सनातन संस्था
अखिल मानवजाति को मार्गदर्शक
आनंदमय जीवन का मार्ग
सनातन संस्था
अखिल मानवजाति को मार्गदर्शक
आनंदमय जीवन का मार्ग !
सनातन संस्था में आपका स्वागत है । सनातन संस्था पिछले 25 वर्षाें से सनातन धर्म को समर्पित है तथा अध्यात्म संबंधी मार्गदर्शन का एक दीपस्तंभ बन गई है । जो लोग सनातन धर्म को गहनता से समझना चाहते है और आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते हैं, उन लोगों को नियमित आध्यात्मिक मार्गदर्शन, संसाधन और सहायक वातावरण प्रदान करने के लिए हम कटिबद्ध हैं । पूर्वकाल में जानेमाने डॉक्टर रह चुके और अब एक महान आध्यात्मिक गुरु के रूप में विख्यात सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने 22 मार्च 1999 को अपने सद्गुरु संत भक्तराज महाराजजी की कृपा से संस्था की स्थापना की । आप सभी का स्नेह, समर्थन और संतों, शंकराचार्याें और भगवान के आशीर्वाद के कारण सनातन रूपी यह बीज आज पुष्पित-पल्लवित हो गया है ।
व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त आपको अपना अनूठा मार्ग खोजने में सनातन संस्था आपकी सहायता करती है । आइए, हमारे आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्र में सेवारत होने के 25 वर्ष पूर्ण होने के रजत जयंती महोत्सव में हमसे जुड जाईए; जिससे हम हमारा आध्यात्मिक कार्य अगले २५ वर्ष ही नहीं किन्तु उससे अधिक लंबे समय तक जारी रख आपकी सेवा कर पाएं ।
संस्थापक का संदेश
सनातन संस्था का प्राथमिक ध्येय ऐसे निष्ठावान भक्त तैयार करना है, कि जिनकी भक्ति के कारण भगवान को पृथ्वी पर अवतार लेना ही होगा और धर्म की पुनर्स्थापना करनी पडेगी : भगवान श्रीकृष्ण ने साधुजनों की रक्षा और दुष्टों का नाश करने के लिए बार-बार अवतार लेने का वचन दिया है । लोग आश्चर्य करते हैं कि राष्ट्र और धर्म इतने संकट में होने पर भी उन्होंने अवतार क्यों नहीं लिया । इसका उत्तर यह है कि हम भक्त प्रह्लाद जैसी भक्ति नहीं करते कि भगवान हमारी रक्षा के लिए अवतार लेंगे । हमें अपनी साधना और भक्ति को इतना बढाना चाहिए कि भगवान अवतार लेने के लिए बाध्य हो जाएं । इसलिए हमेशा कहा जाता है कि ‘भक्ति में शक्ति है’।
– (सच्चिदानंद परब्रह्म) डॉ. जयंत बाळाजी आठवले
प्रेरक अनुभव
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‘
सनातन संस्था की विशिष्टता
गुरुकृपायोग
आनंद प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग
स्वभावदोष निर्मूलन और सद्गुणों का विकास
अपेक्षा रहित प्रेम
अहंकार घटाना
भगवान का नाम जपना
भक्ति बढाना
सत्संग
सेवा
त्याग
स्वभावदोष निर्मूलन और सद्गुणों का विकास
अहंकार घटाना
भगवान का नाम जपना
भक्ति बढाना
सत्संग
सेवा
त्याग
अपेक्षा रहित प्रेम
सन् 1993 में संत भक्तराज महाराज जी ने डॉ. आठवले जी को ज्ञान, भक्ति और वैराग्य प्रदान किया । एक प्रकार से उन्होंने डॉ. आठवलेजी को ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग का अधिकार सौंप दिया । सन् 1994 में डॉ. आठवलेजी ने गुरुकृपायोग (गुरु की कृपा का मार्ग) का प्रतिपादन किया, जो इन सभी मार्गों का संगम है । गुरुकृपायोग ज्ञान, भक्ति और कर्म के बीच संतुलन बनाकर आपकी आध्यात्मिक प्रगति सुनिश्चित करता है । यह प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित करनेवाला, एक अद्वितीय संयोजन है, जिसमें अष्टांग साधना के पहलू हैं । संस्था की स्थापना के 25 वर्ष की छोटी सी अवधि में उच्च आध्यात्मिक स्थिति तक पहुंचनेवाले व्यक्तियों की संख्या से यह स्पष्ट होता है कि इस साधनामार्ग से सनातन के साधकों की साधना हो रही हैं, वे अनुभूतियां पा रहे हैं और प्रगति भी कर रहे हैं ।
