बुद्धिवादी, सर्वधर्मसमभावी, साम्यवादी ही देश और धर्म के खरे शत्रु हैं !

‘बुद्धिवादियों के कारण हिन्दुओं की ईश्वर के प्रति श्रद्धा नष्ट हो गई । सर्वधर्मसमभाववादियों के हिन्दू धर्म की अद्वितीयता हिन्दू समझ नहीं पाए एवं साम्यवादियों के कारण हिन्दुओं ने ईश्वर को मानना छोड़ दिया । अतः ईश्वर की कृपा न होने से हिन्दुओं और भारत की स्थिति दयनीय हो गई है । हिन्दू राष्ट्र की … Read more

अहंभाव रखनेवाले लेखापरीक्षक और अहंभावशून्य ईश्वर

‘लेखापरीक्षक कुछ व्यक्तियों का लेखा परीक्षण करते हैं तथा उसका उन्हें अहंभाव होता है । इसके विपरीत ईश्वर अनंत कोटि ब्रह्मांड के प्रत्येक जीव के प्रत्येक क्षण का लेखा जोखा (अकाउंट) रखते हैं, तब भी वे अहंशून्य हैं !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

अहंभाव रखनेवाले आधुनिक चिकित्सक (डॉक्टर) और अहंभावशून्य ईश्वर !

‘आधुनिक चिकित्सक (डॉक्टर) रोगियों को छोटे-बडे रोगों से बचाते हैं एवं उसका उन्हें अहंभाव होता है । इसके विपरीत ईश्वर साधकों को भवरोग से, अर्थात जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करते हैं, तब भी वे अहंशून्य होते हैं !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

वास्तविक ‘दूरदर्शिता’ !

‘स्वयं के सुख के लिए दूसरों को दुःख देकर धन का संग्रह करना पाप है; परंतु भविष्यकाल को ध्यान में रखकर उसके लिए अपनी तैयारी उचित प्रकार से करने को ‘दूरदर्शिता’ कहते हैं ‌।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

ईश्वर की खोज करना आवश्यक !

‘वैज्ञानिक ईश्वर की खोज करने के स्थान पर ईश्वर द्वारा बनाए गए विश्व की खोज अनेक पीढ़ियों तक करते रहते हैं । इसके विपरीत साधक ईश्वर की खोज करते हैं । ईश्वर मिलने पर उन्हें विश्व की पहेली सुलझती है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

हिन्दुओ, ध्यान रखें साधना कर ईश्वर का आशीर्वाद मिलनेपर ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी !

‘ईश्वर के आशीर्वाद के बिना संसार में कुछ भी नहीं हो सकता । इसलिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ईश्वर के आशीर्वाद के बिना होना संभव नहीं है । अतः हिन्दुओ, साधना कर ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करें तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करें !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

भारत का प्रारब्ध परिवर्तित करने के लिए आध्यात्मिक स्तर के उपचार ही आवश्यक !

‘किसी व्यक्ति का प्रारब्ध परिवर्तित करना लगभग असंभव होता है । परिवर्तित करना ही हो, तो तीव्र साधना करनी पड़ती है । ऐसा होते हुए शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक स्तर पर प्रयत्न करने पर भारत का प्रारब्ध परिवर्तित करना क्या संभव है ? उसके लिए आध्यात्मिक स्तर के ही उपचार, अर्थात साधना का बल चाहिए … Read more

संतों की श्रेष्ठता !

‘अपने पुत्र का आगे कैसे होगा ?’, यह चिंता उसके माता-पिता को होती है । इसके विपरीत ʻराष्ट्र के सभी लोगों को संत अपनी संतान मानते हैं । इस व्यापक भाव के कारण संत सदैव आनंदी रहते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

परिपूर्ण हिन्दू धर्म !

‘हिन्दुओं को शोध करने की आवश्यकता नहीं होती; क्योंकि सुख नहीं, अपितु आनंदप्राप्ति के लिये अर्थात मोक्षप्राप्ति तक सबकुछ हिन्दू धर्म में बताया हुआ है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

अद्वितीय हिन्दू धर्म !

‘हिन्दू धर्म का जितना अध्ययन करना प्रारंभ किया, उतनी ही परिपूर्ण हिन्दू धर्म में जन्म देने के कारण ईश्वर के प्रति कृतज्ञता में वृद्धि होती गई ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले