आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

दिवाली एवं दीपावली शब्द दीप एवं आवली की संधिसे बना है । आवली अर्थात पंक्ति । इस प्रकार दीपावली शब्दका अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । दिवाली के समय सर्वत्र दीप जलाए जाते हैं, इसीलिए इस त्योहारका नाम दीपावली – दिवाली है । भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारोंमें दिवालीका सामाजिक एवं धार्मिक इन दोनों दृष्टियोंसे अत्यधिक महत्त्व है । इसे दीपोत्सव भी कहते हैं । ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ।’ अर्थात अंधेरेसे ज्योति अर्थात प्रकाशकी ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है । अपने घरमें सदैव लक्ष्मीका वास रहे, ज्ञानका प्रकाश रहे, इसलिए हरकोई बडे आनंदसे दिवाली मनाता है । प्रभु श्रीराम चौदह वर्षका वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, उस समय प्रजाने दीपोत्सव मनाया । तबसे प्रारंभ हुई दिवाली ! इसे उचित पद्धतिसे मनाकर आप सभीका आनंद द्विगुणित हो, यह शुभकामना !

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कैसे मनाएं दि‍वाली का त्योहार ?

वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी दि‍वाली के आरंभ में आती है । यह गोमाताका सवत्स अर्थात् उसके बछडेके साथ पूजन करनेका दिन है ।

शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण त्रयोदशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात ‘धनत्रयोदशी’ । इसीको साधारण बोलचालकी भाषामें ‘धनतेरस’ कहते हैं । धनत्रयोदशी देवताओंके वैद्य धन्वंतरिकी जयंतीका दिन है ।

शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशीके नामसे पहचानी जाती है । इस तिथिपर भगवान श्रीकृष्णने नरकासुरका वध किया ।

श्री यमराज धर्मके श्रेष्ठ ज्ञाता एवं मृत्युके देवता हैं । प्रत्येक व्यक्तिकी मृत्यु अटल है । प्रत्येक व्यक्ति इस सत्यका स्वीकार करता है; परंतु असामयिक अर्थात् अकाल मृत्यु किसीको भी स्वीकृत नहीं होती । असामयिक मृत्युके निवारण हेतु यमतर्पणकी विधि बताई गई है ।

दीपावलीके इस दिन धन -संपत्तिकी अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मीजीका पूजन करनेका विधान है ।

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलिप्रतिपदाके रूपमें मनाई जाती है ।

असामायिक अर्थात् अकाल मृत्यु न आए, इसलिए यमदेवताका पूजन करनेके तीन दिनोंमेंसे कार्तिक शुक्ल द्वितीया एक है ।

आईए पढें दि‍वाली के संदर्भ में विशेष जानकारी

दिवाली

दि‍वाली आनेसे पूर्व ही लोग अपने घर-द्वारकी स्वच्छतापर ध्यान देते हैं । घरका कूडा-करकट साफ करते हैं । घरमें टूटी-फूटी वस्तुओंको ठीक करवाकर घरकी रंगाई करवाते हैं । दि‍वाली के पूर्वायोजनका ही एक महत्त्वपूर्ण अंग है, रंगोली । दीपावली के शुभ पर्वपर विशेष रूपसे रंगोली बनानेकी प्रथा है । दि‍वाली में प्रतिदिन सायंकालमें देवता एवं तुलसीके समक्ष, साथ ही द्वारपर एवं आंगनमें विविध स्थानोंपर तेलके दीप लगाए जाते हैं । दीपावलीका एक आकर्षण है, आकाशदीप अथवा आकाशकंदील ।

दिवाली के दिन पूर्ण घर में दीप जलाएं अथवा पूर्ण घर के सर्व ओर दीप जलाएं ?

दिवाली के दिन संपूर्ण घर में अथवा घर के चारों ओर दीप जलाने की आवश्यकता नहीं होती । प्रवेशद्वार के पास और पीछे का दरवाजा यदि हो, तो दोनों ओर दो दीप जलाएं । साथ ही पूजाघर में एक दीप जलाएं । प्रवेशद्वार के पास, कभी-कभी पिछले द्वार से वास्तु में लोगों के आने-जाने से उनके साथ में घर में आनेवाले कष्टदायक स्पंदनों का दीपों की ज्योति से प्रक्षेपित होनेवाले तेजतत्त्वात्मक तरंगों का उच्चाटन होता है, इसके साथ ही बाह्य वायुमंडल एवं वास्तु की भी शुद्धि होने में सहायता होती है । तेज का प्रसारण सूक्ष्म स्तर पर मर्यादित क्षेत्र में वेग से होने से संपूर्ण घर में और घर के आसपास दीप लगाने की आवश्यकता नहीं है ।

– श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

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