सनातन के रत्न
सामान्य व्यक्तियों को साधक, संत, सद्गुरु एवं परात्पर गुरु पद तक लेकर जानेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
(90% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक)
(80% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक)
(70% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक)
(60% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक)
(90% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक)
(80% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक)
(70% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक)
(60% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक)
कलाओं के माध्यम से साधना
अनेक साधक-कलाकार, कला के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना के रूप में चित्रकारी, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य, वास्तुकला आदि कर रहे हैं । अपने-अपने क्षेत्रों में विशेषज्ञ कलाकार-साधक, अपनी कला में सात्त्विकता बढाने के लिए सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले के मार्गदर्शन में शोध कार्य भी कर रहे हैं ।
संगीत
मूर्तिकला
चित्रकला
सात्त्विक मेहंदी
सात्त्विक रंगोली
नृत्य
संगीत
मूर्तिकला
चित्रकला
सात्त्विक मेहंदी
सात्त्विक रंगोली
नृत्य
सनातन की ग्रंथ संपदा
सनातन की ग्रंथ संपदा लाखों जिज्ञासुओं के लिए मार्गदर्शक है । जो लोग अध्यात्म सीखना, जीना और अनुभव करना चाहते हैं, उन्हें ये ग्रंथ प्रायोगिक मार्गदर्शन करते है । विविध विषयों पर आधारित सनातन के ग्रंथ आपकी जिज्ञासा को शांत करने में सहायता करेंगे ।
सूक्ष्म जगत के अग्रदूत
हमारे भौतिक जगत से कहीं अधिक बडा और एक शक्तिशाली जगत है, जो पांचों इंद्रियों, मन और बुद्धि की समझ से परा है । इसे सूक्ष्म जगत कहते है । अदृश्य होते हुए भी वह हमारे जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है । वर्ष 1982 में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का सूक्ष्म जगत की ओर ध्यान आकर्षित हुआ । तबसे वे सूक्ष्म जगत के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने लगे और उसकी शिक्षा साधकों को देने लगे, जैसे की अपनी सक्रिय छठी इंद्रीय का उपयोग कर सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करना, सूक्ष्म विश्लेषण करना, सूक्ष्म चित्र बनाना । सनातन आश्रम में सूक्ष्म जगत के दृश्य प्रभावों का एक संग्रहालय है । सनातन के ग्रंथों में इस सूक्ष्म आयाम से प्राप्त अमूल्य ज्ञान अंतर्भूत है ।
आध्यात्मिक शोधकार्य
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले जी ने अनुभव किया कि वर्तमान पीढियां कथा-कहानियों की तुलना में अनुभवजन्य आंकडों पर अधिक भरोसा करती हैं । इसलिए उन्होंने विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा आध्यात्म शास्त्र और घटनाओं का अध्ययन करना शुरू किया तथा ऊन निष्कर्षों को अपने सूक्ष्म-परिक्षण से जोडा । इन उपकरणों से देवताओं की तरंगें, भौतिक जगत पर सूक्ष्म जगत का सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव, तथा शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक कष्ट पर आध्यात्मिक उपचारों के परिणामों के बारे में ढेर सारी जानकारी इकट्ठा हुई है । इस शोधकार्य के उपयोग से उन्होंने कला, यज्ञ-याग, ध्यान, आयुर्वेद आदि क्षेत्रों के नए पहलू ढूंढ निकाले ।
