दत्त जयंती क्यों मनाते हैं ?
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्र पर संध्या के समय भगवान दत्त का जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रोंमें मनाया जाता है|
दत्त जयंती का महत्त्व
दत्त जयंती पर दत्त-तत्त्व पृथ्वी पर सदा की तुलना में १००० गुना अधिक कार्यरत होता है । इस दिन भगवान दत्त का जप एवं भक्तिभाव से पूजन करने पर दत्त-तत्त्व का अधिकाधिक लाभ मिलने में सहायता होती है ।
दत्त भगवान का जन्मोत्सव
दत्त जयंती मनाने संबंधी शास्त्रोक्त विशेष विधि नहीं पाई जाती । इस उत्सव से सात दिन पूर्व गुरुचरित्र का पारायण करने का विधान है । इसी को गुरुचरित्र-सप्ताह कहते हैं । भजन, पूजन एवं विशेषतः कीर्तन इत्यादि भक्ति के प्रकार प्रचलित हैं । महाराष्ट्र में उदुंबर (गूलर), नरसोबा की वाडी, गाणगापुर इत्यादि दत्तक्षेत्रोंमें इस उत्सव का विशेष महत्त्व है । तमिलनाडु में भी दत्त जयंती की प्रथा है । कुछ ब्राह्मण परिवारोंमें इस उत्सव के निमित्त दत्त नवरात्रि का पालन किया जाता है एवं उसका प्रारंभ मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी से होता है ।
दत्त जयंती कैसे मनाएं ?
दत्त भगवान का नामजप तथा आरती
भगवान दत्त के नामजप से निर्मित शक्ति द्वारा हमारे आसपास संरक्षक-कवच निर्माण होता है तथा पूर्वजों के कष्टों से रक्षा होती है । नामजप से अधिक लाभ होने के लिए संबंधित नामजप का उच्चार अध्यात्मशस्त्र के अनुसार करना आवश्यक होता है । इसके लिए हम, ‘श्री गुरुदेव दत्त’ यह नामजप करना सीखेंगे ।
दत्त का नामजप
श्री गुरुदेव दत्त नामजप
दत्त की आरती
त्रिगुणात्मक त्रैमूर्ति दत्त हा जाणा
सात्त्विक अक्षरोंमें चैतन्य होता है । सात्त्विक अक्षर और उनके चारों ओर निर्मित देवतातत्त्वके अनुरूप चौखटसे युक्त संबंधित देवताके नामजपकी पट्टियां सनातन बनाता है । ये नामजप-पट्टियां संबंधित देवताके तत्त्व अधिक आकर्षित एवं प्रक्षेपित करती हैं ।
दत्त का नामजप करने पर हुई कुछ अनुभूतियां
भगवान की उपासना एवं साधना करने पर अनुभूती होती है । भगवान दत्त की उपासना कैसे करें, साधना कैसे करें, यह जानने के लिए हमें संपर्क करें !
दत्त-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करनेवाली कुछ रंगोलियां
भगवान दत्तात्रेय की पूजा से पूर्व तथा दत्त जयंती के दिन घर पर अथवा देवालय में दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनानी चाहिए । इन रंगोलियों से दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित होने के कारण वातावरण दत्तात्रेय-तत्त्व से पूरित होने के कारण भक्तों को उससे लाभ होता है ।
दत्त भगवान के जन्म का इतिहास
अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया की पवित्रता की परीक्षा लेने हेतु ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेश गए । अनसूया के पतिव्रता होने के कारण ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेश के अंशोंसे तीन छोटे बालकों का जन्म हुआ । श्रीविष्णु के अंश से भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ । यह रूपकात्मक पुराण कथा लोकप्रिय है । उसका अध्यात्मशास्त्रानुसार भावार्थ इस प्रकार है ।
अ अर्थात नहीं (अ नकारार्थक अव्यय है) एवं त्रि अर्थात त्रिपुटी; अतः अत्रि अर्थात वह जिसमें जागृति -स्वप्न – सुषुप्ति, सत्त्व – रज – तम एवं ध्याता – ध्येय – ध्यानकी त्रिपुटी नहीं है । ऐसे अत्रि की बुद्धि असूया रहित अर्थात काम-क्रोध रहित, षट्कर्म रहित शुद्ध होती है । ऐसी बुद्धि को ‘अनसूया’ कहा गया है । इस शुद्ध बुद्धि के संकल्प से ही भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ ।
भगवान दत्त के विषय में जान लें…
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भगवान दत्तात्रेयके जन्मका इतिहास एवं कुछ नाम
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