आश्चर्य
‘पैसा अर्जित करने की अपेक्षा उसका त्याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मानव नहीं करता, यह आश्चर्य है !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘पैसा अर्जित करने की अपेक्षा उसका त्याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मानव नहीं करता, यह आश्चर्य है !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
समाज सात्विक होने के लिए धर्मशिक्षा न देकर केवल अपराधियों को दंड देने से अपराध नहीं घटते, यह भी समझ न पानेवाले आज तक के शासकर्ता। हिन्दू राष्ट्र में सभी को धर्मशिक्षा दी जाएगी। जिससे अपराधी ही नहीं रहेंगे ! – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘स्वतंत्रता से लेकर आज तक किसी भी दल के राज्यकर्ता और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन ने हिन्दुओं को धर्मशिक्षा नहीं दी । इस कारण अब हिन्दुओं को ‘रामायण, महाभारत’, ये शब्द ही ज्ञात हैं । उनकी किसी भी शिक्षा का उन्हें स्मरण नहीं होता ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘हिन्दू धर्मग्रंथों में ज्ञान की अनमोल धरोहर है । उनमें जीवन की सभी समस्याओं के उपाय दिए हैं । तब भी आज हिन्दू पश्चिमी विचारधारा और तकनीक के माध्यम से अपने जीवन की समस्याएं दूर करने के प्रयत्न करते हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘कुछ भी अनुचित होने पर हिन्दू प्रत्येक बार ’हमसे कहां न्यूनता रही’, इसका विचार न कर, अंग्रेजी शिक्षाप्रणाली इत्यादि को दोष देते हैं । अंग्रेजों के आने से पहले मुसलमानों ने भी भारत पर राज्य किया । ‘इसके लिए अंग्रेज नहीं, अपितु हिन्दुओं की अनुचित विचारधारा ही कारणीभूत है !’, यह वे ध्यान में नहीं … Read more
‘अधिकांश पुरुष कार्य के निमित्त रज-तमप्रधान समाज में रहते हैं । इसका उनपर परिणाम होने से वे भी रज-तमयुक्त होते हैं । इसके विपरीत, अधिकांश स्त्रियां घर में रहती हैं । उनका समाज के रज-तम से संपर्क नहीं होता । इसलिए वे साधना में शीघ्र प्रगति करती हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१४.११.२०२१)
‘अधिकांश संत उन्हें ‘संत’ की उपाधि प्राप्त होने के उपरांत सिखाने की स्थिति में रहते हैं । इसलिए उनसे ‘अगले स्तर की साधना सीखना, साधना के विविध पहलू और उनकी सूक्ष्मता पूछकर आत्मसात करना’, ऐसी कृतियां नहीं होतीं । इसके विपरीत, सनातन के संतों को ‘अध्यात्म अनंत का शास्त्र है’, यह ज्ञात होने से वे … Read more
‘अनेक बार कुछ संतों का आचरण देखकर कुछ लोगों को लगता है, ‘क्या वे मनोविकार से पीडित हैं ?’, ऐसे समय में यह ध्यान रखना चाहिए कि संतों का मनोलय हो चुका होता है । इसलिए उन्हें कभी भी मनोविकार नहीं होते । उनका आचरण उस परिस्थिति के लिए आवश्यक अथवा उनकी प्रकृतिनुसार होता है … Read more
प्रारब्ध कितना भी कठिन हो, भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रख, उचित क्रियमाण का उपयोग कर कर्म करनेसे उस पर मात की जा सकती है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
दैवी गुणोंसहित कर्म करने पर साधना होती है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