साधना की अनिवार्यता
‘किसी रोग की रोकथाम के लिए टीकाकरण (वेक्सिनेशन) करते हैं, उसी प्रकार तीसरे महायुद्ध के काल में बचने के लिए साधना ही टीका है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘किसी रोग की रोकथाम के लिए टीकाकरण (वेक्सिनेशन) करते हैं, उसी प्रकार तीसरे महायुद्ध के काल में बचने के लिए साधना ही टीका है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘बुद्धिवादियों और विज्ञानवादियों, ‘वैज्ञानिकों को शोध करने की बुद्धि किसने दी ?’, क्या कभी इसका विचार किया है ? यह बुद्धि ईश्वर ने दी है । क्या ऐसे में कोई बुद्धिमान व्यक्ति बोलेगा कि ‘ईश्वर नहीं’ है ? -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘राजकीय क्षेत्र के सभी कार्यकर्ताओं के विषय माया से संबंधित होते हैं । अतः उनका लेखन अधिक समय तक नहीं टिकता । इसके विपरीत आध्यात्मिक क्षेत्र का लेखन अधिक समय अथवा अनेक युगों तक टिकता है, उदा. वेद, उपनिषद, पुराण इत्यादि ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘विज्ञान ने विविध उपकरणों की खोज कर मनुष्य का समय बचाया; परंतु उस समय का सदुपयोग करना नहीं सिखाया । इसलिए मनुष्य की अत्यधिक अधोगति हो गई है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘नेत्रों को खोलने पर ही दिखाई देता है, वैसे ही साधना से सूक्ष्मदृष्टि जागृत होने पर ही, सूक्ष्म से दिखता और समझ में आता है । साधना से सूक्ष्मदृष्टि जागृत होने तक बुद्धिजीवी अंधकार में ही रहते है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘बुद्धिवादियों को इस बात का अहंकार होता है कि, ‘मानव ने भिन्न भिन्न प्रकार के यंत्रों का आविष्कार किया है ।’ उनके ध्यान में यह नहीं आता कि ईश्वर ने जिवाणु, पशु, पक्षी, 70-80 वर्ष चलने वाला यंत्र अर्थात मानव देह जैसी अरबों वस्तुएं बनाई हैं । क्या इनमें से एक भी वस्तु वैज्ञानिक बना … Read more
‘धर्म त्याग सिखाता है, तो राजनीति स्वार्थ ; परिणामतः आरक्षण इत्यादी प्रकार बढ़ते गए । इनका एक ही उपाय है सबको सर्वत्याग की शिक्षा देनेवाली साधना सिखाना !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘हिन्दुओं को विचार करना चाहिए कि, ‘हमें ईश्वर की सहायता क्यों नहीं मिलती ?’, और ईश्वर हमें सहायता करें इसलिए साधना आरंभ करनी चाहिए ।’
‘मनुष्य को छोड़कर कोई भी प्राणी अथवा वनस्पति अवकाश नहीं लेता । ईश्वर भी एक सेकंड का भी अवकाश नहीं लेता । केवल मनुष्य रविवार और शनिवार को अवकाश लेता है । इतना ही नहीं, तो वर्ष में भी कई दिन अधिकार से छुट्टी लेता है । तो इस संदर्भ में मनुष्य श्रेष्ठ है अथवा … Read more
‘प्रत्येक पीढ़ी अगली पीढ़ी की ओर समाज, राष्ट्र और धर्म के संदर्भ में अपेक्षा से देखती है । इसके स्थान पर प्रत्येक पीढ़ी ने ‘हम क्या कर सकते हैं ?’, ऐसा विचार कर ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे, अगली पीढ़ी को इस संदर्भ में कुछ भी करने की आवश्यकता न रहे और वह अपना सारा … Read more