योगासन से ॐ एवं सूर्यनमस्कार हटानेवाले एवं त्रुटिपूर्ण शिक्षा देनेवाले धर्मद्रोहियो, यह ध्यान में लें !

क्या ‘योगासन से ॐ एवं सूर्यनमस्कार हटानेवाले स्वयं को ऋषिमुनियों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान समझते हैं ? योगासन केवल शारीरिक नहीं, अपितु आध्यात्मिक व्यायाम हैं । मानसिक स्तर पर कार्य करनेवाले धर्मद्रोहियों का कार्य एवं नाम कुछ वर्षों के पश्चात ही किसी के ध्यान में नहीं रहता । इसके विपरीत ऋषियों के बताए हुए सूत्र … Read more

हिन्दुओं की अत्यंत दयनीय स्थिति

भारत के पास हिन्दू धर्म एवं धर्मपरंपरा के अतिरिक्त अभिमान प्रतीत होने समान क्या है ? बुद्धिप्रामाण्यवादी, साम्यवादी तथा जात्यंध आदि लोगों द्वारा बुद्धिभ्रम करने से हिन्दू धर्म दुर्लक्षित किया गया । इसीलिए हिन्दुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है ।’

‘मंदिरों के सरकारीकरण से उनकी दयनीय अवस्था !

१. पुजारी तथा व्यवस्थापक सब सरकारी नौकर होते हैं; इसलिए, उनमें सरकारी नौकरों के सब होते हैं । २. अनेक राजनेता शासन से संबंधित व्यक्तियों को घूस देकर अथवा अनुचित कारणों से न्यासी बन बैठे हैं । अतः वे श्रध्दालुओं की सुविधा एवं मंदिर की पवित्रता की ओर ध्यान नहीं देते । ३. मंदिरों में … Read more

ऐसे सन्त हिन्दुओंके समक्ष आचारधर्मका आदर्श कैंसे रखेंगे ?

अनेक बार ऐसा दिखाई देता है कि सन्त किसी कार्यक्रमका उद्घाटन फीता काटकर करते हैं । विविध सम्प्रदायोंके नियतकालिकोंमें भी वैसा दर्शानेवाले छायाचित्र होते हैं । उन्हें इस बातका भी भान नहीं रहता कि पाश्‍चात्त्योंके समान फीता काटकर उद्घाटन करनेसे दर्शनार्थी हिन्दुओंपर हम अयोग्य संस्कार कर रहे हैं !

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बातें करनेवाले ध्यान रखें !

१. व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र श्रेष्ठ होता है । इसलिए, राष्ट्र जीवित रहने पर ही समाज जीवित रहता है और समाज जीवित रहने पर व्यक्ति जीवित रहता है । २. व्यक्तिगत स्वतंत्रताका अर्थ स्वैराचार नहीं अथवा मैं जो चाहूं करूं अथवा वैसा ही वर्तन करूं, यह भी नहीं ! ३. व्यक्ति, समाज, … Read more

जगतके आदर्श धर्मयुद्धका एकमेव उदाहरण है, महाभारत युद्ध !

महाभारत युद्धके समय कौरव एवं पांडव सूर्योदय से सूर्यास्ततक के कालमें युद्ध करते थे । वे रात्रिकी बेलामें एक दूसरे के पडावमें जाकर निडर हो एक दूसरेसे संपर्क करते थे । ऐसा उदाहरण किसी अन्य देश एवं धर्ममें नहीं दिखाई देगा । इतना ही नहीं, अपितु कोई ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता ।

संस्कृत भाषाका अनादर करनेवाले भारतीयोंका घोर अधःपतन !

भारतीयोंका प्राचीन वाङ्मय, अर्थात वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण; कालिदास तथा भवभूति, आदिके संस्कृत नाटक, काव्य, रामायण, महाभारतादि वाङ्मय एवं कला जाननेकी उत्कट इच्छा तथा लगन जर्मनीमें है; किंतु भारतके नेता, समाजकल्याणकर्ता तथा सुधारक किसीको भी संस्कृतका कुछ भी ज्ञान नहीं है । Sanskrit is dead language अर्थात संस्कृत मृत भाषा है, ऐसा कहकर, वे … Read more

राष्ट्रकी स्थिति मरणासन्न रोगीकी भांति होना ।

अनादि कालसे चला आ रहा हिंदु धर्म ऋषि-मुनियोंने बताया, आगे उसे सहस्रों वर्षोंतक ब्राह्मणोंने बनाए रखा । अंग्रेजोंके भारतमें आनेपर उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की अपनी नीतिके अनुसार विविध जातियोंमें द्वेष उत्पन्न किया । केवल ब्राह्मणोंके कारण ही हिंदु धर्मका अस्तित्त्व बना हुआ था । इसलिए उनपर टूट पडनेके लिए उन्होंने अन्य जातियोंको … Read more

‘इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति तथा राष्ट्र एवं धर्मकी स्थिति’ ।

‘इच्छाशक्तिके कारण ‘कुछ करना चाहिए’ ऐसी इच्छा उत्पन्न होती है । क्रियाशक्तिके कारण प्रत्यक्ष कृति करनेकी प्रेरणा मिलती है । कुछ करनेकी इच्छा उत्पन्न होने और प्रत्यक्ष कृति करनेके लिए ज्ञानशक्तिकी सहायता होनेपर ही योग्य इच्छा उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरूप योग्य कृति होती है । अन्य पंथियोंको उनकी साधनाके कारण ज्ञानशक्ति सहायता करती है … Read more

धर्म ही मोक्ष प्रदान कर सकता है..

‘व्यक्ति से परिवार, परिवार से गांव, गांव से राष्ट्र और राष्ट्र से धर्म श्रेष्ठ है । क्योंकि, धर्म ही मोक्ष प्रदान करवा सकता है, अन्य विषय तो माया में उलझाते हैं ! इसलिए, साधना करें !’