आध्यात्मिक संग्रहालय
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में एक आध्यात्मिक संग्रहालय स्थापित किया जा रहा है । आध्यात्मिक दृष्टि से मूल्यवान अनूठी वस्तुएं; पंचमहाभूतों के प्रभावों को दर्शानेवाली मिट्टी, पानी जैसी सहस्रों वस्तुएं; भारत के विभिन्न तीर्थक्षेत्र, मंदिर, संतों के मठ, संतों के समाधि स्थल, ऐतिहासिक स्थान आदि के कई छायाचित्र और 16,000 से अधिक वीडियो इस आध्यात्मिक संग्रहालय में रखे जाएंगे । यह संग्रहालय आध्यात्मिक जगत के इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय खोलेगा, जहां पहली बार ऐसे आध्यात्मिक दृष्टि से मूल्यवान वस्तुओं को इकट्ठा कर आनेवाली पीढियों को अध्ययन करने हेतु संजोया गया है ।
सभी के लिए स्व-उपचार
मनुष्य के शारीरिक और मानसिक कष्टों के पीछे अधिकांशतः आध्यात्मिक कारण होता है । सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक कारण है – अनिष्ट शक्ति के कारण होनेवाला कष्ट । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने आध्यात्मिक उपचार की कई नई विधियों का अध्ययन, निर्माण और अभ्यास किया है । ये स्व-उपचार सरल किन्तु अत्यंत प्रभावकारी हैं । ये करने के लिए आपको केवल समय देने की आवश्यकता है । मानवजाति को इनका लाभ हो इसलिए वे सभी के लिए सनातन के ग्रंथों, वेबसाइट एवं अन्य माध्यमों द्वारा निशुलक उपलब्ध कराए गए है ।
समग्र व्यक्तित्व विकास
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने देखा कि लोगों की अप्रसन्नता और असंतोष के पीछे का एक प्रमुख कारण है व्यक्तित्व के दोष और कमियां । एक अध्ययनशील नैदानिक सम्मोहन चिकित्सक होने के कारण, वे मनुष्य को व्यक्तिगत विकास और आध्यात्मिक विकास हेतु मार्गदर्शन करने के लिए अग्रसर थे । इसलिए उन्होंने स्वभाव दोष निर्मूलन प्रक्रिया विकसित की, जो एक अग्रणी कार्यक्रम है, जिसने हजारों लोगों के जीवन का कायाकल्प किया है । स्वभाव दोष निर्मूलन प्रक्रिया एक दैनिक अभ्यास है, जो समग्र व्यक्तित्व विकास में आपकी सहायता करती है ।
दैवी बालकों की खोज
विगत कुछ वर्षों से, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने कई उच्च आध्यात्मिक क्षमता से युक्त असाधारण बच्चों को देखा । ये बच्चे अपनी बुद्धिमत्ता, सूक्ष्म आयाम को समझने की क्षमता, भगवान पर अतीव श्रद्धा तथा अन्य गुणों के कारण सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं । गुरुदेवजी के आध्यात्मिक शोध से ये पाया गया कि वे ब्रह्मांड के सूक्ष्म उच्च लोकों से आए हैं । ऐसे बच्चों का महत्त्व एवं वर्तमान में उनके जन्म का उद्देश्य समझने के लिए ऐसे एक हजार से अधिक बच्चों के जीवन पर आध्यात्मिक शोधकार्य किया जा रहा है ।
सनातन आश्रम
सनातन संस्था का प्रमुख आश्रम एक आध्यात्मिक पुण्यभूमि है, जो आपको निर्बाध आध्यात्मिक खोज कर आगे बढने के लिए अनुकूलता प्रदान करता है । आश्रम में आध्यात्म पर निरंतर प्रगतिशील मार्गदर्शन किया जाता है, जो साधक को सीखने, अभ्यास करने, आध्यात्मिक रूप से जीने और स्वयं के भीतर की दिव्यता को अनुभव करने के लिए सक्षम बनाता है । आश्रम एक आधुनिक गुरुकुल है, जो उन लोगों की आवश्यकताओं को पूर्ण करता है, जिनका अंतिम ध्येय आत्मज्ञान (मोक्ष या ईश्वर-साक्षात्कार) प्राप्त करना है । मोक्ष प्राप्ति के समान लक्ष्य के कारण साधक जाति, संप्रदाय, लिंग और अन्य मतभेदों से ऊपर उठने से आश्रम में वास्तव में आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित होता है ।