नागरिकों की आत्महत्या के लिए स्वतंत्रता से अभी तक की सरकार उत्तरदायी !

‘पश्चिमी देशों में रोटी, कपडा और मकान होते हुए भी मानसिक अस्वस्थता के कारण वहां के नागरिक आत्महत्या करते हैं । इसके विपरीत भारत की जनता की रोटी, कपड़ा तथा मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताएं भी स्वतंत्रता से लेकर अभी तक की सरकारों ने पूर्ण नहीं की, इसलिए यहां के नागरिक आत्महत्या करते हैं । इसे … Read more

धर्मविरोधकों के विचारों का खंडन करना आवश्यक !

‘धर्म विरोधकों के विचारों का खंडन करना समष्टि साधना ही है । इससे ‘धर्म विरोधकों के विचार अनुचित हैं’, यह कुछ लोगों को समझ में आता है एवं वे उचित मार्ग पर बढते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

वास्तव में प्रदूषण का निवारण करना है तो पहले मन का प्रदूषण दूर करें !

‘प्रदूषण के विषय में सर्वत्र दिखावा कर जो उपाय किए जाते हैं, वे रोग के मूल पर उपाय करने की अपेक्षा, ऊपरी उपाय करने के समान हैं । प्रदूषण के लिए कारणभूत रज-तम प्रधान मन एवं बुद्धि को साधना से सात्त्विक किए बिना, अर्थात मूलगामी उपाय किए बिना, किए गए ऊपरी उपाय हास्यास्पद हैं । … Read more

बच्चे असंस्कारी होने का परिणाम !

‘मातृदेवो भव । पितृदेवो भव ।’ (तैत्तिरीयोपनिषद्, शीक्षा, अनुवाक ११, वाक्य २ ) अर्थात ‘माता और पिता को देवता मानें’, ऐसा बचपन में बच्चों पर संस्कार न करनेवाले माता-पिता के संदर्भ में बडे होने पर बच्चों की वृत्ति ऐसी होती है कि ‘मतलब निकल गया, तो पहचानते नहीं ।’ इस कारण वे माता पिता को … Read more

धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र अपरिहार्य !

‘नैतिकता एवं आचारधर्म बचपन से न सिखानेवाले अभिभावकों एवं शासन के कारण भारत में सर्वत्र अनाचार, राक्षसी वृत्ति प्रबल हो गई है । इस स्थिति के कारण बलात्कार, भ्रष्टाचार, विविध अपराध, देशद्रोह एवं धर्मद्रोह की संख्या असीमित होकर देश रसातल में पहुंच गया है । इसका एक ही उपाय है और वह है धर्माधिष्ठित हिन्दू … Read more

तथाकथित सर्वधर्म समभाव !

‘बाल मंदिर में पढनेवाला बच्चा और स्नातकोत्तर शिक्षा लेनेवाला युवक, इन दोनों की शिक्षा समान है ; ऐसा हम नहीं कह सकते। ऐसी ही स्थिति अन्य तथाकथित धर्म एवं हिन्दू धर्म के बीच भी है, तब भी ‘सर्वधर्म समभाव’ की घोषणा करना, इससे बडा अज्ञान कोई नहीं । यह बात विभिन्न पन्थों का अध्ययन करने … Read more

विविध विषयों के विशेषज्ञ एवं संत

‘व्यावहारिक जीवन में आंखों के विशेषज्ञ को आंखों के रोग होते हैं । हृदय- विशेषज्ञ को हृदय का विकार होता है। मनोचिकित्सक को मानसिक विकार होते पाए जाते हैं; परंतु अध्यात्म में संतों को अन्यों के आध्यात्मिक कष्ट दूर करने पर आध्यात्मिक कष्ट नहीं होते । कुछ संतों को शारीरिक कष्ट हो रहे हों, तब … Read more

धर्म में बताई गई आश्रमप्रणाली का अर्थ !

‘हिन्दू धर्म में ‘वर्णाश्रम’, अर्थात वर्ण तथा आश्रम यह जीवनपद्धति बताई गई है । उनमें से वर्ण अर्थात जाति नहीं, अपितु साधना का मार्ग । आश्रम चार हैं – १. ब्रह्मचर्याश्रम, २. गृहस्थाश्रम, ३. वाणप्रस्थाश्रम तथा ४. सन्यासाश्रम । जिनके अर्थ क्रमशः इस प्रकार हैं – १. ब्रह्मचर्यपालन, २. गृहस्थजीवन का पालन, ३. गृहस्थाश्रम का … Read more

अत्यंत दयनीय हो चुकी हिन्दुओं की स्थिति !

‘धर्मशिक्षा के अभाववश तथा बुद्धिप्रमाणवादियों द्वारा निर्मित संदेह के कारण हिन्दुओं को हिन्दू धर्म की अद्वितीयता ज्ञात नहीं । इस कारण उनमें धर्माभिमान नहीं । परिणामस्वरूप उनकी स्थिति संसार के अन्य पंथियों की अपेक्षा आज अधिक दयनीय हो चुकी है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

बुद्धिप्रमाणवादी और अंधश्रद्धा

‘जिस प्रकार जन्म से दृष्टिहीन कोई व्यक्ति कहे, ‘देखना, दृष्टि, ऐसा कुछ होता है’, यह मानना अंधश्रद्धा है’; उसी प्रकार बुद्धिप्रमाणवादी कहते हैं, ‘सूक्ष्म दृष्टि जैसा कुछ है’, यह मानना अंधश्रद्धा है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले