दत्त जयंती क्यों मनाते हैं ?
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्र पर संध्या के समय भगवान दत्त का जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेयका जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रोंमें मनाया जाता है ।
दत्त जयंती का महत्त्व
दत्त जयंती पर दत्त-तत्त्व पृथ्वी पर सदा की तुलना में १००० गुना अधिक कार्यरत होता है । इस दिन भगवान दत्त का जप एवं भक्तिभाव से पूजन करने पर दत्त-तत्त्व का अधिकाधिक लाभ मिलने में सहायता होती है ।
दत्त भगवान का जन्मोत्सव
दत्त जयंती कैसे मनाएं ?
👉🏻 भगवान दत्त का नामजप तथा प्रार्थना अधिकाधिक करें ।
👉🏻 भगवान दत्त की भावपूर्ण पूजा एवं आरती करें ।
👉🏻 संध्या के समय दत्त स्तोत्र का पठन करें ।
👉🏻 दत्त तत्त्व आकृष्ट तथा प्रक्षेपित करनेवाली रांगोलियां बनाएं ।
👉🏻 घर में भगवान दत्त की सात्त्विक नामजप पट्टी लगाएं ।
दत्त भगवान का नामजप तथा आरती
भगवान दत्त के नामजप से निर्मित शक्ति द्वारा हमारे आसपास संरक्षक-कवच निर्माण होता है तथा पूर्वजों के कष्टों से रक्षा होती है । नामजप से अधिक लाभ होने के लिए संबंधित नामजप का उच्चार अध्यात्मशस्त्र के अनुसार करना आवश्यक होता है । इसके लिए हम, ‘श्री गुरुदेव दत्त’ यह नामजप करना सीखेंगे ।
दत्त का नामजप
श्री गुरुदेव दत्त नामजप
दत्त की आरती
त्रिगुणात्मक त्रैमूर्ति दत्त हा जाणा
सात्त्विक अक्षरोंमें चैतन्य होता है । सात्त्विक अक्षर और उनके चारों ओर निर्मित देवतातत्त्वके अनुरूप चौखटसे युक्त संबंधित देवताके नामजपकी पट्टियां सनातन बनाता है । ये नामजप-पट्टियां संबंधित देवताके तत्त्व अधिक आकर्षित एवं प्रक्षेपित करती हैं ।
दत्त का नामजप करने पर हुई कुछ अनुभूतियां
भगवान की उपासना एवं साधना करने पर अनुभूती होती है । भगवान दत्त की उपासना कैसे करें, साधना कैसे करें, यह जानने के लिए हमें संपर्क करें !
दत्त-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करनेवाली कुछ रंगोलियां
भगवान दत्तात्रेय की पूजा से पूर्व तथा दत्त जयंती के दिन घर पर अथवा देवालय में दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनानी चाहिए । इन रंगोलियों से दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित होने के कारण वातावरण दत्तात्रेय-तत्त्व से पूरित होने के कारण भक्तों को उससे लाभ होता है ।
दत्त भगवान के जन्मका इतिहास
अत्रि ऋषिकी पत्नी अनसूयाकी पवित्रताकी परीक्षा लेने हेतु ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेश गए । अनसूयाकी पतिव्रताके कारण ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेशके अंशोंसे तीन छोटे बालकोंका जन्म हुआ । श्रीविष्णुके अंशसे भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ । यह रूपकात्मक पुराणकथा लोकप्रिय है । उसका अध्यात्मशास्त्रानुसार भावार्थ इस प्रकार है ।
अ अर्थात नहीं (अ नकारार्थक अव्यय है) एवं त्रि अर्थात त्रिपुटी; अतः अत्रि अर्थात वह जिसमें जागृति -स्वप्न – सुषुप्ति, सत्त्व – रज – तम एवं ध्याता – ध्येय – ध्यानकी त्रिपुटी नहीं है । ऐसे अत्रिकी बुद्धि असूयारहित अर्थात काम-क्रोधरहित, षट्कर्मरहित शुद्ध होती है । उसीको ‘अनसूया’ कहा गया है । ऐसी बुद्धिको ‘अनसूया’ कहा गया है । इस शुद्ध बुद्धिके संकल्पसे ही भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ ।
भगवान दत्त के विषय में जान लें…
कोल्हापुर में अतिप्राचीन श्री एकमुखी दत्त मंदिर !
श्रीक्षेत्र राक्षसभुवन के पांचालेश्वर मंदिर का इतिहास एवं महिमा
श्रीक्षेत्र राक्षसभुवन का आदि दत्तपीठ : वरद दत्तात्रेय मंदिर !
दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करनेवाली कुछ रंगोलियां
श्रीदत्त के चित्र में विद्यमान त्रिदेवों की कांति भिन्न होने तथा एक जैसी होने में अंतर का आध्यात्मिक कारण !
भगवान दत्तात्रेयके जन्मका इतिहास एवं कुछ नाम
भगवान दत्तात्रेयके गुरु एवं उपगुरु
संबंधित व्हिडीओ (5 Videos)
दत्त जयंती निमित्त सनातन संस्था का कार्य (प्रवचन एवं ग्रंथ प्रदर्शनी)
मध्यप्रदेश में दत्त जयंती पर विभिन्न माध्यम से अध्यात्मप्रसार !
दत्त जयंती के निमित्त मध्यप्रदेश में सनातन संस्था की ओर से प्रदर्शनी और ग्रंथ विक्रयकेंद्र का आयोजन !
दत्त जयंती के अवसर पर बांगर (देवास) तथा इंदौर में सनातन संस्था द्वारा अध्यात्मप्रसार !
सनातन संस्था की ओर से दत्तजयंती के दिन बांगर (देवास) तथा इंदौर में अध्यात्मप्रसार
अकोला में दत्त जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित की गई सनातन संस्था की ग्रंथ प्रदर्शनी को जोधपुर के भगवतभूषण राधाकृष्ण महाराज उपस्थित थे ।
दत्त जयंती के उपलक्ष्य में मुंबई के साथ आसपास के परिसर के पृथक मान्यवरों की सनातन संस्था की ग्रंथ प्रदर्शनी को भेट
दत्त जयंती के अवसर पर उज्जैन के ऋषिनगर दत्त मंदिर में सनातन संस्था द्वारा धर्मप्रसार !
दत्त संबंधित सनातन-निर्मित उत्पाद
दत्त के नामजप के कारण मृत्युलोक में अटके पूर्वजों को गति मिलती है और वे अपने कर्म के अनुसार आगे के लोक में जाते हैं । इससे स्वाभाविक रूप से उनसे व्यक्ति को होनेवाले कष्ट की तीव्रता घट जाती है । दत्तात्रेय के नामजप से निर्मित शक्तिद्वारा नामजप करनेवाले के आसपास संरक्षक-कवच निर्माण होता है । इस प्रकार की महत्त्वपूर्ण जानकारी जानने के लिए…