हिन्दू धर्म का ध्येय

‘कहां पृथ्वी पर शासन करने का ध्येय रखनेवाले अन्य धर्म, तो कहाँ ‘प्रत्येक को ईश्वरप्राप्ति हो’, यह ध्येय रखने वाला हिन्दू धर्म !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

राष्ट्रप्रेमी हिन्दुओ, ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने के कार्य में हम ऐसा भाव रखें ..

राष्ट्रप्रेमी हिन्दुओ, ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने के कार्य में हम श्रीराम की वानरसेना के वानरों समान सहभागी हैं’, ऐसा भाव रखें ! यदि ऐसा भाव रखा, तो रामराज्य अर्थात ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होते ही अपना भीr उद्धार होगा, अन्यथा ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होने पर भी अहंभाव जागृत रहने से अपना उद्धार नहीं होगा … Read more

योगासन से ॐ एवं सूर्यनमस्कार हटानेवाले एवं त्रुटिपूर्ण शिक्षा देनेवाले धर्मद्रोहियो, यह ध्यान में लें !

क्या ‘योगासन से ॐ एवं सूर्यनमस्कार हटानेवाले स्वयं को ऋषिमुनियों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान समझते हैं ? योगासन केवल शारीरिक नहीं, अपितु आध्यात्मिक व्यायाम हैं । मानसिक स्तर पर कार्य करनेवाले धर्मद्रोहियों का कार्य एवं नाम कुछ वर्षों के पश्चात ही किसी के ध्यान में नहीं रहता । इसके विपरीत ऋषियों के बताए हुए सूत्र … Read more

हिन्दुओं की अत्यंत दयनीय स्थिति

भारत के पास हिन्दू धर्म एवं धर्मपरंपरा के अतिरिक्त अभिमान प्रतीत होने समान क्या है ? बुद्धिप्रामाण्यवादी, साम्यवादी तथा जात्यंध आदि लोगों द्वारा बुद्धिभ्रम करने से हिन्दू धर्म दुर्लक्षित किया गया । इसीलिए हिन्दुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है ।’

‘मंदिरों के सरकारीकरण से उनकी दयनीय अवस्था !

१. पुजारी तथा व्यवस्थापक सब सरकारी नौकर होते हैं; इसलिए, उनमें सरकारी नौकरों के सब होते हैं । २. अनेक राजनेता शासन से संबंधित व्यक्तियों को घूस देकर अथवा अनुचित कारणों से न्यासी बन बैठे हैं । अतः वे श्रध्दालुओं की सुविधा एवं मंदिर की पवित्रता की ओर ध्यान नहीं देते । ३. मंदिरों में … Read more

ऐसे सन्त हिन्दुओंके समक्ष आचारधर्मका आदर्श कैंसे रखेंगे ?

अनेक बार ऐसा दिखाई देता है कि सन्त किसी कार्यक्रमका उद्घाटन फीता काटकर करते हैं । विविध सम्प्रदायोंके नियतकालिकोंमें भी वैसा दर्शानेवाले छायाचित्र होते हैं । उन्हें इस बातका भी भान नहीं रहता कि पाश्‍चात्त्योंके समान फीता काटकर उद्घाटन करनेसे दर्शनार्थी हिन्दुओंपर हम अयोग्य संस्कार कर रहे हैं !

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बातें करनेवाले ध्यान रखें !

१. व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र श्रेष्ठ होता है । इसलिए, राष्ट्र जीवित रहने पर ही समाज जीवित रहता है और समाज जीवित रहने पर व्यक्ति जीवित रहता है । २. व्यक्तिगत स्वतंत्रताका अर्थ स्वैराचार नहीं अथवा मैं जो चाहूं करूं अथवा वैसा ही वर्तन करूं, यह भी नहीं ! ३. व्यक्ति, समाज, … Read more

जगतके आदर्श धर्मयुद्धका एकमेव उदाहरण है, महाभारत युद्ध !

महाभारत युद्धके समय कौरव एवं पांडव सूर्योदय से सूर्यास्ततक के कालमें युद्ध करते थे । वे रात्रिकी बेलामें एक दूसरे के पडावमें जाकर निडर हो एक दूसरेसे संपर्क करते थे । ऐसा उदाहरण किसी अन्य देश एवं धर्ममें नहीं दिखाई देगा । इतना ही नहीं, अपितु कोई ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता ।

संस्कृत भाषाका अनादर करनेवाले भारतीयोंका घोर अधःपतन !

भारतीयोंका प्राचीन वाङ्मय, अर्थात वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण; कालिदास तथा भवभूति, आदिके संस्कृत नाटक, काव्य, रामायण, महाभारतादि वाङ्मय एवं कला जाननेकी उत्कट इच्छा तथा लगन जर्मनीमें है; किंतु भारतके नेता, समाजकल्याणकर्ता तथा सुधारक किसीको भी संस्कृतका कुछ भी ज्ञान नहीं है । Sanskrit is dead language अर्थात संस्कृत मृत भाषा है, ऐसा कहकर, वे … Read more

राष्ट्रकी स्थिति मरणासन्न रोगीकी भांति होना ।

अनादि कालसे चला आ रहा हिंदु धर्म ऋषि-मुनियोंने बताया, आगे उसे सहस्रों वर्षोंतक ब्राह्मणोंने बनाए रखा । अंग्रेजोंके भारतमें आनेपर उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की अपनी नीतिके अनुसार विविध जातियोंमें द्वेष उत्पन्न किया । केवल ब्राह्मणोंके कारण ही हिंदु धर्मका अस्तित्त्व बना हुआ था । इसलिए उनपर टूट पडनेके लिए उन्होंने अन्य जातियोंको … Read more