मध्वजको सजानेके उपरांत उसके पूजनके लिए आवश्यक सामग्री
नित्य पूजाकी सामग्री, नवीन वर्षका पंचांग, नीम के पत्ते का नैवेद्य !
गुडी सजानेकी पद्धति
१. प्रथम बांसको पानीसे धोकर सूखे वस्त्रसे पोंछ लें ।
२. पीले वस्त्रको इस प्रकार चुन्नट बना लें ।
३. अब उसे बांसकी चोटीपर बांध लें ।
४. उसपर नीमकी टहनी बांध लें ।
५. तदुपरांत उसपर शक्करके पदकोंकी माला बांध लें ।
६. फिर (फूलोंका हार) पुष्पमाला चढाएं ।
७. कलशपर कुमकुमकी पांच रेखाएं बनाएं ।
८. इस कलशको बांसकी चोटीपर उलटा रखें ।
९. सजी हुई गुडीको पीढेपर खडी करें एवं आधारके लिए डोरीसे बांधें।
नीम के पत्तों का मिश्रण कैसे बनाये
यह मिश्रण बनाने के लिए नीमके पुष्प, कोमल पत्ते, चनेकी भीगी दाल अथवा भिगोए गए चने, शहद, जीरा एवं थोडीसी हींग एक साथ मिलाकर प्रसाद बनाएं एवं सभीको बांटें ।जो यजमान है उसे रोगशांति, व्याधियों का विनाश और सुख, ज्ञान, जीवन, लक्ष्मी (धन) प्राप्ति के लिए इसे ग्रहण करने के लिए कहा जाता है ।
(संदर्भ और इसे बनाने की विधि संवत्सर के पंचग में उद्धृत हैं।)
नीमके पत्तोंसे बने मिश्रण की सामग्री में इस दिन जीवोंके लिए आवश्यक ईश्वरीय तत्त्वों को आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है । यह समझने के लिए एक-एक प्रकार के तरंगों की प्रक्रिया पूर्णरूपसे दर्शाई गई है । इस प्रक्रियाको अब हम समझ लेते हैं.
नीमके पत्तोंका मिश्रण का अध्यात्मस्तरीय लाभ
१. मिश्रणमें ईश्वरसे शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है ।
२. उसमें कार्यरत मारक शक्तिका वलय निर्माण होता है ।
३. तेजतत्त्वात्मक शक्तिके कण भी उसमें निर्माण होते हैं ।
४. तेजतत्त्वात्मक तारक-मारक शक्तिके कणोंका वातावरणमें संचार होता है ।
५. मिश्रणमें ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह आकृष्ट होता है ।
६. उसका वलय निर्माण होता है ।
७. इस चैतन्यके वलयद्वारा चैतन्यके प्रवाहोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है ।
८. ईश्वरसे आनंदका प्रवाह मिश्रणमें आकृष्ट होता है ।
९. इस आनंदका मिश्रणमें वलय निर्माण होता है ।
यह मिश्रण ग्रहण करनेसे व्यक्तिके देहमें आनंदके स्पंदनोंका संचार होता है ।
हिन्दुओ, धर्मनिरपेक्ष भारत पर हिन्दू राष्ट्र का ध्वज फहराने के लिए प्रतिबद्ध हो जाओ !

वर्तमान में हिन्दू धर्म के आधारस्तंभ जैसे सनातन धर्म, संस्कृति, धर्मग्रंथ, कालक्रम, संस्कृत, गौमाता, गंगा, मंदिर आदि संकट में हैं । यदि हम वास्तव में भारत पर छाई धर्मग्लानि को हटाना चाहते हैं, तो इसका एकमात्र स्थायी समाधान यही है कि धर्मनिरपेक्ष भारत में सनातन धर्म पर आधारित राज्य व्यवस्था बनाई जाए । इसलिए, जागरूक हो रहे हिन्दुओं में संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता के कारण भारत और सनातन धर्म की हो रही अत्यधिक अधोगति के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना और उन्हें वर्तमान धर्मनिरपेक्ष भारत में ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना के लिए प्रेरित करना आवश्यक है; इसलिए हिन्दुओ, सनातन धर्मशास्त्र के अनुसार साढे तीन मुहूर्तों में से एक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (३० मार्च २०२५) की युगादि तिथि पर, भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु कटिबद्ध हो जाओ !’
ब्रह्मध्वज की पूजा विधि

धर्मशास्त्र में वर्षारंभ के दिन सूर्योदय के तुरंत पश्चात ब्रह्मध्वज की पूजा कर, उसे खडा करने के लिए कहा गया है । पाठकों के लिए शास्त्र के अनुसार किस प्रकार ब्रह्मध्वज की पूजा करनी चाहिए, इसकी यहां मंत्रसहित जानकारी दे रहे हैं । जिस स्थान पर ब्रह्मध्वज खडा करना है, वहां ब्रह्मध्वज खडा कर उसकी पूजा करें ।
गुडी का महत्त्व तथा गुडी के लिए प्रार्थना !

त्योहार तथा उत्सवों का रहस्य ज्ञात होने से उन्हें अधिक आस्था के साथ मनाया जा सकता है । हिन्दू नववर्ष अर्थात गुडीपडवा को गुडी क्यों खडी की जाती है ?, युद्ध और गुडी का संबंध तथा गुडीपडवा के दिन कौन सी प्रार्थना की जाती है, इसकी जानकारी इस लेख में दे रहे है ।
ब्रह्मध्वजा पर रखे जानेवाले तांबे के कलश का महत्त्व !

ब्रह्मध्वजा (गुडी) पर तांबे का कलश उल्टा रखते हैं । कलश उल्टा क्यों रखते हैं, कलश पर क्या परिणाम होता है, कलश पर कुमकुम की रेखाएं खींचनेवाले पर क्या परिणाम होता है ?