हिन्दू धर्म की सीख
‘ईश्वर सर्वत्र हैं, प्रत्येक में हैं, यह हिन्दू धर्म की सीख है । इसलिए हिन्दुओं को अन्य पंथियों से द्वेष करना नहीं सिखाया जाता ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘ईश्वर सर्वत्र हैं, प्रत्येक में हैं, यह हिन्दू धर्म की सीख है । इसलिए हिन्दुओं को अन्य पंथियों से द्वेष करना नहीं सिखाया जाता ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘नोबेल पुरस्कार प्राप्त करनेवालों के नाम कुछ वर्षों में ही भुला दिए जाते हैं; परंतु धर्मग्रंथ लिखनेवाले वाल्मिकी ऋषि, महर्षि व्यास, वसिष्ठ ऋषि आदि के नाम युगों तक चिरंतन रहते हैं ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘कहां बुद्धि का उपयोग कर अगले कुछ वर्षों में क्या होगा, इसका अनुमान लगानेवाले पाश्चात्त्य, तो कहां युगोंयुगों के संदर्भ में बतानेवाला ज्योतिषशास्त्र ! -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘मानवता सिखानेवाली साधना छोड़कर अन्य सर्व विषय सिखानेवाली आधुनिक शिक्षा प्रणाली के कारण राष्ट्र की अत्यधिक अधोगति हो गई है।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘बुद्धिवादियों को जिज्ञासा न होने के कारण वे अपने छोटे से ज्ञान (अज्ञान) में रहते हैं तथा आगे का समझ नहीं पाते ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘स्वार्थ के लिए राजकीय दल परिवर्तित करनेवाले हजारों होते हैं; परंतु स्वार्थत्यागी सांप्रदायिकों के मन में संप्रदाय परिवर्तित करने का विचार एक बार भी नहीं आता !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘कहां यंत्रों द्वारा शोध कर बदलते निष्कर्ष बतानेवाले वैज्ञानिक, तो कहां लाखों वर्षों पूर्व बिना यंत्रों तथा बिना शोध के अंतिम सत्य बतानेवाले ऋषि !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘स्वराज्य सुराज्य नहीं होता । इसका कारण यह है कि, रज-तम प्रधान लोगों का स्वराज्य कभी सुराज्य नहीं होता । भारत ने इसका अनुभव स्वतंत्रता से लेकर अब तक के ७२ वर्षों में लिया है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘ईश्वर भूमि, जल, हवा आदि सभी निःशुल्क देते हैं; परंतु मानव प्रत्येक वस्तु बेचता है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘शारीरिक और मानसिक बल की अपेक्षा आध्यात्मिक बल श्रेष्ठ होते हुए भी हिन्दू साधना करना भूल गए । इसलिए मुट्ठीभर धर्मांध और अंग्रेजों ने कुछ वर्षों में ही संपूर्ण भारत पर राज्य किया ! अब पुनः वैसा न हो; इसलिए हिन्दुओं को साधना करना अत्यंत आवश्यक है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले