आदिमानव बनने की ओर बढते आधुनिकतावादी !

‘जैसे-जैसे मानव की प्रगति होती है, वैसे-वैसे उसमें नम्रता ,सब कुछ पूछकर करने की वृत्ति इत्यादि गुण निर्माण होते हैं । आधुनिकतावादियों में पूछने की और सीखने की वृत्ति नहीं होती । इसके विपरीत ‘मुझे सब पता है । जो मुझे पता है, वही उचित है’, ऐसा अहंकार होता है । इसलिए वे आदिमानव बनने … Read more

मानव की प्रगति किसे कहते हैं यह भी विज्ञान को ज्ञात नहीं !

‘पश्चिम का विज्ञान कहता है, ‘आदिमानव से अभी तक मानव ने प्रगति की है ।’ वास्तव में मानव ने प्रगति नहीं की, अपितु वह उच्चतम अधोगति की ओर जा रहा है । सत्ययुग का मानव ईश्वर से एकरूप था । त्रेता और द्वापर युग में उसकी थोडी अधोगति होती गई । अब कलियुग के आरंभ … Read more

काल के अनुसार ‘उत्तम कर्म’ ही ‘उत्तम ध्यान’

आज के समय में ‘काल के अनुसार ‘उत्तम कर्म’ करना ‘उत्तम ध्यान’ है । केवल ध्यान से प्रगति नहीं होती; क्योंकि हममें ध्यान लगने योग्य सात्त्विकता नहीं होती । उसे उत्तम कर्म कर प्राप्त करना पडता है । उत्तम आचरण, उत्तम विचार तथा भगवान के उत्तम सान्निध्य के कारण देह सात्त्विक होने लगती है । … Read more

स्वयं को अज्ञानी माननेवाले ज्ञानवंत को ज्ञान कैसे प्राप्त होता हैं ?

स्वयं को अज्ञानी माननेवाले ज्ञानवंत को ही भगवान की कृपा से ज्ञान का कृपा प्रसाद मिलता है ! – श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२८.४.२०२०)

कहां विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ और कहां संत !

‘अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ डॉक्टर, अधिवक्ता, लेखापाल (अकाउंटेंट) इत्यादि में से कोई भी अपने क्षेत्र के प्रश्नों के उत्तर तत्काल नहीं बता सकते । ‘प्रश्न का अध्ययन कर,जांच कर, आगे उत्तर बताता हूं’, ऐसा वे कहते हैं । इसके विपरीत संत एक ही क्षण में किसी भी प्रश्न का कार्यकारण भाव तथा उपाय बताते हैं … Read more

जितना हास्यास्पद एक अशिक्षित का यह कहना है कि ‘सूक्ष्म जंतु नहीं होते’; उतना…..

‘जितना हास्यास्पद एक अशिक्षित का यह कहना है कि ‘सूक्ष्म जंतु नहीं होते’; उतना ही हास्यास्पद बुद्धिप्रमाणवादियों का यह कहना है कि ‘ईश्वर नहीं होता !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

साधना के संदर्भ में भारत का महत्त्व समझ लें !

‘ईश्वरप्राप्ति हेतु साधना करनी हो, तो भारत को छोडकर संसार के किसी भी देश में मत रहो; क्योंकि भारतीयों की स्थिति भले ही बुरी हो, तब भी भारत जैसा सात्त्विक देश संसार में कहीं नहीं है । अन्य सभी देशों में रज-तम की मात्रा अत्यधिक है; तथापि ५० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त व्यक्ति … Read more

राष्ट्र की दयनीय स्थिति होने का कारण!

‘स्वतंत्रता से पूर्व के काल में राष्ट्र एवं धर्म का विचार करनेवाले जनप्रतिनिधि हुआ करते थे । स्वतंत्रता के उपरांत अपने उत्तरदायित्व का नहीं, केवल स्वार्थ का विचार करने वाले जनप्रतिनिधियों की संख्या बढती गई । इस कारण राष्ट्र की स्थिति दयनीय हो गई है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

हिन्दुओं, हिन्दुओं की वर्तमान स्थिति का विचार मानसिक और बौद्धिक स्तर पर न कर, आध्यात्मिक स्तर पर करें !

‘मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर विचार करनेवालों को चिंता होती है कि आगे हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे । इसके विपरीत आध्यात्मिक स्तर पर विचार करनेवालों को समझ में आता है कि कालचक्र के अनुसार आगे हिन्दू धर्म रहेगा !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थकों, मानव को मानव देहधारी प्राणी मत बनाओ !

‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर उसके समर्थक आसमान सिर पर उठा लेते हैं । वे भूल जाते हैं कि प्राणी और मानव इनमें महत्त्वपूर्ण भेद यही है कि प्राणी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुसार अर्थात स्वेच्छा से आचरण करते हैं; इसके विपरीत मानव व्यक्तिगत स्वतंत्रता को भूलकर, क्रमशः परिवार, समाज राष्ट्र एवं धर्म के हित का … Read more