विविधता के कारण भारत की परम अधोगति !
‘अनेक से एक की ओर जाना हिन्दू धर्म सिखाता है । इसके विपरीत ‘विविधता भारत का बल है’, ऐसा अनेक राजनीतिक नेता कहते हैं । विविधता के कारण ही आज भारत की परम अधोगति हुई है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘अनेक से एक की ओर जाना हिन्दू धर्म सिखाता है । इसके विपरीत ‘विविधता भारत का बल है’, ऐसा अनेक राजनीतिक नेता कहते हैं । विविधता के कारण ही आज भारत की परम अधोगति हुई है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर राष्ट्र-धर्म हेतु कार्य करने से कुछ साध्य नहीं होता, यह विगत ७४ वर्षों में अनेक बार सिद्ध हुआ है । ‘अत: इनके साथ ही आध्यात्मिक स्तर पर भी कार्य करना अत्यावश्यक है’, यह सभी को ध्यान में रखना होगा ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘विज्ञान पंचज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धि से समझाता है; इसलिए उसकी सीमाएं हैं । इसके विपरीत अध्यात्म पंचज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धि के पर का होने के कारण असीमित है !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘कहां किसी विषय पर कुछ वर्ष शोध कर संख्याशास्त्र के आधार पर (Statistics से) निष्कर्ष निकालनेवाले पश्चिमी शोधकर्ता, और कहां किसी भी प्रकार का शोध किए बिना मिलनेवाले ईश्वरीय ज्ञान के कारण किसी भी विषय का निष्कर्ष तत्काल बतानेवाले ऋषि !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘जैसे प्राथमिक कक्षा में पढनेवाला बच्चा स्नातकोत्तर अथवा डॉक्टरेट कर चुके व्यक्ति से विवाद करेगा, वैसे बुद्धिप्रमाणवादी अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति से विवाद करते हैं !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘पाश्चात्त्यों को शोध करने के लिए यंत्रों की आवश्यकता होती है । ऋषियों और संतों को उनकी आवश्यकता नहीं होती । उन्हें यंत्रों से अनेक गुना अधिक जानकारी प्राप्त होती है ।’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘पहले लोगों को लगता था कि ‘हिन्दू राष्ट्र’ एक सपना है । ‘हिन्दू राष्ट्र्र’ कभी भी स्थापित नहीं हो सकता’; परंतु अब अनेक लोगों को लगता है कि ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना निश्चित ही होगी ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में मैं सहायता करूंगा’, ऐसा दृष्टिकोण न रखें; अपितु यह मेरा ही कार्य है, ऐसा दृष्टिकोण रखें ! ऐसा दृष्टिकोण रखने पर कार्य अच्छे से होता है और स्वयं की भी प्रगति होती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘शरीर की बनावट, स्वभाव के गुण-दोष, कला, बुद्धि, धन इत्यादी घटकोंं में ७५० करोड़ में से २ व्यक्तियों में भी समानता नहीं है । ऐसे में ‘साम्यवाद’ शब्द का कुछ अर्थ है क्या ?’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘धर्मशिक्षा और साधना के अभाव में कृतघ्न वर्तमान पिढी को माता-पिता की संपत्ति तो चाहिए; पर वह वृद्ध माता-पिता की सेवा करना नहीं चाहते ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले