‘इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति तथा राष्ट्र एवं धर्मकी स्थिति’ ।

‘इच्छाशक्तिके कारण ‘कुछ करना चाहिए’ ऐसी इच्छा उत्पन्न होती है । क्रियाशक्तिके कारण प्रत्यक्ष कृति करनेकी प्रेरणा मिलती है । कुछ करनेकी इच्छा उत्पन्न होने और प्रत्यक्ष कृति करनेके लिए ज्ञानशक्तिकी सहायता होनेपर ही योग्य इच्छा उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरूप योग्य कृति होती है । अन्य पंथियोंको उनकी साधनाके कारण ज्ञानशक्ति सहायता करती है … Read more

धर्म ही मोक्ष प्रदान कर सकता है..

‘व्यक्ति से परिवार, परिवार से गांव, गांव से राष्ट्र और राष्ट्र से धर्म श्रेष्ठ है । क्योंकि, धर्म ही मोक्ष प्रदान करवा सकता है, अन्य विषय तो माया में उलझाते हैं ! इसलिए, साधना करें !’

वर्तमान की राजनीति..

‘कदाचित कोई एक ही सात्त्विक, पापभीरु व्यक्ति वर्तमान की राजनीति में रह सकता है । शेष सभी राजनीति से चार हाथ दूर रहते हैं । क्योंकि वर्तमान की राजनीति बहुत गंदी हुई है !’

यदि हिन्दुओं को धर्म सिखाया, तभी अन्यधर्मियों समान उनके मत एकगुट होंगे !

‘मुसलमान एवं ईसाई उनका हित देखनेवालों को मतप्रदान करते हैं, जब कि बुद्धिप्रामाण्यवाद, समाजवाद, साम्यवाद इत्यादि विविध मानसिकता के अनुसार मत देते हैं । इसलिए उनके मत विभाजित होते हैं तथा भारत में उनका कोई मूल्य नहीं रह जाता ! हिन्दुओं को धर्म सिखाया तभी उनके मत अन्य धर्मियों समान एकगुट होंगे ।-’

राजनीतिक पक्ष एवं विविध संगठनों के समान सनातन संस्था एवं…

राजनीतिक पक्ष एवं विविध संगठनों के समान सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति में पद न होते हुए पद का त्याग करनेवाले तथा दास्यभाव में रहनेवाले सेवा करते हैं ।

राजनीतिज्ञ का अर्थ

‘राजनीतिज्ञ का अर्थ है, राष्ट्र एवं धर्म के विषय में कोई कर्तव्य न रहनेवाला एवं केवल स्वार्थ देखनेवाला व्यक्ति !’

भारत का लोकतंत्र अर्थात हिन्दुओं की मूर्खता की चरम सीमा !

‘जिस समय आधुनिक वैद्य (डॉक्टर),अभियंता, अधिवक्ता, लेखा परीक्षक इत्यादि की बैठक होती है, उस समय उन क्षेत्रों के विशारदों की बैठक होती है; परंतु भारत की लोकसभा में राष्ट्र एवं धर्म, इन विषयों के विशारद नहीं होते । इसके विपरीत, इन विषयों से जिनका कोई भी देना-लेना न हो, उनके लिए यह बैठक होती है; … Read more

‘स्वार्थी राजनीतिज्ञ राजनीति करते हैं, जबकि निःस्वार्थी सनातन संस्था के…

‘स्वार्थी राजनीतिज्ञ राजनीति करते हैं, जबकि निःस्वार्थी सनातन संस्था के साधक एवं हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता निःस्वार्थ भाव से धर्मकार्य करते हैं !’

बुद्धिप्रामाण्यवादियों के जीवनभर के कार्य की फलनिष्पत्ति शून्य रहने का कारण

यदि किसी विषय का अभ्यास उस विषय की पद्धति के अनुसार न कर कोई उसके संदर्भ में निश्चित रूपसे कहता है कि मेरा ही कहना उचित है, तो उसपर कोई गम्भीरता से ध्यान नहीं देता । यही स्थिति है बुद्धिप्रामाण्यवादियों की । अध्यात्म का अभ्यास अर्थात बिना साधना किए वे इस संदर्भ में भाष्य करते … Read more

हास्यास्पद लोकतन्त्र

राज्यकर्ता पक्ष निर्वाचनमें पराजित हो जाता है अर्थात निर्वाचनसे पूर्व १-२ वर्षतक जनमत उसके विरोधमें होते हुए भी वह पक्ष राज्य करता रहता है ।